Tuesday 21 July 2020

पँछी आकाश में उड़ता है, घोसला धरती पर बनाता है,

पँछी आकाश में उड़ता है,
घोसला धरती पर बनाता है,
उड़ने के लिए आकाश है,
आराम करने के लिए घोसला है।

यदि वह उड़ने की चाह में,
घोसला न बनाएगा,
जब टूटकर थककर वापस आएगा,
तो आराम की जगह वह न पायेगा।

तुम भी जितने कदम बाह्य जगत में चलते हो,
उसका शतांश अंतर्जगत में भी आओ,
जितना समय बाह्य वैभव जुटाने में खर्चते हो,
उसका शतांश अंतर्जगत के वैभव में भी खर्चो।

तुम्हारे अंतर्मन के घोंसले को,
तुम बनाना न भूलना,
जब थककर आराम करना चाहो,
तब अंतर्मन में प्रवेश कर जाना।

बाह्य व भीतर के संतुलन के महत्व को,
तुम कभी न भूलना,
बाह्य जीवन की उलझन को,
अंतर्दृष्टि से सुलझाना।

अंतर्दृष्टि के अभाव में,
जीवन की ठोकरों से बच न सकोगे।
अंतर्मन यदि कंगाल हुआ तो,
सांसारिक वैभव भी भोग न सकोगे।

नित्य अंतर्मन का घोषला,
गहन ध्यान में जाकर बनाते रहना,
स्वयं के अंतर्जगत के वैभव को,
नित्य व्यवस्थित करते रहना।

ध्यान में इतना अभ्यस्त हो जाना कि,
जब चाहे तब,
अंतर्मन में प्रवेश कर सको,
बाह्य जगत से नेत्र बन्द कर,
अंतर्जगत में आराम कर सको।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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