*प्रश्न:- स्वाध्याय करने का सही तरीका क्या है?*
उत्तर- स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है- 'स्वयं का अध्ययन करना'।
यह एक वृहद संकल्पना है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। इस कारण स्वाध्याय का अर्थ स्वयं अध्ययन करना भी है। बिना किसी मार्गदर्शन के पुस्तकों की सहायता से अध्ययन करना।
विभिन्न हिन्दू दर्शनों में स्वाध्याय एक 'नियम' है। स्वाध्याय का अर्थ 'स्वयं अध्ययन करना' तथा वेद एवं अन्य सद्ग्रन्थों का पाठ करना भी है।
जीवन-निर्माण और सुधार संबंधी पुस्तकों का पढ़ना, परमात्मा और मुक्ति की ओर ले जाने वाले ग्रंथों का अध्ययन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि करना स्वाध्याय कहलाता है।
आत्मचिंतन का नाम भी स्वाध्याय है। स्वयं अपने बारे में जानना और अपने दोषों को देखना भी स्वाध्याय है।
स्वाध्याय के बल से अनेक महापुरुषों के जीवन बदल गए हैं। शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्संग और स्वाध्याय दोनों आधार स्तंभ हैं।
सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।
स्वाध्याय - उपस्थित के साथ उपलब्ध होकर किया जाता है। शरीर की उपस्थिति के साथ मन का उपलब्ध होना अनिवार्य है।
जो भी विषय का स्वाध्याय करना है, पहले उसे तय करें। फ़िर वह विषयवस्तु किस पुस्तक से पढ़ना है यह तय कर लें। फिर उस पुस्तक के इंडेक्स को देखें कि जो विषयवस्तु चाहिए उससे सम्बन्धित आर्टिकल किस पेज़ में मिलेगा? पेज नम्बर पर जाकर आर्टिकल पढ़ें। हमेशा हाइलाइटर साथ रखें, और ज़रुरी जो लाइन लगे उसे हाइलाइट कर लें। इस तरह जब सम्बन्धित विषयवस्तु पढ़ लें। फिर उसकी एक सारांश बनाकर डायरी में नोट कर लें। पुनः उस पर गहन चिंतन करें , पुनः जो विचार उठें उसे लिख लें। पढ़ने के बाद उस पर चिंतन करना अनिवार्य है। मन के भीतर उसी विषयवस्तु पर स्वयं के साथ स्वयं डिस्कसन करें। पुनः जो फाइनल समझ उपजी, उसे नोट कर लें। इस तरह स्वाध्याय का एक क्रम पूरा होगा।
उसे किसी से शेयर करें, या नोट्स पोस्ट रूप में भेज दें। सत्संग में उसे एक्सप्लेन करना चाहिए।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है- 'स्वयं का अध्ययन करना'।
यह एक वृहद संकल्पना है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। इस कारण स्वाध्याय का अर्थ स्वयं अध्ययन करना भी है। बिना किसी मार्गदर्शन के पुस्तकों की सहायता से अध्ययन करना।
विभिन्न हिन्दू दर्शनों में स्वाध्याय एक 'नियम' है। स्वाध्याय का अर्थ 'स्वयं अध्ययन करना' तथा वेद एवं अन्य सद्ग्रन्थों का पाठ करना भी है।
जीवन-निर्माण और सुधार संबंधी पुस्तकों का पढ़ना, परमात्मा और मुक्ति की ओर ले जाने वाले ग्रंथों का अध्ययन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि करना स्वाध्याय कहलाता है।
आत्मचिंतन का नाम भी स्वाध्याय है। स्वयं अपने बारे में जानना और अपने दोषों को देखना भी स्वाध्याय है।
स्वाध्याय के बल से अनेक महापुरुषों के जीवन बदल गए हैं। शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्संग और स्वाध्याय दोनों आधार स्तंभ हैं।
सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।
स्वाध्याय - उपस्थित के साथ उपलब्ध होकर किया जाता है। शरीर की उपस्थिति के साथ मन का उपलब्ध होना अनिवार्य है।
जो भी विषय का स्वाध्याय करना है, पहले उसे तय करें। फ़िर वह विषयवस्तु किस पुस्तक से पढ़ना है यह तय कर लें। फिर उस पुस्तक के इंडेक्स को देखें कि जो विषयवस्तु चाहिए उससे सम्बन्धित आर्टिकल किस पेज़ में मिलेगा? पेज नम्बर पर जाकर आर्टिकल पढ़ें। हमेशा हाइलाइटर साथ रखें, और ज़रुरी जो लाइन लगे उसे हाइलाइट कर लें। इस तरह जब सम्बन्धित विषयवस्तु पढ़ लें। फिर उसकी एक सारांश बनाकर डायरी में नोट कर लें। पुनः उस पर गहन चिंतन करें , पुनः जो विचार उठें उसे लिख लें। पढ़ने के बाद उस पर चिंतन करना अनिवार्य है। मन के भीतर उसी विषयवस्तु पर स्वयं के साथ स्वयं डिस्कसन करें। पुनः जो फाइनल समझ उपजी, उसे नोट कर लें। इस तरह स्वाध्याय का एक क्रम पूरा होगा।
उसे किसी से शेयर करें, या नोट्स पोस्ट रूप में भेज दें। सत्संग में उसे एक्सप्लेन करना चाहिए।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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