प्रश्न - सँस्कार व आश्रम व्यवस्था में अंतर क्या है?
उत्तर- संस्कारों और आश्रम व्यवस्था भारतीय संस्कृति के अनिवार्य अंग हैं।
सँस्कार का अर्थ -
*संस्कार* - सम् अर्थात् सम्यक अर्थात् अच्छे, अच्छी
*कार* - अर्थात् कार्य, कृति
जीवन को अच्छी तरह से श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए व्यवस्थित करने की कला व प्रक्रिया सँस्कार कहलाती है।
प्रत्येक कार्य ही अच्छा अर्थात् संस्कारयुक्त होना चाहिए । उदा. केला खाकर हम छिलका फेंक देते हैं यह कृत्य है । केला खाकर छिलका कूडेदानमें फेंकना यह प्रकृति । केला खाकर छिलका सडकपर फेंक देना, यह विकृति । अन्य व्यक्तिद्वारा रास्तेपर फेंका हुआ छिलका कूडेदानमें फेकना यह संस्कृति ।
आश्रम का अर्थ है -- 'अवस्थाविशेष' , किसी समयावधि को किसी विशेष उद्देश्य व अवस्था के लिए निश्चित कर देना।
प्राचीन काल में व्यक्तिगत व्यवस्था के दो स्तंभ थे - पुरुषार्थ और आश्रम। सामाजिक प्रकृति-गुण, कर्म और स्वभाव-के आधार पर वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था। व्यक्तिगत संस्कार के लिए उसके जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था। ये चार आश्रम थे- (१) ब्रह्मचर्य, (२) गार्हस्थ्य, (३) वानप्रस्थ और (४) संन्यास।
हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया तक किए जाते हैं। इनमें से विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि संस्कार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। वर्तमान समय में सनातन धर्म या हिन्दू धर्म के अनुयायी में गर्भाधन से मृत्यु तक १६ संस्कारों होते है।
1
गर्भाधान 2. पुंसवन 3 सीमन्तोन्नयन 4 जातकर्म 5 नामकरण 6 निष्क्रमण 7 अन्नप्राशन 8 चूड़ाकर्म 9 विद्यारंभ 10 कर्णवेध 11 यज्ञोपवीत 12 वेदारंभ 13 केशांत 14 समावर्तन 15 विवाह 16 अन्त्येष्टि
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- संस्कारों और आश्रम व्यवस्था भारतीय संस्कृति के अनिवार्य अंग हैं।
सँस्कार का अर्थ -
*संस्कार* - सम् अर्थात् सम्यक अर्थात् अच्छे, अच्छी
*कार* - अर्थात् कार्य, कृति
जीवन को अच्छी तरह से श्रेष्ठ उद्देश्यों के लिए व्यवस्थित करने की कला व प्रक्रिया सँस्कार कहलाती है।
प्रत्येक कार्य ही अच्छा अर्थात् संस्कारयुक्त होना चाहिए । उदा. केला खाकर हम छिलका फेंक देते हैं यह कृत्य है । केला खाकर छिलका कूडेदानमें फेंकना यह प्रकृति । केला खाकर छिलका सडकपर फेंक देना, यह विकृति । अन्य व्यक्तिद्वारा रास्तेपर फेंका हुआ छिलका कूडेदानमें फेकना यह संस्कृति ।
आश्रम का अर्थ है -- 'अवस्थाविशेष' , किसी समयावधि को किसी विशेष उद्देश्य व अवस्था के लिए निश्चित कर देना।
प्राचीन काल में व्यक्तिगत व्यवस्था के दो स्तंभ थे - पुरुषार्थ और आश्रम। सामाजिक प्रकृति-गुण, कर्म और स्वभाव-के आधार पर वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था। व्यक्तिगत संस्कार के लिए उसके जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था। ये चार आश्रम थे- (१) ब्रह्मचर्य, (२) गार्हस्थ्य, (३) वानप्रस्थ और (४) संन्यास।
हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया तक किए जाते हैं। इनमें से विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि संस्कार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। वर्तमान समय में सनातन धर्म या हिन्दू धर्म के अनुयायी में गर्भाधन से मृत्यु तक १६ संस्कारों होते है।
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गर्भाधान 2. पुंसवन 3 सीमन्तोन्नयन 4 जातकर्म 5 नामकरण 6 निष्क्रमण 7 अन्नप्राशन 8 चूड़ाकर्म 9 विद्यारंभ 10 कर्णवेध 11 यज्ञोपवीत 12 वेदारंभ 13 केशांत 14 समावर्तन 15 विवाह 16 अन्त्येष्टि
🙏🏻श्वेता, DIYA
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