प्रश्न - *दी, घर के दिवंगत सदस्य की पुण्यतिथि का आयोजन घर में यज्ञ या दीपयज्ञ के माध्यम से लाकडाउन में स्वयं घर पर कैसे करें? इस समय कोई किसी के घर आ जा नहीं रहा है।*
उत्तर- आत्मीय बहन,
दीपयज्ञ या दैनिक यज्ञ के माध्यम से घर दिवंगत सदस्य की पुण्यतिथि आसानी से घर मना सकते हैं। यह वह दिन होता है, जब दिवंगत घर का सदस्य जो अब पितर योनि में है या कहीं और किसी के जन्म भी ले चुका हो, तो भी उसकी याद में हम यज्ञाहुति के माध्यम से उसे तृप्त, शांत व तुष्ट करते हैं। उसे सभी घर के सदस्य मिलकर भावांजलि अर्पित करते हैं।
लाकडाउन में बड़े यज्ञ सम्भव नहीं है, दैनिक यज्ञ की सुविधा हो तो वो कर लें या सरल दीपयज्ञ यज्ञ घर मे मौजूद सामग्री से बता रही हूँ वह कर लें । पुस्तक - कर्मकांड भाष्कर में यज्ञ के मन्त्र है। यदि यह पुस्तक हो तो इससे करें। यदि पुस्तक नहीं है तो निम्नलिखित सरल विधि से कर लें।
*विधि* - सुबह के वक़्त साधारण नमक को पानी मे डालकर माँ गंगा का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए उस जल से बच्चे को नहाएं। सभी परिजन इन्ही मन्त्र को पढ़ते हुए नहाए।
मन्त्र - *ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा*
समस्त परिवार जन नहाने के बाद ऊर्जा बढाने व शांति के लिए पीले या श्वेत या नीला या आसमानी रँग का कपड़ा पहनें। पूजन के वक्त लाल या काले कलर का वस्त्र न पहनें। गायत्री मंत्र दुपट्टा हो तो उसे जरूर धारण करें।
घर में पका अन्न जैसे पूड़ी, सब्जी, हलवा या चावल से बनी खीर या मीठे चावल या हलवा बनाकर भोग लगाएं।
पूजन की बड़ी चौकी में भगवान की स्थापना करें, व उसके नीचे की चौकी में दिवंगत आत्मा की तस्वीर रखें।
घर मे कम्बल का ऊनि शाल का आसन बिछा लें और उस पर बैठ जाएं, पवित्रीकरण, गुरु, गायत्री या जो भी इष्ट भगवान हों उनका आह्वाहन करलें, कलश स्थापना व पूजन कर लें।
दैनिक यज्ञ की व्यवस्था है तो यज्ञ कर लें और दीपयज्ञ करना है तो पांच दीप जला लें। यदि मिट्टी के दीपक नहीं है तो पांच स्टील की कटोरी में दीपक जला लें, या आटे के दीपक बनाकर जला लें। दैनिक यज्ञ व दीपयज्ञ दोनो साथ भी हो सकता है।
पूजन अक्षत(चावल) --पुष्प(यदि मिल जाये तो उत्तम है नहीं हो तो चावल को रोली से रँग लें और उसे पुष्प की तरह उपयोग में लें) से क्रमशः पूजन करें।
ॐ गुरुवे नमः
ॐ गायत्री देव्यै नमः
ॐ महाकालाय नमः
ॐ यमाय नमः
ॐ अर्यमा देवाय नमः
ॐ पितर देवताभ्यो नमः
सभी को प्रणाम करें..
