Sunday, 23 August 2020

देवता बनो तो सही, स्वर्ग स्वयंमेव आसपास निर्मित हो जाएगा

 *देवता बनो तो सही, स्वर्ग स्वयंमेव आसपास निर्मित हो जाएगा।*


हम स्वयं को कितना समझते हैं? स्वयं की योग्यता व पात्रता को निखारने में कितना समय साधन खर्च करते हैं? हमारी सोच की गहराई व ऊंचाई कितनी है? हमारे तृतीय नेत्र - आध्यात्मिक ज्ञान दृष्टि कितनी विकसित है? इन सब पर हमारा जीवन व परिणाम निर्भर करता है।


सुगंधित पुष्प व घाव-रक्त-पीव की पट्टी रखी हो, मधुमक्खी और मक्खी दोनों को वहाँ छोड़ दें तो मधुमक्खी पुष्प का चयन करेगी और मक्खी घाव-रक्त-पीव की पट्टी का प्रयोग करेगी। 


ऐसा नहीं कि चयन का अधिकार आपने उन दोनों को समान नहीं दिया, फिर भी दूर से देखने वाला जो मक्खी व मधुमक्खी की मनोदशा से अनभिज्ञ हो वह आप पर आरोप लगाएगा कि आपने पक्षपात किया। मधुमक्खी को सुंदर सुगंधित सुरभित पुष्प दिया और मक्खी को दुर्गंध व रोगाणुओं से भरा रक्त घाव की पट्टी दी।


यही संसार में हो रहा है, विधाता ने कर्म में सबको स्वतंत्र कर रखा है। हमारे दृष्टिकोण, विचारों व कर्म अनुसार हम प्रत्येक क्षण चयन कर रहे हैं तदनुसार परिणाम भुगत रहे हैं। धूल सीसे में जमी हुई है और दोष संसार को दे रहे हैं।


त्रिगुणात्मक सत, रज, तम तीनों तत्व युक्त विचारधारा व कर्म का चयन करने हेतु सभी स्वतंत्र हैं। निर्णय तो हम सबको करना पड़ेगा।


धरती का गुरुत्वाकर्षण बल चलने में सहायक है व गिराने में भी सहायक है। अब खड़े रहने का प्रयत्न पुरुषार्थ हमें स्वयं करना पड़ेगा।


स्वर्ग सभी को चाहिए, लेकिन उनके मन व हृदय के भीतर यदि झाँक सकें तो पाएंगे कि इतनी मलिनता है कि नर्क का साम्राज्य विकसित हो रखा है। आकर्षण के सिद्धांत अनुसार उनके भीतर आसुरी चिंतन विराजमान है तो दैवीय सम्राज्य स्वर्ग मिलेगा कैसे?


युगऋषि ने स्पष्ट घोषणा की है - स्वर्ग तो धरा पर उतरने को तैयार है, मग़र क्या हम देवता बन सकें है जो स्वर्ग के सुख को भोग सकें? स्वर्ग तो देवताओ के लिए सुरक्षित है। देवता बनो और स्वर्ग भोगो। 


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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