Saturday, 1 August 2020

पुत्री को लिखा पत्र - विवाह से पूर्व उसके आध्यात्मिक माता पिता द्वारा*

*पुत्री को लिखा पत्र - आध्यात्मिक माता पिता द्वारा*

प्रिय पुत्री,
सदा सफल रहो, समाधान परक दृष्टिकोण विकसित करो

अब तुम विवाह योग्य हो गयी हो, लेकिन विवाह के पवित्र बंधन की पवित्रता का 50% उत्तरदायित्व तुम्हारा है और 50% उत्तरदायित्व तुम्हारे पति का होगा। मग़र वर्तमान कलियुग में लड़के के माता पिता व लड़की के माता पिता दोनो ही इस उत्तरदायित्व को अपनी संतानों को समझाने में विफ़ल रहे हैं।

सोचो हमेशा अच्छा और अच्छे समय की कामना भी करो, मग़र बुरे समय के लिए तैयार रहना चाहिए।

यदि तुम्हारा होने वाला पति स्वाध्यायी हुआ और धार्मिक प्रवृत्ति का चरित्रवान हुआ तो तुम्हारा जीवन सुंदर व सुखमय होगा।

जिस लड़के से तुम्हारा विवाह होगा, उसे कुछ दिनों के मेल मिलाप में जानना सम्भव नहीं है। बचपन से लेकर अब तक उसमें किन संस्कारो को उनके माता पिता ने भरा है, और किन संस्कारो व धारणाओं को उसने स्वयं दोस्तों की संगति में, साहित्य पढंकर और फिल्में देखकर सीखें हैं। जब उसके माता पिता ही उसके वर्तमान व्यक्तित्व से अंजान है तो भला तुम कैसे जान सकती हो? पति चरित्रवान मिलेगा या चरित्रहीन होगा यह कोई विवाह से पूर्व नहीं जान सकता।

लड़के की माता खुले विचारों व अच्छे पुस्तकों की स्वाध्यायी हुई तो वह तुम्हारी मित्र बनेगी। अन्यथा वह रूढ़िवादी परम्पराओं के अनुसार क्रूर सास बनने में रुचि लेगी व पुत्र की माँ होने के गौरव को प्रदर्शित करेगी। तुम्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। क्योंकि वह चाहेगी कि जितने अपमान के घूंट व यातनाएं उसे बहु रूप में मिली, वह ब्याज सहित तुम्हें भी दे।

सास, ससुर, जेठ, देवर व ननद यदि धार्मिक प्रवृत्ति के, अच्छी पुस्तको के स्वाध्यायी व अच्छे स्वभाव के हुए तो घर स्वर्ग सा सुंदर होगा।

इन सबके के व्यवहार की कोई निश्चित गारण्टी वारंटी नहीं है। ससुर, जेठ, देवर यदि चरित्रहीन हुआ तो ये सब तुम्हारे लिए तूफान खड़े करेंगे। सास व ननद यदि स्वार्थी हुई तो तुम्हारी मुसीबतों को बढाएंगे। यदि चरित्रहीन हुए तो तुम्हारा जीवन नर्क बना देंगे।

यदि सब अच्छे हुए और तुम नासमझ और चरित्रहीन हुई तो तुम इन सबके जीवन को नरकमय बना दोगी। इनके जीवन को ज़हरीला बना दोगी।

बेटी, विवाह सुख पाने के उद्देश्य से मत करना। विवाह सुख बांटने व आत्मीयता का विस्तार करने के लिए करना।

पति पर और उसकी कमाई 100% अधिकार मत माँगना। तुमने पति को न ही उतपन्न किया है न ही पढ़ा लिखाकर बड़ा किया है। केवल विवाह किया है इसलिए पति 100% तुम्हारे हिसाब से चले यह बेवकूफी मत करना। उस पर उसके माता पिता का भी अधिकार है। उसे स्वयं निर्णय लेने देना। बस उसे निर्णय लेने में मदद करना। उसके हृदय पर अधिकार जरूर 100% लेना। उसका हर कदम में साथ देना। पति का रिमोट मत ढ़ूढ़ना व कंट्रोल करने की मूर्खता मत करना। उसे उसके हिस्से की स्वतंत्रता जरूर देना। पति की नज़र से केवल उसे मत आंकना। वह पुत्र भी है, भाई भी है, व एक पुरुष इंसान भी है। उसकी स्वयं के अस्तित्व में भी रहने देना।

लड़की पैदा होना कोई गुनाह नहीं है, अपितु लड़की होकर पैदा होना एक गर्व की बात है। पृथ्वी के बाद सृजन का कार्य स्त्री के अलावा कोई कर नहीं सकता।  अतः लड़की होकर हीनता भी बुरी बात है, साथ ही लड़की होने का अहंकार भी बुरा है।

तुम सेवा, प्रेम व सहकार का सीमेंट बनकर घर जोड़ना, हथौड़ी बनकर उसके घर को तोड़ने की कोशिश मत करना।

