Thursday, 2 July 2020

भारत की आत्मा, बसती है गाँवो में*

*भारत की आत्मा, बसती है गाँवो में*

जिसके पास नहीं है गाँव,
वो क्या जाने प्यार व प्रकृति की छाँव,
जिसके पास नहीं है गाँव,
वो क्या जाने,
वृक्षों के नीचे लेना प्राण भरी श्वांस।

खुले नेत्रों जहां हो प्रकृति के दर्शन,
हरियाली से भर जाए जहां तन मन,
ताज़े सब्जी फ़लों का स्वाद,
वो क्या जाने,
जिसके पास नहीं है गाँव।

गाय का रंभाना,
उसे पानी से नहलाना,
बछड़े संग खेलना,
गाय का ताज़ा दूध पीना,
शुद्ध दूध दही व मक्खन का स्वाद,
वो क्या जाने,
जिसके पास नहीं है गाँव।

ग़ांव के चौपाल की मस्ती,
वो ताजे गन्ने के रस की लस्सी,
वो ताजे आलू मटर का नाश्ता,
वो मौसमी फलों के आचार का स्वाद,
वो क्या जाने,
जिनके पास नहीं है गाँव।

वो मिट्टी के जलते चूल्हे के,
सोंधी सोंधी खुशबू में पकती,
मक्के बाजरे की रोटियां,
देशी मक्खन गुड़ व सरसों के साग का स्वाद,
वो क्या जाने,
जिनके पास नहीं है ग़ांव।

इतने सारे देशी उत्सव,
इतने सारे देशी नृत्य व गान,
रँग बिरंगे वो पहनते परिधान,
गाँव मे लगते देशी मेले की शान,
खनकती चूड़ियाँ व बजती पायल की धुन,
वो क्या जाने,
जिनके पास नहीं है गाँव।

भारत की आत्मा बसती हैं गाँवो में,
अन्नदाता किसान रहता है गाँवों में,
भारत एक कृषि प्रधान देश है,
कृषि की उन्नति में ही देश की उन्नति है,
देश के सर्वोतोन्मुखी विकास का आधार,
बनेगा प्रत्येक ग़ांव व किसान,
तभी पुनः देश सोने की चिड़िया बनेगा,
तभी भारत का विश्व में परचम लहराएगा,
बोलो जय जवान! जय किसान!,
दोनों ही हैं हमारे स्वाभिमान।
किसान और ग़ांव को दो सम्मान,
उनके उत्थान से ही होगा राष्ट्र उत्थान।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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