*मेरे मन! तुझे किस बात का भय है?*
मृत्युलोक में मृत्यु तो सबकी पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
जो यहां आया, वो जाएगा भी तो,
दिन के बाद, रात का अंधेरा छायेगा भी तो,
'जन्म-मरण" व "दिन-रात' एक भ्रम ही तो है,
अरे इनका अनवरत चक्र भी तो है।
आत्मा का शरीर बदलना तो पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
पहले प्रारब्ध की कहानी लिखी जाती है,
आत्मा उसी कहानी पर अभिनय करता है,
उतार-चढ़ाव तो सब पहले से तय है,
बस उस रोल में उम्दा अभिनय करना होता है।
प्रत्येक कहानी का अंत तो पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
बस तू इस बात की चिंता कर,
जब पर्दा गिरे तब भी तेरे लिए,
तालियाँ बजती रहे,
अपने जीवन के नाटक में,
अपने सच्चे अभिनय से जान भर दे।
नाटक का पर्दा गिरना तो पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
🙏🏻श्वेता, DIYA
मृत्युलोक में मृत्यु तो सबकी पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
जो यहां आया, वो जाएगा भी तो,
दिन के बाद, रात का अंधेरा छायेगा भी तो,
'जन्म-मरण" व "दिन-रात' एक भ्रम ही तो है,
अरे इनका अनवरत चक्र भी तो है।
आत्मा का शरीर बदलना तो पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
पहले प्रारब्ध की कहानी लिखी जाती है,
आत्मा उसी कहानी पर अभिनय करता है,
उतार-चढ़ाव तो सब पहले से तय है,
बस उस रोल में उम्दा अभिनय करना होता है।
प्रत्येक कहानी का अंत तो पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
बस तू इस बात की चिंता कर,
जब पर्दा गिरे तब भी तेरे लिए,
तालियाँ बजती रहे,
अपने जीवन के नाटक में,
अपने सच्चे अभिनय से जान भर दे।
नाटक का पर्दा गिरना तो पहले से तय है,
फ़िर मेरे मन!
तुझे किस बात का भय है?
🙏🏻श्वेता, DIYA
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