*हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?*
मैं मजबूर हूँ, लाचार हूँ,
मोहग्रस्त हो गया हूँ?
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
आत्मा को कैसे ग्लानि युक्त करूँ?
पितामह पर कैसे तीर चलाऊँ?
गुरुद्रोण के सामने कैसे शस्त्र उठाऊँ?
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
हे पार्थ! यह महाभारत अपनों के ही बीच है,
परिवार के सदस्यों के ही बीच है,
भाईयों व स्वजनों के बीच है,
बन्धु व बांधवों के बीच है,
चयन तो सबको करना होगा,
एक पक्ष तो सबको चुनना होगा,
धर्म व अधर्म के बीच की इस लड़ाई में,
अब तटस्थ कोई नहीं रह सकेगा,
पांडव व कौरव में से एक पक्ष तो चुनना पड़ेगा।
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
हे पार्थ! युद्ध में कोई अपना पराया नहीं होता,
युद्ध में केवल मित्रपक्ष व शत्रुपक्ष होते हैं,
जो भी तुम्हारे शत्रुपक्ष में खड़ा है,
वह कितना ही प्रिय व सम्माननीय क्यों न हो,
अब उसकी एक और पहचान है,
वह अब योद्धा शत्रुपक्ष का है,
युद्ध मे तुम यह तय नहीं कर सकते,
कि शत्रुपक्ष के किस योद्धा व सैनिक को मारना है,
किस योद्धा व सैनिक को छोड़ना है,
तुम बाध्य हो हर उस व्यक्ति से लड़ने के लिए,
जो शत्रुपक्ष के समर्थन में खड़ा है अस्त्र-शस्त्र लिए।
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
हे पार्थ! प्रेम व मोह में,
स्वयं को कमज़ोर मत पड़ने दो,
जिन चरणों में सदा झुकाया सर,
अब उनसे स्वयं को लड़ने दो,
वह महान योद्धा थे मग़र एक गुनाह कर बैठे,
द्रौपदी चीरहरण को,
मात्र एक व्यक्तितगत समस्या मान बैठे,
मौन रहकर मौन समर्थन दे डाला,
अपने ही हाथों अपना सम्मान धो डाला,
जो जो द्रौपदी को वस्त्रहीन करने चले थे,
सबके सब वस्त्रहीन उस सभा में हो गए थे,
यह अपराध अक्षम्य है पार्थ,
छोड़ो अपनी ग्लानि का बोध,
उठाओ अस्त्र और करो संधान,
शत्रुपक्ष का अब कर दो सूर्यास्त।
हे पार्थ! यह युद्ध धर्म के रक्षार्थ है,
षड्यन्त्रकारी -अधर्मियों के नाश के लिए है,
शकुनि व दुर्योधन जैसों के विनाश के लिए है,
लेक़िन उन तक पहुंचने के मार्ग में,
ये भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य इत्यादि बाधक है,
उन तक पहुँचने के लिए,
इन सम्माननियों को मार्ग से हटाना ही पड़ेगा,
इनसे विवशता में ही सही,
युद्ध तो तुम्हे करना ही पड़ेगा।
यह सभी महान है,
इनके लिए मेरे हृदय में भी सम्मान है,
लेकिन वर्तमान में हुए षड्यंत्र में,
यह मौन रूप से सम्मिलित हैं,
द्रौपदी चीरहरण के,
यह मूक समर्थक हैं,
इसलिए आज इनके विरुद्ध,
तुम्हारे हाथ मे शस्त्र है।
हे पार्थ! अपनों से धर्म के लिए युद्ध करो,
जिनके चरणों में सदा झुकाया सर,
आज उनसे ही धर्म के लिए युद्ध करो।
🙏🏻श्वेता, DIYA
मैं मजबूर हूँ, लाचार हूँ,
मोहग्रस्त हो गया हूँ?
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
आत्मा को कैसे ग्लानि युक्त करूँ?
पितामह पर कैसे तीर चलाऊँ?
गुरुद्रोण के सामने कैसे शस्त्र उठाऊँ?
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
हे पार्थ! यह महाभारत अपनों के ही बीच है,
परिवार के सदस्यों के ही बीच है,
भाईयों व स्वजनों के बीच है,
बन्धु व बांधवों के बीच है,
चयन तो सबको करना होगा,
एक पक्ष तो सबको चुनना होगा,
धर्म व अधर्म के बीच की इस लड़ाई में,
अब तटस्थ कोई नहीं रह सकेगा,
पांडव व कौरव में से एक पक्ष तो चुनना पड़ेगा।
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
हे पार्थ! युद्ध में कोई अपना पराया नहीं होता,
युद्ध में केवल मित्रपक्ष व शत्रुपक्ष होते हैं,
जो भी तुम्हारे शत्रुपक्ष में खड़ा है,
वह कितना ही प्रिय व सम्माननीय क्यों न हो,
अब उसकी एक और पहचान है,
वह अब योद्धा शत्रुपक्ष का है,
युद्ध मे तुम यह तय नहीं कर सकते,
कि शत्रुपक्ष के किस योद्धा व सैनिक को मारना है,
किस योद्धा व सैनिक को छोड़ना है,
तुम बाध्य हो हर उस व्यक्ति से लड़ने के लिए,
जो शत्रुपक्ष के समर्थन में खड़ा है अस्त्र-शस्त्र लिए।
हे केशव! अपनों से कैसे युद्ध करूँ?
हे पार्थ! प्रेम व मोह में,
स्वयं को कमज़ोर मत पड़ने दो,
जिन चरणों में सदा झुकाया सर,
अब उनसे स्वयं को लड़ने दो,
वह महान योद्धा थे मग़र एक गुनाह कर बैठे,
द्रौपदी चीरहरण को,
मात्र एक व्यक्तितगत समस्या मान बैठे,
मौन रहकर मौन समर्थन दे डाला,
अपने ही हाथों अपना सम्मान धो डाला,
जो जो द्रौपदी को वस्त्रहीन करने चले थे,
सबके सब वस्त्रहीन उस सभा में हो गए थे,
यह अपराध अक्षम्य है पार्थ,
छोड़ो अपनी ग्लानि का बोध,
उठाओ अस्त्र और करो संधान,
शत्रुपक्ष का अब कर दो सूर्यास्त।
हे पार्थ! यह युद्ध धर्म के रक्षार्थ है,
षड्यन्त्रकारी -अधर्मियों के नाश के लिए है,
शकुनि व दुर्योधन जैसों के विनाश के लिए है,
लेक़िन उन तक पहुंचने के मार्ग में,
ये भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य इत्यादि बाधक है,
उन तक पहुँचने के लिए,
इन सम्माननियों को मार्ग से हटाना ही पड़ेगा,
इनसे विवशता में ही सही,
युद्ध तो तुम्हे करना ही पड़ेगा।
यह सभी महान है,
इनके लिए मेरे हृदय में भी सम्मान है,
लेकिन वर्तमान में हुए षड्यंत्र में,
यह मौन रूप से सम्मिलित हैं,
द्रौपदी चीरहरण के,
यह मूक समर्थक हैं,
इसलिए आज इनके विरुद्ध,
तुम्हारे हाथ मे शस्त्र है।
हे पार्थ! अपनों से धर्म के लिए युद्ध करो,
जिनके चरणों में सदा झुकाया सर,
आज उनसे ही धर्म के लिए युद्ध करो।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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