दैनिक यज्ञ कर रहे हैं तो कर्मकांड भाष्कर में वर्णित मन्त्र से अग्नि प्रज्ज्वलित करें, दीपयज्ञ कर रहे हैं तो दीप मन्त्र पढंकर दीपक प्रज्ज्वलित करें। मन्त्र नहीं पता तो गायत्री मंत्र श्रद्धा से पढ़ते हुए अग्नि प्रज्वलित कर लें।
दीपक या यज्ञाग्नि को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।
दीपक या यज्ञ को अक्षत पुष्प चढ़ाते हुए निम्नलिखित मन्त्र हाथ जोड़कर समस्त परिवार से दोहराने को बोलें।
*ॐ परमार्थ मेव स्वार्थ मनिष्ये* - परमार्थ को ही स्वार्थ मानेंगे।
हे अग्नि देवता तरह अखंड पात्रता दीजिये, अक्षय स्नेह दीजिये, हमारी निष्ठा ऊर्ध्व मुखी बनाइये।
घर मे रूम फ्रेशनर हो तो कमरे में छिड़क दें, मोबाइल में बांसुरी या ॐ की मधुर ध्वनि हल्के आवाज में चला लें। इससे मन पूजन में लगता है,मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक प्रभाव मन में पड़ता है।
दो कटोरी लें, एक में अक्षत(साबुत चावल) और दूसरी ख़ाली लें।
अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भरी कटोरी से अत्यंत थोड़े अक्षत जैसे यज्ञ में आहुति उठाते हैं वैसे ही मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से उठाएं और स्वाहा के साथ खाली कटोरी में डालते जाएं।
यदि दैनिक यज्ञ कर रहे हैं तो हवन सामग्री को प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुत करें।
*24 आहुति गायत्री मंत्र की -*
*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्*
*5 आहुति महामृत्युंजय मंत्र की-*
*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्*
*3 आहुति चन्द्र गायत्री मन्त्र की -*
मंत्र-
*ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।।इदं चन्द्रायै इदं न मम्।*
*3 आहुति सूर्य गायत्री मन्त्र से:-*
मंत्र-
*।। ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।इदं सूर्यायै इदं न मम्।*
*3 आहुति यम गायत्री मन्त्र से:-*
मंत्र-
*।।ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि । तन्नो यम: प्रचोदयात् ।इदं यमाय इदं न मम्*
*3 आहुति दिवंगत आत्मा की शांति, तुष्टि व तृप्ति के लिए निम्नलिखित मन्त्र से करे - )*
*शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।*
*शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥ ऋग्वेद १-९०-९।*
*स्वाहा इदम् दिंवगतात्मानाम् शानत्यर्थम इदम् न मम्*
भजन कीर्तन स्तुति जो करना चाहे कर लें, फिर उगते सूर्य का ध्यान नेत्र बन्द करके करें। भगवान सूर्य से कहें हमारे घर का यह सदस्य - (उसका नाम बोलें) इस वक्त किस योनि में है या कहाँ नया जन्म ले चुका है। हमें नहीं पता, लेकीन सूर्य देव भगवान यम आपके पुत्र हैं, और समस्त सृष्टि को देख सकते हैं। हमारी भावांजलि व श्रद्धा उस तक पहुंचा दीजिये। वह जहां भी जिस अवस्था मे हो उसे शांति दीजिये, तृप्ति दीजिये, तुष्टि दीजिये।
कुछ देर पुनः पांच जलते हुए दीपकों को देखें या यज्ञाग्नि को देखें, भावना करे कि यह पांच दीपक पँच तत्वों के प्रतीक हैं, यह हमारे पँच प्राणों को चार्ज कर रहे हैं।
पुनः दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।
