Saturday, 6 June 2020

एक अनुरोध - *खुद की क्षणिक सफ़लता का जश्न अहंकार में मत मनाओ*

एक अनुरोध - *खुद की क्षणिक सफ़लता का जश्न अहंकार में मत मनाओ*


जब तक नाव छोड़कर,
धरती पर कदम न रख लो,
समुद्र की पहुंच से,
जब तक दूर न चले जाओ,
तब तक समुद्र पार करने का,
जश्न मत मनाओ।

जब तक समुद्र में नाव है,
कुछ भी प्रिय या अप्रिय घट सकता है,
थोड़ी सी भी सतर्कता हटी,
तो नाव समुद्र में डूब सकता है,
मात्र किनारा देख के,
समुद्र पार करने का भ्रम मत पालो,
समुद्र की पहुंच से,
जब तक दूर न चले जाओ,
तब तक समुद्र पार करने का,
जश्न मत मनाओ।

यह भवसागर है,
यहां सुख-दुःख की लहरें उठती है,
न सुख में अहंकार में फूलो,
न दुःख की ग्लानि में झूलों,
लहरों का क्या है,
यह तो आती जाती हैं,
कोई भी लहर कहाँ,
हमेशा के लिए ठहर पाती है,
न सुख स्थायी है,
न दुःख स्थायी है,
अतः स्वयं की क्षणिक सफ़लता का,
अहंकार में जश्न मत मनाओ,
जब तक भवसागर में नाव है,
सतर्क व चैतन्य रहने का स्वभाव बनाओ।

साधारण दृष्टि से,
पूरा भवसागर देख न सकोगे,
मानवीय बुद्धि से,
भवसागर की गहराई नाप न सकोगे,
तुम तो बस अध्यात्म की नाव पर बैठे रहो,
नित्य प्रार्थना व पुरुषार्थ के दोनों पतवार चलाओ,
वह मदद को तुम्हारी जरूर आएगा,
जब तुम्हारा निरन्तर पुरुषार्थ देखेगा,
तुम्हारी प्रार्थना तभी स्वीकार होगी,
जब उसके साथ पुरुषार्थ की पाती होगी।

भवसागर से तरना है,
तो जीवन देवता की आराधना सीख लो,
संसार की नश्वरता,
और आत्मा की अमरता का ज्ञान सीख लो,
उसको समर्पित होकर जीना सीख लो,
श्रद्धा व विश्वास बनाये रखना सीख लो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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