Wednesday, 24 June 2020

जिन पति या पत्नी के अंदर स्व-बोध(आत्म-बोध) नहीं उन पर क्रोध नहीं, अपितु दया करो क्योंकि व बेचारे नहीं जानते कि वह असभ्य व जंगली हैं, व गंदगी से भरे हैं।

*जिन पति या पत्नी के अंदर स्व-बोध(आत्म-बोध) नहीं उन पर क्रोध नहीं, अपितु दया करो क्योंकि व बेचारे नहीं जानते कि वह असभ्य व जंगली हैं, व गंदगी से भरे हैं।*

जिनकी पत्नी या जिनके पति नित्य कलह व गाली गलौज करते हैं, उन्हें देखो व सोचो कि इन बेचारों के मन में कितनी गंदगी भरी है, जब भी मुंह खोलते हैं गंदगी ही बाहर निकलती है। फ़िर सोचो ऐसे विकृत मानसिकता के ये क्यों व कैसे बने? इनके माता-पिता क्या इनके जैसे ही हैं, उन्होंने जब यह छोटे थे तब इनके बाल मन  में यह विचारों का ज़हर भरा। जब यह बच्चे रूप में जन्में होंगे तो इनका मन कोरा व ख़ाली होगा, इनको घृणा करना, बात बात पर गाली देने का सँस्कार तो माता पिता व आसपास के समाज ने ही दिया होगा। यह बेचारे वही रेकॉर्ड बजायेंगे जो इनकी मेमोरी कार्ड में संस्कारों द्वारा रेकॉर्ड किया गया होगा। अब सोचो कि इनके संस्कारो का शुद्धिकरण कैसे किया जाय? इन्हें शुद्ध व निर्मल मन वाला कैसे बनाया जाय? ऐसा गहन चिंतन करेंगे तो घर में युद्ध नहीं होगा, अपितु उपचारपरक कदम उठेंगे।

तीन गुब्बारों में अलग अलग रँग का पानी भरो, पिन चुभोने पर सबके भीतर से वही रँग निकलेगा जो रँग भरा होगा।

ऐसे ही टकराव या समस्या में या कोई गलती हो जाने पर आपके पति या आपकी पत्नी मुँह खोलते ही वही शब्द संग्रह निकालेगी/निकालेगा जो उनके चित्त के गुब्बारों में माता-पिता द्वारा दिये संस्कारों द्वारा भरा होगा।

आपकी सन्तान भी आपके और वर्तमान समाज के दिये संस्कारो के शब्दों को ही तो चित्त के गुब्बारे में संग्रह कर रहा है। और आप किस प्रकार के शब्द संग्रह शालीन या गालीगलौज भरे बोलते हैं क्या यह माता-पिता द्वारा दिये सँस्कार पर निर्भर नहीं है।

जब तक स्वयं बोध सदगुरु की शरण मे आकर व जप-तप-स्वाध्याय से नहीं होता, तब तक शब्द संग्रह हम निज के बदल नहीं सकते। माता-पिता के दिये सँस्कार ही सर चढ़कर बोलेंगे, व हमें वैसा बोलने पर मजबूर करेंगे।

💐श्वेता, DIYA

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