Monday 8 June 2020

आत्मचिकित्सा - शक्तिस्रोत हमारे भीतर है।

*आत्मचिकित्सा - शक्तिस्रोत हमारे भीतर है।*

आत्मीय भाईयों एवं बहनों,
आशा है आप सब कुशल मङ्गल होंगे।

हम सभी जो जॉब करते हों या गृहकार्य या वृद्धावस्था के कारण हो, शरीर में दर्द के कारण कभी न कभी परेशान होते हैं। दर्द का ट्रीटमेंट न होने पर स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और   फिर किसी भी कार्य में मन नहीं लगता।

रोज़ रोज़ किसी से सेवा लेना और स्वयं की मालिश करवाना अच्छा भी नहीं लगता। फ़िर क्या करें कैसे इन दर्दों से छुटकारा पाएँ।

दर्द से छुटकारा हेतु पहले किचन और फ़िर अन्तर्मन की चिकित्सा केंद्र में जाना पड़ेगा।

1- जिनको जोड़ो में दर्द है वह देशी लहसन की दो कली बारीक काटकर गर्म पानी के साथ सुबह दवा की तरह गटक जाएँ। 5 मिनट बाद सौंफ ख़ाकर मुंह का स्वाद ठीक कर लीजिए। जितने भी जोड़ हैं उनको हल्का फुल्का ट्विस्ट करके इधर उधर घुमा के व्यायाम कर लीजिए जिससे जोड़ो में जमा गैस बाहर निकल जाए। अब कपड़े से पानी निकालने के लिए क्या करते हैं निचोड़ते हैं न, वैसे ही शरीर के अंगों को थोड़ा निचोड़ने वाली ट्विस्ट करने वाली अंगड़ाई व उठक बैठक वाली एकस्रसाइज़ कर लें। यूट्यूब की मदद ले लें। जोड़ो व बदन में दर्द पाचन के दौरान उत्तपन्न गैस के जमाव के कारण होती है उसे आपको निकालना है।

2- सरसों के तेल में अजवायन या लौंग डालकर घर मे उबालकर फिर ठंडा होने पर छान लें, या कोई बाजार से मालिश का तेल ले लें। जहां तक हाथ पहुंचे प्रत्येक दर्द की जगह या शरीर की स्वयं मालिश करें। कोशिश करें किसी की भी मदद न लें।

3- नहाते समय एक मग में पहले एक से दो मुठ्ठी नमक थोड़े से पानी मे घोल लें, चेहरे व सर को छोड़कर, गर्दन व गर्दन के नीचे सभी अंगों पर लिक्विड सोप की तरह अच्छे से मलकर स्नान कर लें। चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करके नहाएं, इससे नकारात्मक ऊर्जा डिस्चार्ज हो जाएगी, सकारात्मक प्राणऊर्जा भरने लगेगी। स्नान के वक्त निम्नलिखित मन्त्र से माता गंगा का स्मरण करें:-

ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा

इस जल स्नान से जल तत्व शरीर का संतुलित हो रहा है। प्राणवान हो रहा है।

4- पूजन स्थल पर कम्बल बिछाकर सुखासन पर कमर सीधी कर बैठ सकते हों तो अति उत्तम, नहीं तो कुर्सी पर कम्बल बिछाकर तकिए की सहायता से कमर सीधी कर बैठें। दिन में कम से कम 3 घण्टे थोड़ा ज्यादा जैसी भी सुविधा हो चलते हो या बैठते कमर सीधी व गर्दन सीधी कर अधिक से अधिक ऊर्जा ब्रह्माण्ड से स्वयं के भीतर खींचिए। गायत्रीमंत्र जपते हुए उगते सूर्य का ध्यान कीजिये, अब अपने शरीर के एक एक अंग पर सूर्य की रौशनी पड़ने व उससे वह स्थान गर्म होने का ध्यान कीजिये। यह ऊर्जा मालिश है।

5- कम से कम 5 से 10 मिनट खुली आँखों से देशी घी से जलाए दीपक को देखिए, भावना कीजिये यह अग्नि का प्राण स्नान हो रहा है। अग्नि तत्व शरीर का संतुलित हो रहा है। दैनिक यज्ञ कर सकें तो अतिउत्तम है।

6- खिड़की या बालकनी में जाईये,  यदि सुविधा नहीं तो पंखे के नीचे बैठिए, वायु स्नान का अनुभव कीजिये। वायु तत्व शरीर मे संतुलित हो रहा है। 5 से 10 मिनट हवा के प्रत्येक स्पर्श को अनुभूत कीजिये।

