Monday 10 August 2020

प्रश्न - *श्राद्ध पक्ष 2022 कब शुरू हो रहा है और उस में तर्पण की क्या प्रक्रिया होती है? जिस दिन पिता जी देह छोड़ गए सिर्फ उस दिन करना होता है या रोज़? दादी,बाबा का ब्रह्म तर्पण पिता जी गया जा कर कर आये थे।उनके लिए भी कुछ करना होगा क्या। श्राद्ध के बारे में संक्षिप्त विवेचन करता हुआ नोट शेयर कीजिये।।*

 प्रश्न - *श्राद्ध पक्ष 2022 कब शुरू हो रहा है और उस में तर्पण की क्या प्रक्रिया होती है? जिस दिन पिता जी देह छोड़ गए सिर्फ उस दिन करना होता है या रोज़? दादी,बाबा का ब्रह्म तर्पण पिता जी गया जा कर कर आये थे।उनके लिए भी कुछ करना होगा क्या। श्राद्ध के बारे में संक्षिप्त विवेचन करता हुआ नोट शेयर कीजिये।।*


उत्तर- *पितृ-पक्ष - श्राद्ध पर्व तिथि व मुहूर्त 2022* - शान्तिकुंज प्रकाशित कैलेंडर के अनुसार

पितृ पक्ष 2022 की सभी तिथियां:
10 सितंबर दिन शनिवार - पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण
11 सितंबर दिन रविवार - प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण
12 सितम्बर दिन सोमवार - द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण
13 सितंबर दिन मंगलवार - तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण
14 सितंबर दिन बुधवार - चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण
15 सितंबर दिन गुरुवार - पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण
16 सितंबर दिन शुक्रवार - षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण
17 सितंबर दिन शनिवार - सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण
18 सितंबर दिन रविवार - अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण
19 सितंबर दिन सोमवार - नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण
20 सितंबर दिन मंगलवार - दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण
21 सितंबर दिन बुधवार - एकादशी का श्राद्ध तर्पण
22 सितंबर दिन गुरुवार - द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण
23 सितंबर दिन शुक्रवार - त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण
24 सितंबर दिन शनिवार - चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण
25 सितंबर दिन रविवार - अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण

पिता जी या माता जी की मृत्यु जिस दिन हुई हो, यदि उन्हें विशेष श्रद्धा अर्पण करना चाहते हैं तो प्रत्येक महीने साल भर उसी तारीख को प्रत्यक्ष दान पुण्य करते हुए गरीब को भोजन करवा दें व वस्त्र देकर तृप्त करें।

शास्त्र के अनुसार मातृ नवमी - को माताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें, और पितृमोक्ष अमावस्या- को पिताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें। *"अर्पण" शब्द जब "तृप्ति" हेतु किया जाता है तब यह "तर्पण" बन जाता है। "श्राध्द" का अर्थ "श्रद्धा भावना" ही है। माता-पिता और समस्त पूर्वजो का श्राद्ध-तर्पण एक दिन में ही भी कर सकते हैं।*

युगऋषि के बताए विधान से श्राद्ध-तर्पण जब भी करेंगे तो वो पितर मुख्य होंगे जिनकी मृत्यु इसी वर्ष हुई है। इस श्राद्ध-तर्पण में तीन पीढ़ी माता पक्ष की, तीन पीढ़ी पिता पक्ष की व एक पीढ़ी वर्तमान की टोटल 7 पीढ़ी का श्राद्ध-तर्पण एक साथ करवाया जाता है। इसका विवरण आपको पुस्तक - *कर्मकांड भाष्कर* में मिल जाएगा।

श्राद्ध - तर्पण पुत्रों की तरह पुत्रियां भी कर सकती हैं यह योगवशिष्ठ में वर्णित है।