यदि तुम समझदार और बुद्धिमान हुई, सेवा व प्रेम से भरी हुई तो 90% केस में गृहस्थी संवार लोगी। कुछ वर्षों के प्रयत्न से सब ठीक कर सकोगी। यदि ठीक न कर पाई तो 10% केस में विवाह बंधन से एग्जिट कर स्वयं के जीवन को संवार सकोगी।

कभी यदि विवाह से एग्जिट भी करना हो तो पूरे प्लानिंग व सही सोच के साथ करना।

जीवन तुम्हारा है, इसे सुखमय व आनंदमय बनाने का उत्तरदायित्व भी तुम्हारा ही है।

यह श्रीमद्भागवत गीता लो, इसके नित्य एक अध्याय का पाठ विवाह से पूर्व 108 दिन तक पढ़ो, नित्य गायत्री जप और ध्यान-प्राणायाम करो। गृहस्थी में प्रवेश के पूर्व प्रेम, सेवा, सहकार, शुभ सँस्कार व योद्धा की रणनीति सब सीखो। विजेता का दृष्टिकोण विकसित करो।

*गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व यह पांच पुस्तक भी अवश्य पढ़ो:*-

1- गृहस्थ में प्रवेश से पूर्व जिम्मेदारी समझें
2- गृहस्थ एक तपोवन
3- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
4- मित्रभाव बढाने की कला
5- शक्ति संचय के पथ पर या शक्तिवान बनिये।

बेटी, अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ा था। इसीतरह तुम्हे भी अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ेगा। तुम युद्ध के भय से मैदान छोड़कर नहीं भाग सकती। ससुराल की कठिनाइयां सुनकर कायरों की तरह विवाह करने से इंकार नहीं कर सकती। जब तुम स्वयं की मदद करोगी, तभी भगवान भी तुम्हारी मदद कर सकेगा। हम इंसान भी तुम्हारी मदद कर सकेंगे।

कहते हैं, शादी ऐसा लड्डू जो खाये तो भी पछताए और जो न खाए तो भी पछताए। इसलिए ख़ाकर पछताना उत्तम है। बिना प्रयास हार मानना कायरता है। क्या पता तुम बुद्धि विवेक से पछताने की जगह आनन्द मय जीवन जियो? आनन्दमय जीवन और पछताना दोनो के 50% 50% चांस है। तो बहादुर कन्या को चांस लेना चाहिए।

हम उन कायर माता पिता की तरह नहीं, जो यह कहें ससुराल डोली में जा रही हो और अर्थी से निकलना। हम उन पाश्चात्य प्रभावित घर तोड़ू माता पिता भी नहीं जो यह कहें, न ससुराल जमें तो कोई नहीं छोड़कर चली आना और उन्हें सबक सिखाना।

हम आध्यात्मिक माता पिता है। हम कहते हैं तुम ससुराल में व्यवस्थित रहने के लिए 100% प्रयास करना। यदि बहुत प्रयास के बाद भी यदि तुम विवाह के रिश्ते को व्यवस्थित करने असफल हो जाओ, क्योंकि पति चरित्रहीन हो या ससुराल अपराधिक प्रवृत्ति का हो तो तुम ससुराल व विवाह सम्बन्ध से एग्जिट हो जाओ। न सफलता तुम्हारे हाथ में है और न असफ़लता तुम्हारे हाथ में है। गृहस्थ जीवन को सम्हालने का 50% तुम्हारे हिस्से का प्रयास तुम्हारे हाथ में है। नेक्स्ट 50% प्रयास तुम्हारे पति के हाथ मे है। तो असफ़लता का 50% कारण तुम होगी और 50% उत्तरदायी तुम्हारा पति होगा। यदि वैवाहिक जीवन सफल हुआ तो भी तुम्हे 50% ही श्रेय मिलेगा, यहां भी सफलता का 50% श्रेय तुम्हारे पति का होगा।

यदि किन्ही अपरिहार्य कारणों से विवाह से एक्जिट करना पड़े, तलाक लेना पड़े। तो चिंता मत करना। तुम पढ़ी लिखी समझदार हो। पुनः नए सिरे से जिंदगी की प्रोग्रामिंग करना। इच्छा हो तो दोबारा शादी करना, यदि इच्छा न हो तो दोबारा शादी मत करना और सन्यास लेकर जीवन को ईश्वर सेवा में लगा देना। जो भी तुम्हारा निर्णय होगा वह हमें स्वीकार्य होगा। इसकी परवाह मत करना कि लोग क्या कहेंगे? यदि जिस चीज़ की तुम्हारी आत्मा गवाही दे व ईश्वर की नज़र में जो ठीक है। बस उस पर तुम अडिग रहना। युद्ध अपने जीवन का तुम्हें ही लड़ना होगा, हम तो बस सदैव तुम्हारे सहयोगी बने रहेंगे।

मेरी विजेता पुत्री के माता पिता होने के गौरव को हासिल करेंगे। वैवाहिक जीवन के सफलता के क्षणों व असफ़लता के क्षणों दोनो की ममसिक तैयारी करके तब गृहस्थी में प्रवेश करना।

तुम्हारे
आध्यात्मिक माता व पिता

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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