Sunday 14 June 2020

शिवभक्त औघड़दानी सन्त की दो चाबी व गुड़िया का रहस्य

*शिवभक्त औघड़दानी सन्त की दो चाबी व गुड़िया का रहस्य*

एक सेठ अपनी पत्नी, अपने तीन पुत्र व तीन वधुओं सहित सन्त के दर्शन को आया। सन्त ने कहा सबके समक्ष दो चाबी है एक परम् शांति की व दूसरे सांसारिक सुख की, जो चाहिए चुन लो तदनुसार तुम्हें दर्शनार्थ भेजा जाएगा। सबने सुख की चाबी चुनी लेकिन छोटी बहू ने परम् शांति की चाबी सुनी।

संसारी सुख वाले लोगों की समस्या अनुसार सांसारिक समाधान देकर भोजन हेतु भेज दिया गया।

छोटी बहू को सन्त ने कहा परम् शांति के लिए कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। तुम उस गुड़िया को उठाओ और उस पर अपना नाम लिखो। फिर उसे कुछ लकड़ियां दीं, और बोला ऐसा मानो कि तुम अपनी चिता स्वयं जला रही हो। जब हम मरते हैं तो जिस प्रकार हमारी आत्मा स्वयं के शरीर को जलता अनुभव करती है, वैसा ही अनुभव करो। शरीर के जलने के साथ उससे जुड़े सभी रिश्ते नाते सब जलकर खाक हो जाते हैं। छोटी बहु ने सन्त के निर्देशानुसार सबकुछ किया। चितारोहण की समस्त सँस्कार किये। फ़िर छोटी बहू को सन्त ने कहा स्वयं का पिंड दान कर दो। फिर उसे गंगा स्नान करके वापस आने को कहा।

जब वह वापस आई तो गुरु ने उसे गुरु दीक्षा दी और कहा आज से तुम एक वृक्ष की तरह हो। कार्बनडाईआक्साइड लेकर जीवनोपयोगी ऑक्सीजन प्राणवायु देने वाली। तुम्हारी शरण मे जो आये उसे आश्रय रूपी छाया देने वाली। पत्थर कोई तुम्हें मारे तो तुम फल ही दोगी। गाली कोई तुम्हे दे तो भी तुम उसका भला ही करोगी।

आज से तुम शिव हो, समुद्रमंथन में सब अमृत के लिये प्रयत्नशील थे और शिव ने जहर पिया।  लोककल्याण में निरत है, भोलेनाथ हैं। उनका महाकाल स्वरूप भी जनकल्याण के लिए है, विनाश भी लोकहित है। वह तो स्वयं के लिए कभी कुछ नहीं चाहते।

आज से श्वांस लेना तो *शिवो* और छोड़ना तो *हम* बोलना, मौन मानसिक करना। *शिवो$हम* वह शिव मैं ही हूँ, मैं शिवान्स हूँ। बस आज से संसार सुख का अमृत त्याग के सेवा और युगपीड़ा निवारण का ज़हर पीने को प्रस्तुत हो जाओ। बोलो हे शिव मुझे अपने जैसा कल्याणकारी बना दो। जब भी सांसारिक मोह सताए ध्यान में शिव के साथ शव साधना करना। स्वयं के शरीर को शव मानकर उसका आसन बना लेना, उसपर अपनी प्रकाशित आत्मा को समाधिस्थ बिठा देना। शिव से प्रार्थना करना मेरे भीतर का वैराग्य स्थिर कर दीजिए।

यदि साधारण व्यक्ति को जगाओ तो वह चिढ़ जाता है। कहता है मेरा स्वप्न तोड़ दिया। अब जब तुम लोगों को स्वार्थ व मोह की निद्रा से जगाओगी तो तुम्हें गाली तो मिलेगी ही। सब के सांसारिक स्वप्न को तोड़ने का उत्तरदायी तुम्हे ठहराया जाएगा। मग़र तुम शिवमय बनकर लोकहित करती रहना। वृक्ष की तरह परोपकार में संलग्न रहना तुममें परम् शांति स्थिर हो जाएगी। वृक्ष के साथ एकात्म्य बनाओ, जब भी समय मिले वृक्ष की तरह स्थिर उससे एकात्म्य कर ध्यान करो।

शरीर से गृहस्थ जीवन का पालन करो,  मगर मन से आज से तुम एक सन्यासी हो।

जब सेठ घर सबको लेकर लौटा, तो छोटी बहू में बहुत बदलाव सबने अनुभव किया। पहले घर मे कार्य को लेकर बहुत झगड़े होते थे, छोटी बहू सबके कार्य कर देती। झगड़े खत्म हो गए, वह बहुत शांत स्थिर व सुकूनमय रहती। सब उससे उसकी परमशान्ति का राज जानने में लग गए। वह कहती दूसरों की सेवा से शिव प्रशन्न होते हैं, जितना मैं जन सेवा करती हूँ उतना शिवत्व मुझमें जगता है। सब उसका देखा देखी दुसरो का कार्य करने लगे, अपनी इच्छाओं वासनाओं को छोड़ने लगे। सेठ का घर शान्तिकुंज बन गया।

छोटी बहू से लोग परामर्श लेने आते, लोग धन्य होकर जाते। छोटी बहू खाली हो चुकी थी अब निःश्वार्थ जन सेवा करते करते उसमें शिवत्व भर गया था। उसे परम शांति मिल गई थी। वह मान अपमान से परे हो गयी थी। उस पर गुरुकृपा हो गयी थी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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