Sunday 14 June 2020

ध्यानी सन्त के ध्यान करवाने के विचित्र नियम

*ध्यानी सन्त के ध्यान करवाने के विचित्र नियम*

एक सन्त ध्यानी सन्त के नाम से विख्यात थे, उनकी शरण में ज्ञानी आये या अज्ञानी सब अंत में ध्यानी बन जाते। इसलिए अब लोग उन्हें ध्यानी सन्त ही कहते थे।

वह मुख्यतः उगते सूर्य का ध्यान सभी को करवाते थे और गायत्री मंत्र जपने की प्रेरणा देते थे, वह सबको कहते - प्रत्येक जीव वनस्पति को प्राण संचार सूर्य द्वारा ही सम्भव होता है। पृथ्वी पर जीवन सूर्य से ही सम्भव है। हम सबके प्राणों की शक्ति का स्रोत भी सूर्य है। सूर्य की चेतना से जुडो।

सन्त कहते - यदि तेज़ दौड़ते हुए आओ और आते ही एक ग्लास भरा पानी हाथ में लो तो तुम उसे भी सम्हाल न सकोगे झलक जाएगा। इसी तरह मन में दौड़ते हुए विचारों को लेकर ध्यान में बैठोगे तो ध्यान घट नहीं पायेगा। तो करना क्या है? हाथ में पकड़े ग्लास का जल स्थिर करने के लिए शरीर को स्थिर करो। पहले स्वयं हिलना बन्द करो, तब ग्लास न हिलेगी। फिर शनैः शनैः तुम्हारी स्थिरता से ग्लास व ग्लास की स्थिरता से जल स्थिर हो जाएगा। इसी तरह मन को ध्यानस्थ करने के लिए पहले शरीर स्थिर करो, फिर समस्त विचारणा शक्ति को किसी एक धारणा में लगा दो, यदि सौ विचार चल रहे थे तो अब एक विचार चलने लगे यह निश्चित करो। फिर उस एक विचार को भी तिरोहित हो जाने दो। बस आती जाती श्वांस पर ध्यान केंद्रित करो। स्वयं को परमसत्ता से मिलने हेतु प्रस्तुत कर दो। शरीर की स्थिरता से मन स्थिर होगा। मन पर नज़र रखोगे व एक विचार पर चिंतन करोगे तो शनैः शनैः विचार हटने लगेंगे। अंत मे एक शेष बचेगा। अब उस एक को भी मत सोचो बस मन पर नजर रखो। दूध में जामन डालकर बस बैठो। धैर्य पूर्वक मन के ग्लास को स्थिर होने दो समस्त विचारों को शांत होने दो। स्वयं में ध्यान घटने दो।

सभी साधकों को अभ्यास हेतु कांच के पात्र में जल देकर बिठाते, साधक हिलते तो जल झलकता। अतः साधक न हिलते, धीरे धीरे कई महीनों में अभ्यस्त होने पर कांच के बर्तन के बिना बैठने को कहते इस प्रकार ध्यान घटित होने लगता।

एक बार उनके पास ध्यान सीखने एक गड़ेरिया आया, जो पढ़ा लिखा न था।

सन्त ने पूँछा, तुम्हें सबसे ज्यादा कौन पसन्द है। किसको दिन में ज्यादा याद करते हो? गड़ेरिया बोला अभी कुछ दिनों पहले भेड़ का बच्चा हुआ है, वह मुझे बहुत पसंद है। मैं उसके ही चिंतन में खोया रहता हूँ।

मुझे भगवान विष्णु पसन्द हैं, मग़र जब भी उनका ध्यान करता हूँ तो मन भटकता है। मुझे विष्णु का ही ध्यान सीखना है।

सन्त ने कहा - भगवान कण कण में है, तुम जिस रूप में चाहो उसे भज सकते हो, उसका ध्यान कर सकते हो। तुम भगवान से बोलो भगवान मुझे आपका भेड़ रूप बहुत पसंद है, मुझे भेड़ के रूप में ध्यान की अनुमति दें, मैं इस भेड़ के बच्चे में आपका आह्वाहन करता हूँ। आज से भेड़ के बच्चे की सेवा ईश्वर सेवा व पूजन समझ के करना। बिना उसे खिलाये मत खाना, ख़ुद से पहले और सारे संसार से पहले उसका ध्यान रखना। जब भी वक्त मिले *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः जपना।* और भेड़ के चार पैर उनका चतुर्भुज रूप जानना। इसी भेड़ के माध्यम से तुम्हें विष्णु के चतुर्भुज रूप तक पहुंचना है।

वह गड़ेरिया सन्त के बताए नियमानुसार भेड़ की सेवा करता व उसी के ध्यान में रहता।

उसे भी कांच के बर्तन में जल दिया गया व जल के भीतर अन्य साधकों को सूर्य और उसे भेड़ सोचते हुए जल स्थिर हो इसलिए शरीर स्थिर करने को कहा गया।

गड़ेरिये से कहा - जल में भेड़ के  रूप में भगवान विष्णु की कल्पना करो।

सबकी तरह ही गड़ेरिये में भी ध्यान घटने लगा। वह भी घण्टों स्थिर बैठने लगा। शनैः शनैः वह भेड़ उसे प्रकाशित ध्यान में दिखती। धीरे धीरे नित्य स्वाध्याय सत्संग से वह बदलने लगा। कई वर्षों बाद एक दिन उस भेड़ में ही चतुर्भुज रूप भगवान का दिखने लगा। वह धन्य हो गया। अन्य साधकों तरह उसकी आत्मा प्रकाशित हुई।

🙏🏻श्वेता, DIYA

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...