Thursday 13 August 2020

स्वयं पर आत्मशक्ति का प्रयोग करना व स्वयं की चेतना को ऊपर उठाना

 *स्वयं पर आत्मशक्ति का प्रयोग करना व स्वयं की चेतना को ऊपर उठाना*


🙏🏻 स्वयं में देवत्व की प्राण प्रतिष्ठा करने के उपक्रम हेतु शांत चित्त प्रशन्न मुद्रा में सुखासन में बैठ जाएं🙏🏻


स्वयं से स्वयं को अलग कर ध्यान के माध्यम से विचारों व कल्पनाओं की सहायता से स्वयं को स्वयं से अलग हो 15 मिनट देखिए। यदि इसमें असुविधा हो रही है तो दर्पण में स्वयं के दो भौं के बीच आज्ञाचक्र वाले स्थान को करीब  15 मिनट अपलक देखिए।


स्वयं से कहिए - मैं अनुभव कर रहा हूँ कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं यह मन भी नहीं हूँ। मैं परम पवित्र आत्मा हूँ जो कि परमात्मा का अंश है। इस शरीर मे वह आत्मा परमात्मा के संग रह रही है। यह शरीर तो मन्दिर है। 


मैं जाग गया हूँ, मोह की निंद्रा टूट गयी है। वर्षो से बन्द मेरी अंतर्दृष्टि खुल रही है। अब तक मैं बाह्य नेत्रों से द्विआयामी दुनियाँ देख रहा था, अब मैं त्रिआयामी दुनियाँ तृतीय नेत्र की सहायता से देखने में सक्षम बन रहा हूँ। दर्पण में जो दिखता है वह शरीर है, वह मैं नहीं हूँ। कोई भी सांसारिक दर्पण मुझे दिखाने में सक्षम नहीं। 


मैं वही हूँ - सो$हम, वह मैं हूँ, तुम भी मैं हो और तुम ही मैं हूँ। सर्वत्र एक ही आत्मद्रव्य विभिन्न पात्रों - शरीर में विद्यमान है। एक ही परमात्मा रूपी सागर का आत्म द्रव्य सर्वत्र भरा है।


अब मै जाग गया हूँ, दुनियाँ के क्षुद्र विचारों से ऊपर उठ गया हूँ। अब मैं क्षुद्र कामनाओं व वासनाओं में अमूल्य जीवन नष्ट नहीं करूंगा। अब मुझे कोई भी सांसारिक प्रलोभन निम्नगामी नहीं बना सकता। कोई सांसारिक घटना, परिस्थति व विचार मुझे मानसिक पीड़ा नहीं दे सकता। काम , क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष इत्यादि मुझे व्यथित नहीं कर सकते। मेरे समस्त कुविचार व बुरी आदत नष्ट हो गए हैं। अब मेरे अंदर शुद्ध विवेक बुद्धि  जग गयी है, मेरा निष्पाप हृदय हो गया है, मेरा मन निर्मल व पवित्र गंगा जल की तरह हो गया है।


परमपिता परमेश्वर की कृपा से मैं नर से नारायण बनने के मार्ग में अग्रसर हो रहा हूँ। मुझमें देवत्व जग रहा है।  मैं आत्म ज्ञान से प्रकाशित हो रहा हूँ। 


मैं परमात्मा के सन्निध्य में, उस ईश्वर को स्वयं में धारण कर.. उनकी तरह ही..

मैं प्राणस्वरूप बन रहा हूँ, 

मैं दुःखनाशक बन रहा हूँ,

मैं सुख स्वरूप बन रहा हूँ,

मैं श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप बन रहा हूँ, 


मेरे प्रज्ञा चक्षु खुल रहे हैं, 

अब मैं परमात्मा के संग..

सत्य की ओर गमन कर रहा हूँ..

प्रकाश की ओर गमन कर रहा हूँ...

अमरत्व की ओर गमन कर रहा हूँ...


अब मैं नर से नारायण बनने की ओर अग्रसर हूँ...


हाथ में जल लेकर तीन बार स्वयं पर छिड़क कर मार्जन करें। थोड़ी देर नेत्र बन्द कर परमात्मा से योग अनुभव करें। 


गायत्री मंत्र जपकर हाथ रगड़े व पूरे चेहरे पर लगा लें।


ॐ शांति मन्त्र बोलकर उठ जाएं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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