यदि घर में पुष्प है तो वह हाथ में ले लें या रंगे हुए अक्षत हाथ मे ले लें और तीन बार दिवंगत आत्मा की तसवीर को अर्पित करें। मृत्यु के बाद सभी पितर बन जाते हैं। अतः घर के प्रत्येक सदस्य तीन बार भावांजलि में पुष्प अक्षत दिवंगत आत्मा को अर्पित करते हुए बोलें:-
पितर शांत हों, शांत हो, शांत हो
पितर मुक्त हों, मुक्त हों, मुक्त हों,
पितर तृप्त हों, तृप्त हों, तृप्त हों।
वेदपाठी और दैनिक गायत्री साधना व यज्ञ करने वाला ब्राह्मण मिले तो उसे भोजन करवा दें, नहीं तो कुछ गरीब बच्चों को पारले जी या किसी अच्छे मीठे बिस्किट के पैकेट बंटवा दें।
आरती व भजन कीर्तन का क्रम कर लें।
शांतिपाठ करके उठ जाएं, अक्षत चिड़िया को डाल दें या किसी भूखे को चावल दान करते समय उन अक्षतों का भी प्रयोग कर लें। इन अक्षतों का घर के भोजन में बना कर खाना वर्जित है। इसे दान ही करना होगा।
दिवंगत आत्मा के अनुमानित वजन का अनाज किसी गरीब को या गौशाला में दान करवा दें।
यदि दिवंगत को अक्षय पुण्य दान करना चाहते हैं तो उसके नाम पर पांच वृक्षों का वृक्षारोपण करके उसे उसके नाम की वाटिका का नेम प्लेट लगा के बना दें।जब तक वृक्ष ऑक्सीजन छोड़ता रहेगा, दिवंगत आत्मा जहां भी पितर लोक या कहीं जन्म चुकी हो, उसे पुण्य मिलता रहेगा।
पूजन के अंत मे कलश का जल सूर्य भगवान को अर्पित करें, तुलसी के पौधे में चढ़ा दें। कलश के ऊपर रखा नारियल पूजन के बाद तोड़कर उसकी गिरी को प्रसाद स्वरूप खा लें।
गुरुधाम में ऑनलाइन श्रद्धानुसार दिवंगत आत्मा के नाम पर डोनेशन कर दें।
अध्यात्म जगत में कर्मकांड मात्र भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए होते हैं। जिस प्रकार हृदय में प्रेम न हो तो किसी को पुष्प अर्पित करने का कर्मकांड व्यर्थ है, यदि अगाध प्रेम हो तो ही पुष्प के माध्यम से प्रेम प्रदर्शित व अर्पित करने का अर्थ होता है। अतः भगवान कर्मकांड को तभी स्वीकारते हैं जब श्रद्धा, विश्वास व प्रेम की भावनाओं के साथ उसे किया जाय।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय बहन,
दीपयज्ञ या दैनिक यज्ञ के माध्यम से घर दिवंगत सदस्य की पुण्यतिथि आसानी से घर मना सकते हैं। यह वह दिन होता है, जब दिवंगत घर का सदस्य जो अब पितर योनि में है या कहीं और किसी के जन्म भी ले चुका हो, तो भी उसकी याद में हम यज्ञाहुति के माध्यम से उसे तृप्त, शांत व तुष्ट करते हैं। उसे सभी घर के सदस्य मिलकर भावांजलि अर्पित करते हैं।
लाकडाउन में बड़े यज्ञ सम्भव नहीं है, दैनिक यज्ञ की सुविधा हो तो वो कर लें या सरल दीपयज्ञ यज्ञ घर मे मौजूद सामग्री से बता रही हूँ वह कर लें । पुस्तक - कर्मकांड भाष्कर में यज्ञ के मन्त्र है। यदि यह पुस्तक हो तो इससे करें। यदि पुस्तक नहीं है तो निम्नलिखित सरल विधि से कर लें।
*विधि* - सुबह के वक़्त साधारण नमक को पानी मे डालकर माँ गंगा का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए उस जल से बच्चे को नहाएं। सभी परिजन इन्ही मन्त्र को पढ़ते हुए नहाए।
मन्त्र - *ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा*
समस्त परिवार जन नहाने के बाद ऊर्जा बढाने व शांति के लिए पीले या श्वेत या नीला या आसमानी रँग का कपड़ा पहनें। पूजन के वक्त लाल या काले कलर का वस्त्र न पहनें। गायत्री मंत्र दुपट्टा हो तो उसे जरूर धारण करें।