श्राद्ध-तर्पण के साथ साथ पंच बलि कर्म भी किया जाता है- (1) गौ बलि पत्ते पर(गाय को आहार), (2) श्वान बलि पत्ते पर,(कुत्ते को आहार) (3) काक बलि (कौए के लिए आहार) पृथ्वी पर, (4) देव बलि पत्ते पर(देवों को आहार) तथा (5) प‍िपलिका बलि (कीड़े-चींटी इत्यादि के लिए आहार) पत्ते पर किया जाता है। ब्राह्मण के लिए संकल्प लेकर भोजन करवाया जाता है या गरीबों को दान दिया जाता है।

पितृपक्ष में किसी भी दिन नजदीकी शक्तिपीठ, गायत्री युगतीर्थ शान्तिकुंज, और गायत्री तपोभूमि मथुरा जाकर विधिवत श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं।

यदि किन्ही कारण से मन्दिर या तीर्थ स्थल में जाकर तर्पण न कर सकें। तो इन 15 दिनों में घर पर ही गायत्री यज्ञ कर लें, खीर का स्विष्टीकृत होम करें और पितरों को श्रद्धा अर्पण कर दें।

निम्नलिखित मन्त्र की तीन आहुतियां दैनिक यज्ञ में देना उत्तम है:-
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः स्वाहा । इदम दिवंगतात्मानाम शांत्यर्थम इदम न मम

यदि यह भी संभव न हो तो 15 दिन नित्य बलिवैश्व यज्ञ में खीर की आहुति देकर श्रद्धा अर्पित करें।

यदि यह भी सम्भव न हो, तो एक ग्लास जल में थोड़ा गुड़ और काला तिल लेकर उस जल को अंजुलि में लेकर - तीन बार निम्नलिखित बोलकर सूर्य को साक्षी मानकर किसी तुलसी के गमले में डाल दें, गुड़ और तिल न हो तो इसे साधारण जल लेकर ही तीन बार कर लें:-
1- पितर शांत हों शांत हों शांत हों
2- पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों
3- पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।

अश्वनि माह में पितृ पक्ष और नवरात्र माह पड़ता है। अतः इस महीने किसी भी हालत में जो हिन्दू मांसाहारी है जैसे बंगाल प्रान्त और पंजाब प्रांत के उन्हें मांस भक्षण नहीं करना चाहिए। साथ ही पितृ पक्ष में यदि मजबूरी न हो तो कोई नई वस्तु खरीदकर स्वयँ उपयोग नहीं करना चाहिए। नई वस्तु दान हेतु खरीद के दे सकते हैं।

पितृपक्ष में पितरों को ऑटोमैटिक दान उम्रभर चलता रहे इस हेतु वृक्षारोपण सबसे उत्तम है:-

पांच पिंडदान के प्रतीक- पांच वृक्ष (पीपल, बरगद, नीम, बेलपत्र, अशोक) के लगा दें। इन वृक्षों के द्वारा दिया ऑक्सीज़न दान का पुण्य आपके पूर्वजों को सदैव मिलता रहेगा।इतना भी न सम्भव न हो तो कम से कम एक जोड़ा अर्थात दो तुलसी के पौधे घर पर गमलों में लगा लें।

हम सब जीवित हों या मृत, दोनों ही अवस्था मे हमारे पास सूक्ष्म शरीर होता है। सूक्ष्म शरीर हमें जीवित हों या मृत दोनों ही अवस्था में प्राप्त होता है जो भावनाओं का आदान-प्रदान करने में सक्षम होता है। प्राचीन धर्म ग्रन्थ और आधुनिक परामनोविज्ञान मरने के बाद भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, भावनात्मक आदान-प्रदान को स्वीकार्य करता है।

पुष्प प्रेम नहीं है, अपितु प्रेम प्रदर्शन में सहायक है। पुष्प द्वारा भक्त भगवान को प्रेम अर्पित करता है और प्रेमी प्रेमिका को प्रेम अर्पित करता है। यहां पुष्प कर्मकांड है और प्रेम भावना ही प्रधान है। *इसी तरह श्राद्ध और पिंडदान एक कर्मकांड है, लेकिन मूलतः पितरों के प्रति प्रेम और श्रद्धा भावना ही प्रधान है। पितरों का आशीर्वाद सदा फलदायी है। पितर हमारे अदृश्य सहायक होते हैं।*

