प्रश्न - *जीवन में पवित्रता का महत्त्व क्या है? जीवन पवित्र हो इसके लिए क्या करना होगा?*
उत्तर- आत्मीय भाई,
बाह्य साफ़-सफ़ाई स्वच्छता कहते हैं, और आंतरिक साफ-सफ़ाई को पवित्रता कहते हैं।
समुद्र के किनारे खड़े हो देखो, तुम उसके अत्यंत थोड़े भाग को ही देख सकोगे, कुछ दृश्य है और बहुत कुछ अदृश्य है। आसमान की तरफ़ देखो, बहुत थोड़ा दृश्य औऱ बहुत कुछ अदृश्य है।
ऐसे ही दूसरे मनुष्य को देखोगे या स्वयं को देखोगे तो कुछ ही दृश्य है बहुत कुछ अदृश्य है। प्रत्येक स्थूल दिखने वाले कर्म के पीछे एक अदृश्य प्रेरणा, उद्देश्य कार्य कर रहा होता है।
कर्म (Action) - जब सही नियत-भावना( Intention) से किया जाता है। तब वह पवित्र कर्म कहलाता है।
जीवन जब श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए कर्मयोग करते हुए जिया जाता है तब वह पवित्र जीवन कहलाता है।
जीवन में पवित्रता का अर्थ है कि जो बाह्य जीवन जो दिख रहा है और जो अंतर्जगत में चल रहा है दोनों पवित्र(परमात्मा को प्रिय) होने चाहिए। जीवन यज्ञमय व कल्याणकारी होना चाहिए। मन बुद्धि चित्त व अहंकार सब कुछ परमार्थ निमित्त कार्य में नियोजित होना चाहिए।
सूर्य निःश्वार्थ ब्रह्माण्ड में प्राण संचार करता है, बादल निःश्वार्थ बरसता है, हवा निःश्वार्थ बहती है, जल स्रोत निःश्वार्थ जल उपलब्ध करवाते हैं, वृक्ष वनस्पति वधरती निःश्वार्थ भोज्य देते हैं। इसीतरह प्रत्येक मनुष्य को परमात्मा की बनाई सृष्टि जो यज्ञमय है कल्याणकारी है, उसके अनुसार स्वयं को ढालकर यज्ञमय, कल्याणकारी जीवन अपनाना चाहिए। मन वचन कर्म से परमात्मा को जो प्रिय है वह करना चाहिए।
✨ *जब परमात्मा को जो प्रिय है आप करेंगे तो परमात्मा भी आपको जो प्रियहोगा वह देगा। अनुदान-वरदान से झोली भर देगा।*✨
💫 *जिस व्यक्ति के मन, वचन, कर्म, विचार व आचरण परमात्मा को प्रिय होगें, उसका जीवन ही पवित्र जीवन होगा।* 💫
सूत्र:- परमात्मा + को + प्रिय= पवित्र
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय भाई,
बाह्य साफ़-सफ़ाई स्वच्छता कहते हैं, और आंतरिक साफ-सफ़ाई को पवित्रता कहते हैं।
समुद्र के किनारे खड़े हो देखो, तुम उसके अत्यंत थोड़े भाग को ही देख सकोगे, कुछ दृश्य है और बहुत कुछ अदृश्य है। आसमान की तरफ़ देखो, बहुत थोड़ा दृश्य औऱ बहुत कुछ अदृश्य है।
ऐसे ही दूसरे मनुष्य को देखोगे या स्वयं को देखोगे तो कुछ ही दृश्य है बहुत कुछ अदृश्य है। प्रत्येक स्थूल दिखने वाले कर्म के पीछे एक अदृश्य प्रेरणा, उद्देश्य कार्य कर रहा होता है।
कर्म (Action) - जब सही नियत-भावना( Intention) से किया जाता है। तब वह पवित्र कर्म कहलाता है।
जीवन जब श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए कर्मयोग करते हुए जिया जाता है तब वह पवित्र जीवन कहलाता है।
जीवन में पवित्रता का अर्थ है कि जो बाह्य जीवन जो दिख रहा है और जो अंतर्जगत में चल रहा है दोनों पवित्र(परमात्मा को प्रिय) होने चाहिए। जीवन यज्ञमय व कल्याणकारी होना चाहिए। मन बुद्धि चित्त व अहंकार सब कुछ परमार्थ निमित्त कार्य में नियोजित होना चाहिए।
सूर्य निःश्वार्थ ब्रह्माण्ड में प्राण संचार करता है, बादल निःश्वार्थ बरसता है, हवा निःश्वार्थ बहती है, जल स्रोत निःश्वार्थ जल उपलब्ध करवाते हैं, वृक्ष वनस्पति वधरती निःश्वार्थ भोज्य देते हैं। इसीतरह प्रत्येक मनुष्य को परमात्मा की बनाई सृष्टि जो यज्ञमय है कल्याणकारी है, उसके अनुसार स्वयं को ढालकर यज्ञमय, कल्याणकारी जीवन अपनाना चाहिए। मन वचन कर्म से परमात्मा को जो प्रिय है वह करना चाहिए।
✨ *जब परमात्मा को जो प्रिय है आप करेंगे तो परमात्मा भी आपको जो प्रियहोगा वह देगा। अनुदान-वरदान से झोली भर देगा।*✨
💫 *जिस व्यक्ति के मन, वचन, कर्म, विचार व आचरण परमात्मा को प्रिय होगें, उसका जीवन ही पवित्र जीवन होगा।* 💫
सूत्र:- परमात्मा + को + प्रिय= पवित्र
🙏🏻श्वेता, DIYA
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