प्रश्न - *कल्पना, भावना व चिंतन में क्या अंतर है? अध्यात्म जगत में इनके प्रयोग व उपयोगिता का विधान समझाएं।*
उत्तर- आत्मीय भाई,
*कल्पना* - विचारणा के माध्यम से की जाती है। कल्पना सही, गलत, तार्किक व अतार्किक कैसी भी हो सकती है। एक तरह से बुद्धि द्वारा बनाई फ़िल्म को अन्तर्दृष्टि से देखा व समझा जा सकता है। अक्सर वैज्ञानिक हो या सॉफ्टवेयर इंजीनियर या अन्य क्षेत्र के लोग, कुछ भी कार्य को मूर्त रूप में लाने से पूर्व उसकी कल्पना करते हैं। इसमें मात्र बुद्धि व चित्त का प्रयोग होता है।
*चिंतन* - हमेशा सोच समझ कर किया गया विश्लेषण होता है। इसमें क्रमबद्ध एक विषय वस्तु पर चिंतन कर मानसिक मंथन किया जाता है। इस चिंतन से आउटपुट - परिणाम होता है, वह विशेष होता है। चिन्तन में बुद्धिप्रयोग मुख्यतः होता है।
*भावना* - भावना हमेशा हृदय से उद्दीप्त होती है।
सकारात्मक भावना का उद्दीपन - जन प्रेम, भगवत भक्ति, समर्पण, प्रियजन से प्रेम इत्यादि होते हैं।
नकारात्मक भावना का उद्दीपन - काम, क्रोध, मद, लोभ , दम्भ, दुर्भाव, द्वेष, अहंकार इत्यादि होते हैं।
जब उद्दीपन से चिंतन व कल्पना उतपन्न होती है। तब वह भावना कहलाती है। भावना में हृदय प्रमुख व बुद्धि व चित्त सहायक होते हैं। भावना में सही गलत का विश्लेषण बुद्धि करने में अक्षम होती है। वह तो मात्र हृदय की आज्ञा का पालन करती है।
भावना में क्योंकि हृदय का सीधा हस्तक्षेप है, इसलिए जैसी भावना वैसे हार्मोन्स शरीर मे रिसते है, रक्त में मिलते हैं, व शरीर पर प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक डालते हैं।
इसलिए अध्यात्म में भावना का महत्त्व अधिक है, क्योंकि चित्त व बुद्धि रूपांतरण व व्यक्तित्व में परिवर्तन भावना से होता है। मात्र बुद्धि प्रयोग से न स्वयं में परिवर्तन सम्भव है न ही दूसरों को आलोकित किया जा सकता है।
बुद्धि किसी को प्रभावित कर सकती है, बुद्धि से किसी की आत्मा को प्रकाशित व प्रेरित नहीं किया जा सकता। भावना के सही सम्प्रेषण से ही परिवर्तन स्वयं में व दुसरो में लाया जा सकता है।
जब ध्यान में कहा जाता है कि भावना कीजिये - अर्थात हृदय में भक्ति, श्रद्धा, विश्वास के उद्दीपन से हृदय के आदेश पर कहे गए निर्देशित वाक्यनुसार बुद्धि को चिंतन व कल्पना करने का आदेश दीजिये। यहां सही गलत का विश्लेषण नहीं करना है। यहां मात्र आदेशो के पालन में अनिवार्य मानसिक कार्य करना है। अपेक्षित हार्मोन्स का रिसाव होता है, अच्छे हार्मोन्स से मष्तिष्क शांत होता है, शरीर स्वस्थ बनता है।
जिस भावना की ओर हमारा ध्यान जाता है, ऊर्जा का प्रवाह उस ओर ही होता रहता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय भाई,
*कल्पना* - विचारणा के माध्यम से की जाती है। कल्पना सही, गलत, तार्किक व अतार्किक कैसी भी हो सकती है। एक तरह से बुद्धि द्वारा बनाई फ़िल्म को अन्तर्दृष्टि से देखा व समझा जा सकता है। अक्सर वैज्ञानिक हो या सॉफ्टवेयर इंजीनियर या अन्य क्षेत्र के लोग, कुछ भी कार्य को मूर्त रूप में लाने से पूर्व उसकी कल्पना करते हैं। इसमें मात्र बुद्धि व चित्त का प्रयोग होता है।
*चिंतन* - हमेशा सोच समझ कर किया गया विश्लेषण होता है। इसमें क्रमबद्ध एक विषय वस्तु पर चिंतन कर मानसिक मंथन किया जाता है। इस चिंतन से आउटपुट - परिणाम होता है, वह विशेष होता है। चिन्तन में बुद्धिप्रयोग मुख्यतः होता है।
*भावना* - भावना हमेशा हृदय से उद्दीप्त होती है।
सकारात्मक भावना का उद्दीपन - जन प्रेम, भगवत भक्ति, समर्पण, प्रियजन से प्रेम इत्यादि होते हैं।
नकारात्मक भावना का उद्दीपन - काम, क्रोध, मद, लोभ , दम्भ, दुर्भाव, द्वेष, अहंकार इत्यादि होते हैं।
जब उद्दीपन से चिंतन व कल्पना उतपन्न होती है। तब वह भावना कहलाती है। भावना में हृदय प्रमुख व बुद्धि व चित्त सहायक होते हैं। भावना में सही गलत का विश्लेषण बुद्धि करने में अक्षम होती है। वह तो मात्र हृदय की आज्ञा का पालन करती है।
भावना में क्योंकि हृदय का सीधा हस्तक्षेप है, इसलिए जैसी भावना वैसे हार्मोन्स शरीर मे रिसते है, रक्त में मिलते हैं, व शरीर पर प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक डालते हैं।
इसलिए अध्यात्म में भावना का महत्त्व अधिक है, क्योंकि चित्त व बुद्धि रूपांतरण व व्यक्तित्व में परिवर्तन भावना से होता है। मात्र बुद्धि प्रयोग से न स्वयं में परिवर्तन सम्भव है न ही दूसरों को आलोकित किया जा सकता है।
बुद्धि किसी को प्रभावित कर सकती है, बुद्धि से किसी की आत्मा को प्रकाशित व प्रेरित नहीं किया जा सकता। भावना के सही सम्प्रेषण से ही परिवर्तन स्वयं में व दुसरो में लाया जा सकता है।
जब ध्यान में कहा जाता है कि भावना कीजिये - अर्थात हृदय में भक्ति, श्रद्धा, विश्वास के उद्दीपन से हृदय के आदेश पर कहे गए निर्देशित वाक्यनुसार बुद्धि को चिंतन व कल्पना करने का आदेश दीजिये। यहां सही गलत का विश्लेषण नहीं करना है। यहां मात्र आदेशो के पालन में अनिवार्य मानसिक कार्य करना है। अपेक्षित हार्मोन्स का रिसाव होता है, अच्छे हार्मोन्स से मष्तिष्क शांत होता है, शरीर स्वस्थ बनता है।
जिस भावना की ओर हमारा ध्यान जाता है, ऊर्जा का प्रवाह उस ओर ही होता रहता है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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