Thursday, 6 August 2020

परमात्मा को ढ़ूढ़ना नहीं है, बस जानना-पहचानना है कि, हम उसमें हैं वह हममें है।

नंन्ही मछली बोली,
माँ मुझे सागर देखना है,
माँ मुस्कुराई और बोली,
मेरी नंन्ही बेटी तू साग़र में ही तो है।

माँ यह तो जल है,
यह बताओ,
पूरा सागर कैसे देखूँ?
मछली माँ बोली,
सागर तो जल श्रोत ही है,
जल से बाहर, बिन जल तो,
हम मछलियों का जीवन नहीं,
फ़िर सागर से बाहर निकलकर,
साग़र को तुम कैसे देख सकोगी?
जल से बाहर जाकर,
सागर को कैसे जान सकोगी?

तुम सागर के जल में हो,
और वह साग़र का जल तुम्हारे भीतर भी है,
तुम सागर में हो और साग़र तुममें है,
उसे अनुभूत करो,
भीतर या बाहर केवल वह ही है।

ऐसे ही हम सब परमात्मा में है,
वह परमात्मा हमारे भीतर भी है,
वह अंदर बाहर सर्वत्र है,
वह ही कण कण में समाया है,
परमात्मा से बाहर जाकर,
उसे भला कैसे जान सकोगे?
परमात्मा में रमकर ही,
उसे स्वयं में पा सकोगे?


मछली को साग़र ढ़ूढ़ना नहीं है,
बस जानना-पहचानना है कि वह सागर में ही है,
नंन्ही मछली को तो बस,
जल को अनुभूत करना है,
इसी तरह हमें भी,
परमात्मा को ढ़ूढ़ना नहीं है,
बस जानना-पहचानना है कि,
हम उसमें हैं वह हममें है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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