7- पृथ्वी तत्व के लिए ज़मीन पर हरी घास पर चलिए, यदि हरी घास व मिट्टी उपलब्ध नहीं तो सीमेंट की फ़र्श पर खड़े हो जाइये। भावना कीजिये माता पृथ्वी आपके पैर के तलवों से ऊर्जा आपके भीतर प्रवेश करवा रही हैं। 5 से 10 मिनट यह ध्यान कीजिए। पृथ्वी तत्व संतुलित होगा।

8- आकाश तत्व के लिए आकाश को 5 से 10 मिनट खुली आंखों से देखिए, भावना कीजिये कि आकाश तत्व शरीर के भीतर संतुलित हो रहा है।

9- अपना हाथ जगन्नाथ, जो स्वयं की मदद खुद नहीं करता उसकी मदद कोई नहीं करता। भगवान भी मदद नहीं करता। अतः जितनी उम्र है उतने मिनट का ध्यान प्राण ऊर्जा से शरीर को ओत प्रोत करने का करना ही पड़ेगा। कुर्सी या सोफा में कमर सीधी कर बैठे, व निम्नलिखित ध्यान करें:-

*युगऋषि* पुस्तक 📖 *पँच तत्वों द्वारा सम्पूर्ण रोगों का निवारण* में गिरा हुआ स्वास्थ्य सम्हालने, आत्मविश्वास बढाने व व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हेतु *भावना मन्त्र* को विस्तार से बताया है।

अच्छे सकारात्मक विचार से 👉🏻 अच्छी भावनाएं 👉🏻 अच्छी भावनाओं से 👉🏻 स्वास्थ्यकर अच्छे हार्मोन्स स्राव 👉🏻 जिससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

प्रतिदिन प्रातःकाल या सायं काल एकांत स्थान पर शांत चित्त होकर, नेत्र बन्द करके बैठ जाइए। शरीर को शिथिल व आरामदायक मुद्रा में रखिये। सब ओर से ध्यान हटाकर शरीर को निम्नलिखित *भावना मन्त्र* पर मन-चित्त को ध्यानस्थ कीजिये। दृढ़ता से यह विश्वास कीजिये कि *भावना मन्त्र* में कहे गए *दिव्य शक्ति युक्त वचन* से आपके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। आप स्वस्थ हो रहे हैं।

सर्वप्रथम मन ही मन 5 बार गायत्रीमंत्र जपिये व 3 बार महामृत्युंजय मंत्र जपिये:-

गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।*

महामृत्युंजय मंत्र - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

कुछ क्षण ईश्वर का ध्यान कीजिये, फिर भावना मन्त्र के एक एक वाक्यों को ध्यान से बोलिये व महसूस कीजिये।

👉🏻🌹🌹 *भावना मन्त्र* 🌹🌹👈🏻

"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"

"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। अब मैं समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। मैं अपने जीवन में सफ़लता के मार्गपर अग्रसर हूँ। मैं अपनी समस्त समस्याओं के समाधान हेतु सक्षम बन गया हूँ।"

"अब मैं एक बलवान शक्ति पिंड हूँ, एक ऊर्जा पुंज हूँ। अब मैं जीवन तत्वों का भंडार हूँ। अब मैं स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हूँ।"

निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-

1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्र/पुत्री हूँ।
2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्र/पुत्री हूँ।
3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ा/जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।
4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्र/पुत्री हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा/रही है।
5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।
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फिर गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।* बोलते हुए दोनों हाथ को आपस मे रगड़िये। हाथ की हथेलियों को आंखों के उपर रखिये धीरे धीरे आंख खोलकर हथेलियों को देखिए। फिर हाथ को पहले चेहरे पर ऐसे घुमाइए मानो प्राणतत्व की औषधीय क्रीम चेहरे पर लगा रहे हो। फिर हाथ को समस्त शरीर मे घुमाइए।

शांति तीन पाठ निम्नलिखित मन्त्र द्वारा बोलिये सबके स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए दोहराइये:-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

सभी मुझे मित्रवत देखें, और मैं सबको मित्रवत देखूँ। मैं जिसे देखूँ उसका कल्याण हो, जो मुझे देखे तो मेरा भी कल्याण हो। सभी सुखी हों, सबका उज्ज्वल भविष्य हो।

मेरे मन में किसी के लिए कोई राग, द्वेष और वैर भाव नहीं है। मेरे सभी मित्र हैं, मैं आत्मा हूँ, मैं सबका मित्र हूँ।

🙏🏻श्वेता, DIYA


मर्ज़ी आपकी है दर्द का रोना रोना है, या स्वयं का इलाज़ स्वयं करना है। मानसिक अपाहिज़ बनना है, या मानसिक रूप से मज़बूत बनना है। स्वयं आत्मनिर्भर बनना है या दूसरों पर बोझ बनना है। जैसा निर्णय आप लेंगे वैसा फ़ल भी आप भोगेंगे।

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