घर में पका अन्न जैसे पूड़ी, सब्जी, हलवा या चावल से बनी खीर या मीठे चावल या हलवा बनाकर भोग लगाएं।
पूजन की बड़ी चौकी में भगवान की स्थापना करें, व उसके नीचे की चौकी में दिवंगत आत्मा की तस्वीर रखें।
घर मे कम्बल का ऊनि शाल का आसन बिछा लें और उस पर बैठ जाएं, पवित्रीकरण, गुरु, गायत्री या जो भी इष्ट भगवान हों उनका आह्वाहन करलें, कलश स्थापना व पूजन कर लें।
दैनिक यज्ञ की व्यवस्था है तो यज्ञ कर लें और दीपयज्ञ करना है तो पांच दीप जला लें। यदि मिट्टी के दीपक नहीं है तो पांच स्टील की कटोरी में दीपक जला लें, या आटे के दीपक बनाकर जला लें। दैनिक यज्ञ व दीपयज्ञ दोनो साथ भी हो सकता है।
पूजन अक्षत(चावल) --पुष्प(यदि मिल जाये तो उत्तम है नहीं हो तो चावल को रोली से रँग लें और उसे पुष्प की तरह उपयोग में लें) से क्रमशः पूजन करें।
ॐ गुरुवे नमः
ॐ गायत्री देव्यै नमः
ॐ महाकालाय नमः
ॐ यमाय नमः
ॐ अर्यमा देवाय नमः
ॐ पितर देवताभ्यो नमः
सभी को प्रणाम करें..
दैनिक यज्ञ कर रहे हैं तो कर्मकांड भाष्कर में वर्णित मन्त्र से अग्नि प्रज्ज्वलित करें, दीपयज्ञ कर रहे हैं तो दीप मन्त्र पढंकर दीपक प्रज्ज्वलित करें। मन्त्र नहीं पता तो गायत्री मंत्र श्रद्धा से पढ़ते हुए अग्नि प्रज्वलित कर लें।
दीपक या यज्ञाग्नि को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।
दीपक या यज्ञ को अक्षत पुष्प चढ़ाते हुए निम्नलिखित मन्त्र हाथ जोड़कर समस्त परिवार से दोहराने को बोलें।
*ॐ परमार्थ मेव स्वार्थ मनिष्ये* - परमार्थ को ही स्वार्थ मानेंगे।
हे अग्नि देवता तरह अखंड पात्रता दीजिये, अक्षय स्नेह दीजिये, हमारी निष्ठा ऊर्ध्व मुखी बनाइये।
घर मे रूम फ्रेशनर हो तो कमरे में छिड़क दें, मोबाइल में बांसुरी या ॐ की मधुर ध्वनि हल्के आवाज में चला लें। इससे मन पूजन में लगता है,मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक प्रभाव मन में पड़ता है।
दो कटोरी लें, एक में अक्षत(साबुत चावल) और दूसरी ख़ाली लें।
अब निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भरी कटोरी से अत्यंत थोड़े अक्षत जैसे यज्ञ में आहुति उठाते हैं वैसे ही मध्यमा, अनामिका और अंगूठे की सहायता से उठाएं और स्वाहा के साथ खाली कटोरी में डालते जाएं।
यदि दैनिक यज्ञ कर रहे हैं तो हवन सामग्री को प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुत करें।
*24 आहुति गायत्री मंत्र की -*
*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।। स्वाहा इदं गायत्र्यै इदं न मम्*
*5 आहुति महामृत्युंजय मंत्र की-*
*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।इदं महामृत्युंजयाय इदं न मम्*
*3 आहुति चन्द्र गायत्री मन्त्र की -*
मंत्र-
*ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।।इदं चन्द्रायै इदं न मम्।*
*3 आहुति सूर्य गायत्री मन्त्र से:-*
मंत्र-
*।। ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि । तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।।इदं सूर्यायै इदं न मम्।*
*3 आहुति यम गायत्री मन्त्र से:-*
मंत्र-
*।।ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि । तन्नो यम: प्रचोदयात् ।इदं यमाय इदं न मम्*
