Saturday, 13 June 2020

ध्यान के लिए धैर्य की आवश्यकता है, प्रयास या किसी कर्म को करने की जरूरत नहीं। मनोभूमि की तैयारी करके धारणा का बीज बोकर बस धैर्य पूर्वक बैठे रहो और ध्यान को घटने दो।

*ध्यान के लिए धैर्य की आवश्यकता है, प्रयास या किसी कर्म को करने की जरूरत नहीं। मनोभूमि की तैयारी करके धारणा का बीज बोकर बस धैर्य पूर्वक बैठे रहो और ध्यान को घटने दो।*
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नींद लाने के लिए प्रयास करने की जरूरत नहीं, समस्त प्रयास छोड़ने व विचारों को विराम देने की आवश्यकता होती है। यह विचारों को विराम भोजन के बाद से ही देना शुरू कर देना चाहिए। नींद चैतन्यता रहित विश्राम है, यह अर्ध ध्यान है। ध्यान चैतन्यता सहित दिव्य संसारी विश्राम और आध्यात्मिक यात्रा है।

जिन लोगों को नींद नहीं आती, उसका कारण उनके विचारों का तूफान है, जो थमता नहीं। उस तूफान के साथ वह जबरन नींद लाने की कोशिश करते हैं और नींद से वंचित हो जाते हैं।

इसी तरह ध्यान कोई क्रिया नहीं है, इसे जितना करने की कोशिश करेंगे ध्यान से वंचित हो जाएंगे। जितना सोचेंगे अधिक उतना भटकेंगे। शुरुआत के हज़ारों विचारों को किसी एक विचार पर केंद्रित कीजिये, धीरे धीरे उस एक विचार को भी मत सोचिए। बस बैठ जाइए। एक अपनी श्वांस के चौकीदार बन जाइये। चैतन्यता के साथ जागरूक होकर संसार को व स्वयं को भूलते हुए बस उस ऊर्जा से जुड़ने हेतु स्वयं को प्रस्तुत कर दीजिए।

नींद में बिस्तर पर शरीर रखकर नेत्र बन्द कर लेते हैं, आगे क्या घटता है आपको होश नहीं होता।

ध्यान में आसन पर शरीर को बिठाकर नेत्र बन्द कर लेते हैं, आगे क्या घटता है उसे होशपूर्वक बस देखते हैं। साक्षी भाव से बस जो घट रहा है घटने देते हैं।

जैसे ऑपरेशन थियेटर में ऑपरेशन से पूर्व प्री ओटी की प्रक्रिया से मरीज गुजरता है। मानसिक व शारिरिक रूप से शरीर को ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाता है। वैसे ही धारणा ध्यान की pre-OT है।

ठाकुर कहते थे, धारणा जामन है मन दूध। दूध में दही रूपी जामन डालकर बस बैठ जाओ और ध्यान घटने का इंतज़ार करो।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं, मन की भूमि पर धारणा का बीज बो दो, अंकुरण स्वयं होगा। बस धैय पूर्वक साक्षी भाव से इंतज़ार करो। ध्यान अक्रिया है कुछ करने की जरूरत नहीं। किसान की तरह मनोभूमि की पूर्व तैयारी की साधना करो, धारणा का बीज बोकर बस धैर्य पूर्वक ध्यान घटने का इंतज़ार करो, धारणा के बीज से ध्यान के पौधे को निकलने में वक्त लगता है। बस तुम वह वक़्त दो, बस तुम आती जाती श्वांस के चौकीदार बनकर बैठे रहो। ध्यान को घटने दो। स्वयं को उस महाशक्ति से जुड़ने दो।

🙏🏻श्वेता, Diya Delhi

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