Friday, 24 July 2020

जीवन के खेल में तब तक सन्यास सम्भव नहीं जब तक खिलाड़ी स्वयं न चाहे..

*जीवन के खेल में तब तक सन्यास सम्भव नहीं जब तक खिलाड़ी स्वयं न चाहे..*

जिस प्रकार सच्चा बैट्समैन बैटिंग की जिम्मेदारी उठाते हुए कहता है कि मैं इसलिए आउट हुआ क्योंकि मैं यह बॉल खेल नहीं पाया । वह इस बात का रोना नहीं रोता कि बॉलर और  उसकी 11 लोगों की टीम ने मुझे मिलकर आउट कर दिया, सब बहुत बुरे हैं।  सच्चा बैट्समैन क्योंकि स्वयं की सफलता व असफ़लता की जिम्मेदारी उठाता है, इसलिए इतिहास बनाता है। दोषारोपण छोड़कर खेल के सुधार में जुटता है।

सच्चा बैट्समैन कहता है, मैं और ज़्यादा तैयारी अगले मैच की करूंगा, अपनी बैटिंग और एकाग्रता सुधारूँगा और पुनः नए मैच में इतिहास बनाऊंगा।

बुरा बैट्समैन स्वयं के आउट होने पर बहाने बनाता है, पिच सही नहीं थी, बॉलर बहुत तेज था, साइड स्क्रीन में लोग खड़े थे, रौशनी कम है। यह बहाने ढूढने वाले कभी कोई इतिहास नहीं बनाते।

वैसे ही समस्या में उदासी व डिप्रेशन का कारण समस्या को हैंडल करने की हमारी चूक है। वह अन्य 11 लोग नहीं जिन्होंने ने हमारे लिए समस्या उत्तपन्न की।

अब स्वयं तय कर लें कि सच्चे जीवन खिलाड़ी बनकर स्वयं के जीवन की जिम्मेदारी उठाना है, या बुरा जीवन का खिलाड़ी बनकर अपनी असफ़लता के लिए बहाने ढूढने व दोषारोपण में जुटना है। जीवन परिणाम उसी अनुसार होगा।

जिंदगी के खेल में हमें तब तक कोई सन्यास नहीं दिला सकता जबतक हम स्वयं न चाहें। एक मैच हारे तो क्या हुआ अगला मैच जीत सकते हैं। बस अभ्यास व वैराग्य की प्रैक्टिस तो करें, गुरु, गीता व गायत्रीमंत्र की कोचिंग तो लें।

अपने जीवन कोच सदगुरु के साहित्य पढ़े तो सही, नित्य गायत्रीमंत्र जपें तो सही, नित्य श्रीमद्भागवत गीता का एक अध्याय पढ़े तो सही, नित्य सूर्य की ऊर्जा ध्यान में धारण करें तो सही। योग-प्राणायाम से स्वयं को चुस्त दुरुस्त रखें तो सही। तब अपने जीवन को खेलने उतरे, इतिहास बनेगा, कर्म की कुशलता से प्रत्येक समस्या की बॉल को खेलना आ जायेगा।

इतिहास बनाना है तो जीवन के खेल में योग्यता अर्जित करने में जुटे।

भाइयों बहनों, अपने जीवन की जिम्मेदारी स्वयं उठाओ, अपने जीवन मे जो कुछ घट रहा है उसे अपने कर्मफ़ल के कारण समझो। समस्या को हैंडल करनी योग्यता या अयोग्यता का परिणाम समझो। स्वयं को इतना कुशल बनाओ कि जीवन के खेल को हंसते हंसते सरलता व सहजता से खेल सको।

मेरे वह भगवान को गाली देने वाले भाइयों बहनों , यह कहने वाले कि भगवान हमारी नहीं सुनता। कृपया इस सत्य को स्वीकारो कि हम भगवान की जीवन कोचिंग लेने नित्य नहीं जाते, नहीं सुनते व पढ़ते श्रीमद्भागवत गीता, नहीं जपते गायत्रीमंत्र व नहीं करते ध्यान, शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग व्यायाम प्राणायाम नहीं करते, मन को स्वस्थ रखने के लिए स्वाध्याय नहीं करते। जीवन खेल नहीं सीखते, रोना रोते रहते हैं कि भगवान हमारी नहीं सुनता। मेरी तो किस्मत ही ख़राब है। सत्य स्वीकार लो कि तुम भगवान की नहीं सुनते, तुम ईश्वरीय अनुशासन में नहीं चलते, तुम कर्मफ़ल का विधान नहीं समझते, तुम नित्य स्वयं को योग्य बनाने में नहीं जुटते, जीवन खेल नहीं सीखते।

💐श्वेता, DIYA

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