*3 आहुति दिवंगत आत्मा की शांति, तुष्टि व तृप्ति के लिए निम्नलिखित मन्त्र से करे - )*
*शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा।*
*शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥ ऋग्वेद १-९०-९।*
*स्वाहा इदम् दिंवगतात्मानाम् शानत्यर्थम इदम् न मम्*
भजन कीर्तन स्तुति जो करना चाहे कर लें, फिर उगते सूर्य का ध्यान नेत्र बन्द करके करें। भगवान सूर्य से कहें हमारे घर का यह सदस्य - (उसका नाम बोलें) इस वक्त किस योनि में है या कहाँ नया जन्म ले चुका है। हमें नहीं पता, लेकीन सूर्य देव भगवान यम आपके पुत्र हैं, और समस्त सृष्टि को देख सकते हैं। हमारी भावांजलि व श्रद्धा उस तक पहुंचा दीजिये। वह जहां भी जिस अवस्था मे हो उसे शांति दीजिये, तृप्ति दीजिये, तुष्टि दीजिये।
कुछ देर पुनः पांच जलते हुए दीपकों को देखें या यज्ञाग्नि को देखें, भावना करे कि यह पांच दीपक पँच तत्वों के प्रतीक हैं, यह हमारे पँच प्राणों को चार्ज कर रहे हैं।
पुनः दीपक को देखते हुए 5 मिनट प्राणायाम करें।
यदि घर में पुष्प है तो वह हाथ में ले लें या रंगे हुए अक्षत हाथ मे ले लें और तीन बार दिवंगत आत्मा की तसवीर को अर्पित करें। मृत्यु के बाद सभी पितर बन जाते हैं। अतः घर के प्रत्येक सदस्य तीन बार भावांजलि में पुष्प अक्षत दिवंगत आत्मा को अर्पित करते हुए बोलें:-
पितर शांत हों, शांत हो, शांत हो
पितर मुक्त हों, मुक्त हों, मुक्त हों,
पितर तृप्त हों, तृप्त हों, तृप्त हों।
वेदपाठी और दैनिक गायत्री साधना व यज्ञ करने वाला ब्राह्मण मिले तो उसे भोजन करवा दें, नहीं तो कुछ गरीब बच्चों को पारले जी या किसी अच्छे मीठे बिस्किट के पैकेट बंटवा दें।
आरती व भजन कीर्तन का क्रम कर लें।
शांतिपाठ करके उठ जाएं, अक्षत चिड़िया को डाल दें या किसी भूखे को चावल दान करते समय उन अक्षतों का भी प्रयोग कर लें। इन अक्षतों का घर के भोजन में बना कर खाना वर्जित है। इसे दान ही करना होगा।
दिवंगत आत्मा के अनुमानित वजन का अनाज किसी गरीब को या गौशाला में दान करवा दें।
यदि दिवंगत को अक्षय पुण्य दान करना चाहते हैं तो उसके नाम पर पांच वृक्षों का वृक्षारोपण करके उसे उसके नाम की वाटिका का नेम प्लेट लगा के बना दें।जब तक वृक्ष ऑक्सीजन छोड़ता रहेगा, दिवंगत आत्मा जहां भी पितर लोक या कहीं जन्म चुकी हो, उसे पुण्य मिलता रहेगा।
पूजन के अंत मे कलश का जल सूर्य भगवान को अर्पित करें, तुलसी के पौधे में चढ़ा दें। कलश के ऊपर रखा नारियल पूजन के बाद तोड़कर उसकी गिरी को प्रसाद स्वरूप खा लें।
गुरुधाम में ऑनलाइन श्रद्धानुसार दिवंगत आत्मा के नाम पर डोनेशन कर दें।
अध्यात्म जगत में कर्मकांड मात्र भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए होते हैं। जिस प्रकार हृदय में प्रेम न हो तो किसी को पुष्प अर्पित करने का कर्मकांड व्यर्थ है, यदि अगाध प्रेम हो तो ही पुष्प के माध्यम से प्रेम प्रदर्शित व अर्पित करने का अर्थ होता है। अतः भगवान कर्मकांड को तभी स्वीकारते हैं जब श्रद्धा, विश्वास व प्रेम की भावनाओं के साथ उसे किया जाय।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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