*युवा परजीवी नहीं होता, वह स्वयं के वजूद के निर्माण में जुटता है। आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बनता है और यश-कीर्ति अर्जन में भी आत्मनिर्भर बनता है।*
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जो अपनी सही आत्मसमीक्षा करेगा व अपनी योग्यता आंकेगा, वो दूसरे से ईर्ष्या नहीं करेगा, अपितु अपनी योग्यता बढाने पर विचार करेगा।
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खुद से प्रश्न करें - क्या मैं अपने माता पिता को गौरवान्वित होने की कोई वजह दे रहा हूँ? क्या मैंने अपना जन्म सार्थक किया?
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पिता के सम्मान को परजीवी कीड़े की भांति खाते रहना व महानता के भ्रम में अधिक उम्र का होकर जीना उचित नहीं, युवा को स्वयं के वजूद के आधार बात करनी चाहिए।
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युवा वही है जो आत्मनिर्भर हो, जिसको उसके नाम से लोग पहचाने, पिता व माता के नाम को आगे बढ़ाये, अपना एक वजूद बनाये।
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अधिक उम्र का होने पर पिता को कमाई देनी चाहिए न कि उसकी कमाई खानी चाहिए, इसी तरह अधिक उम्र में पिता का यश बढ़ाना चाहिए, न कि उनके यश पर आश्रित होकर जीना चाहिए। पिता यदि महान है तो उसके आदर्श को अपनाते हुए उसे अपना व्यक्तित्व गुरु मानकर स्वयं को उसके जैसा महान बनाने में जुट पड़ना चाहिए। पिता से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
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प्रारब्ध कहो या किस्मत, वह बेचारा मात्र परिस्थितियों व सुअवसर का निर्माण कर सकता है या विपरीत परिस्थितियों या कुअवसर का निर्माण कर सकता। लेकिन आपने देखा होगा कि एक ही परिस्थति में कोई सफ़लता के नए आयाम बनाता है और कोई स्वयं ही टूटकर बिखर जाता है।
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याद रखिये, भाग्य पुरुषार्थी व्यक्ति के सुअवसर के मिलन को कहते हैं। दुर्भाग्य सुअवसर के आलसी व्यक्ति के पास से गुजरने को कहते हैं।
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प्रारब्ध पुरुषार्थी व्यक्ति को परास्त नहीं कर सकता।
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उत्साह, उमंग, पुरुषार्थ व बुद्धिबल से भरे जुझारू व्यक्तित्व को युवा कहते हैं।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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जो अपनी सही आत्मसमीक्षा करेगा व अपनी योग्यता आंकेगा, वो दूसरे से ईर्ष्या नहीं करेगा, अपितु अपनी योग्यता बढाने पर विचार करेगा।
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खुद से प्रश्न करें - क्या मैं अपने माता पिता को गौरवान्वित होने की कोई वजह दे रहा हूँ? क्या मैंने अपना जन्म सार्थक किया?
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पिता के सम्मान को परजीवी कीड़े की भांति खाते रहना व महानता के भ्रम में अधिक उम्र का होकर जीना उचित नहीं, युवा को स्वयं के वजूद के आधार बात करनी चाहिए।
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युवा वही है जो आत्मनिर्भर हो, जिसको उसके नाम से लोग पहचाने, पिता व माता के नाम को आगे बढ़ाये, अपना एक वजूद बनाये।
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अधिक उम्र का होने पर पिता को कमाई देनी चाहिए न कि उसकी कमाई खानी चाहिए, इसी तरह अधिक उम्र में पिता का यश बढ़ाना चाहिए, न कि उनके यश पर आश्रित होकर जीना चाहिए। पिता यदि महान है तो उसके आदर्श को अपनाते हुए उसे अपना व्यक्तित्व गुरु मानकर स्वयं को उसके जैसा महान बनाने में जुट पड़ना चाहिए। पिता से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
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प्रारब्ध कहो या किस्मत, वह बेचारा मात्र परिस्थितियों व सुअवसर का निर्माण कर सकता है या विपरीत परिस्थितियों या कुअवसर का निर्माण कर सकता। लेकिन आपने देखा होगा कि एक ही परिस्थति में कोई सफ़लता के नए आयाम बनाता है और कोई स्वयं ही टूटकर बिखर जाता है।
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याद रखिये, भाग्य पुरुषार्थी व्यक्ति के सुअवसर के मिलन को कहते हैं। दुर्भाग्य सुअवसर के आलसी व्यक्ति के पास से गुजरने को कहते हैं।
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प्रारब्ध पुरुषार्थी व्यक्ति को परास्त नहीं कर सकता।
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उत्साह, उमंग, पुरुषार्थ व बुद्धिबल से भरे जुझारू व्यक्तित्व को युवा कहते हैं।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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