अध्यात्म एक विज्ञान है, जो टैलीपैथी-सूक्ष्म संवाद मन्त्रों के माध्यम से सूक्ष्म जगत से करने में सक्षम होता है। जो इस विद्या से अंजान है उनके कुतर्क करने पर उनसे व्यर्थ न उलझें। जंगल मे निवास करने वाले वो लोग  जिन्होंने कभी मोबाइल देखा ही नहीं और इसके बारे में कोई जानकारी न हो, तो वो मोबाइल की बात करने पर इसे या तो कुतर्क करके असम्भव बताएंगे या इसे चमत्कार की संज्ञा देंगे। छोटी सी बुद्धि जिसे समझ न सके उसे वो दो ही बातें उस सम्बंध में कह सकती है 1- अंधविश्वास या 2- चमत्कार। वास्तव में श्रद्धा अर्पण करना न अंधविश्वास है और न ही चमत्कार। यह एक अध्यात्म विज्ञान है, जो भावनात्मक आदान-प्रदान पर निर्भर है। सभी धर्मों में इसका प्रतीक पूजन और प्रेयर का विधान मौजूद है।

भारत से अमेरिका जाना हो तो करेंसी तो बदलना पड़ेगा- रुपयों को डॉलर में बदलना पड़ेगा। इसी तरह अमेरिका से भारत आना है तो डॉलर को रूपयों में बदलना पड़ता है। *सूक्ष्म जगत की करेंसी पुण्य होती है, जिसे हम दान-तप द्वारा अर्जित करते है। वह पुण्य करेंसी सूक्ष्म जगत में हस्तांतरित की जा सकती है।*

*गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से उत्पन्न शब्द तरंग ब्रह्मांड से दिव्य सकारात्मक ऊर्जा आकर्षित करके हमारे मस्तिष्क के महत्त्वपूर्ण भाग - "हाइपोथैलेमस जो कि पीयूष ग्रन्थि के माध्यम से अन्तःस्रावी तंत्र को जोड़ने का कार्य करती है" उसे प्रभावित करके अच्छे हॉर्मोन्स (DHEA, GABA, Endorphins, Growth Hormone, and Melatonin etc) का स्राव करती है साथ ही सभी 24 ग्रंथियां, जो हमें मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से, भावनात्मक रूप से स्वास्थ्य प्रदान करती हैं।*

पितृ पक्ष में अधिक से अधिक पूजा पाठ और दान पुण्य करना चाहिए।
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Optional - जिन्हें यदि अपने घर में नकारात्मक ऊर्जा महसूस हो रही हो वो पितृ पक्ष के पहले या बाद में यह उपाय अपना लें, वो बेल पत्र जो शिव जी को चढ़ती है उसकी पतली पतली लकड़ी 24 सूखा लें। एक दिन घर में सामूहिक कई सारे परिजन  बुलवाकर 24 हज़ार गायत्री जप एक ही दिन में कर लें, ततपश्चात 108 गायत्री मंत्र की यज्ञ में आहुति हवन सामग्री से दें, और 24 महामृत्युंजय मंत्र की आहुति बेलपत्र की पतली लकड़ियों और हवन सामग्री से दें। 11 आहुतियां क्लीं बीज मंत्र के साथ गायत्री की दें। 3 आहुतियां परमपूज्य गुरुदेव व 3 आहुतियां वन्दनीया माता जी की दें। 
निम्नलिखित मन्त्र की तीन आहुतियां दैनिक यज्ञ में देना उत्तम है:-
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः स्वाहा । इदम दिवंगतात्मानाम शांत्यर्थम इदम न मम

इस प्रयोग से नकारात्मक शक्ति सकारात्मक शक्ति में परिवर्तित होगी। साथ ही नित्य बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें।
                   
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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