Monday 20 July 2020

श्रेष्ठ सुसंस्कारी बुद्धिमान सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 5)

*श्रेष्ठ सुसंस्कारी बुद्धिमान सन्तान का निर्माण - 21 वर्षीय परियोजना (भाग 5)*

बच्चे की उम्र - 0 से किशोरावस्था

*अथातो ब्रह्म जिज्ञासा!* *जिसकी ब्रह्म-दर्शन की जिज्ञासा जितनी प्रबल होती है, वह उतनी ही शीघ्रता से उसे पाने को जुटता है। अध्यात्म की ओर बढ़ता है।*

*जो प्रश्न पूँछता है - वह एक बार मूर्ख बन सकता है, लेकिन जो प्रश्न नहीं पूँछता वह हमेशा मूर्ख रहता है। ज्ञान से वंचित रहता है। विज्ञान की खोज़ का आधार प्रश्न - जिज्ञासा ही तो है।*

समस्त उपनिषद व पुराणों का आधार व जन्म किसी न किसी की जिज्ञासा व उसके समाधान की प्रक्रिया में हुआ।

समस्त वैज्ञानिक खोज़ का आधार व जन्म किसी न किसी की जिज्ञासा व उसके समाधान की खोज में हुआ है।

अपने बच्चे के अंदर "ब्रह्म" व "आत्मा" को जानने की जिज्ञासा उतपन्न कर दो।तुम उसके भीतर यह प्रश्न उठा दो। वह अध्यात्म की ओर चल पड़ेगा

प्रवचन बच्चे को देंगे तो बच्चे आपसे भागेंगे, उन्हें प्रश्न देंगे तो वह उत्तर खोजेंगे, फिर न मिलने पर वह आकर आपसे पूँछेंगे। उनमें जिज्ञासा की भूख पैदा करो।

बच्चे को अंधश्रद्धा मत सिखाना, कहना मैं मेरा अनुभव कह रहा हूँ, पढा हुआ व सीखा हुआ बता रहा हूँ। तुम इस पर विचार करके अपना मत बताओ, शास्त्रार्थ करो। इस पर चर्चा - परिचर्चा करो।

प्रश्न पूंछने वाला बच्चा उत्तम है, आपको उत्तर ढूंढकर उसे बताना चाहिए। यदि उत्तर न आये तो बोलो चलो इसका उत्तर मिलकर ढूढते है। कभी कभी बच्चे ऐसे प्रश्न पूंछते हैं जिनका उत्तर हमारे पास नहीँ होता, तब हम उन्हें डांटकर भगा देते हैं। हम गुस्से का प्रदर्शन करते हैं। तब हम एक बच्चे के जिज्ञासु होने के मार्ग को अवरुद्ध कर देते हैं।

बच्चे को समझाएं कि मन में उत्तपन्न समस्त चीज़े विचारों से ही बनती है।
जिन मन के मकड़जाल को तुम्हारे नकारात्मक विचार ही बनाते हैं, इन मकड़जाल को मन के सकारात्मक विचारों की कुल्हाड़ी से तुम नष्ट कर सकते हो।

तुम दूसरों को कुछ साबित करने के लिए मत पढ़ो न मेहनत करो। केवल स्वयं को ईश्वर की बनाई सर्वश्रेष्ठ कृति साबित करने के लिए पढ़ो व मेहनत करो।

तुम मनुष्य हो ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हो। मछली न होते हुए भी तुम मानवीय बुद्धि से बनाई पनडुब्बी से जल के भीतर रह सकते हो। पक्षी न होते हुए भी तुम मानवीय बुद्धि से बनाई हवाई जहाज से उड़ सकते हो। हाथी न होते हुए भी हज़ारो टन वजन मानवीय बुद्धि से बनाई क्रेन मशीन से उठा सकते हो। तुम सर्वश्रेष्ठ हो क्योंकि तुम्हारे पास बुद्धि है, जो जानवरो के पास नहीं है।

*बेटे, लेक़िन यह बुद्धि बीज रूप में सबको मिलती है, वृक्ष रूप में नहीं। इसे रोज नई नई चीज़े पढ़कर खाद पानी देना पडता है। इसके विकास में तुम्हे अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। जब बुद्धि का पेड़ तुम्हारे प्रयत्न से बड़ा हो जाता है, फल लगने लगते हैं।तब जीवन धन्य बनता है। अतः यदि तुम बुद्धि के वृक्ष को बड़ा फलदार बनाना चाहते हो तो आज मेहनत करो। यह तुम्हारा प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष बनेगा, तुम्हारी मनोकामना पूरी करेगा।*

तुम्हारी शक्ति तीन स्तर पर है - प्रथम शरीर , द्वितीय - बुद्धि व तृतीय- भावनाएं

यदि तीन स्तर पर तुम स्वयं को साध लोगे तो तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य को तुम एन्जॉय कर सकोगे।

जिस कुर्सी व पद को तुम चाहते हो उस पद व कुर्सी की जो योग्यता चाहिए उससे डबल योग्य बनो। जिससे सभी अन्य दावेदारों से तुम ज़्यादा योग्य पाओ।

वही तारा तुम नोटिस करते हो जो ज्यादा चमकता है। वही व्यक्ति जॉब हासिल करता है या व्यवसाय में सफल होता है जो अन्य से ज्यादा योग्य होता है।

रौशनी के लिए बल्ब का होना जितना अनिवार्य है उससे कहीं अधिक अनिवार्य बिजली का होना है। दोनों की मौजूदगी होने पर भी स्विच बटन ऑन/ऑफ प्रभावित करता है। तुम्हारा मन वह स्विच है।

तुम्हारा शरीर व बुद्धि मोबाइल की तरह है, यह आत्मा सिम की तरह है। ब्रह्माण्ड से अनन्त प्राण ऊर्जा का प्रवाह बिजली की तरह है। मग़र शरीर व प्राण को चार्ज करने का चार्जर तुम्हारा मन है। यदि प्राणवान व ऊर्जावान स्वयं को बनना चाहते हो तो ध्यान करके मन के चार्जर को कम से कम 20 मिनट उस ब्रह्माण्ड चेतना से जुड़ने दो, स्वयं के प्राण को नित्य चार्ज करो। नेत्र बन्द, कमर सीधी, दोनो हाथ गोदी में रखकर आती जाती श्वांस को ध्यान से देखो और भावना करो कि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तुम्हारी ओर आकृष्ट हो रही है। तुम्हारा मन का चार्जर उस ब्रह्माण्ड ऊर्जा से तुम्हारे अस्तित्ब को चार्ज कर रहा है। यह ऊर्जा तुम्हे हमेशा उत्साह उमंग व शांति सुकून से ओतप्रोत कर देगी। Where attention goes, energy flows. तुम्हारा ध्यान ज्यों ही आती जाती श्वांस पर जाएगा ऊर्जा को यही श्वांस चुम्बक(magnet) की तरह खींचने में सक्षम हो जाएगा।

बेटे, जैसे अंधेरे में कुछ गुम हो जाये तो उसे ढूढने का पुरुषार्थ तो हमें ही करना पड़ता है।  अध्यात्म की रौशनी तो मोमबत्ती की तरह केवल सहायता करती है, वह मोमबत्ती समान नहीं ढूढती।

अध्यात्म की रौशनी मोमबत्ती की तरह  अंतर्जगत को रौशन कर देगी, लेकिन समाधान तो तुम्हें स्वयं पुरुषार्थ से ढ़ूढ़ना पड़ेगा। अध्यात्म मोमबत्ती की तरह पुरुषार्थ का सहायक(Helper) है, अध्यात्म कोई पुरुषार्थ का स्थानापन्न( Replacement ) नहीं है।

तन, मन व भावनाओं के संतुलन में अध्यात्म सहायक है।

जब केवल पैर चलते हैं तो उसे भटकना कहते हैं, जब पैर के साथ बुद्धि भी चलती है तब उसे यात्रा कहते हैं, जब बुद्धि के साथ भावनाये आबद्ध होती हैं तब उसे सुखद यात्रा कहते हैं, जब इनके साथ आत्मज्ञान की रौशनी होती है। तब इसे पूर्ण सफल सुखद यात्रा कहते है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

1 comment:

  1. didi, namaskar, shreshth santan wala pura pustak chahiye ise kaise download kare ya to kahase milega?

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