Saturday, 8 August 2020

वह दृष्टि हमें दो दया निधे, सूक्ष्म जगत भी देख पाएँ,

 वह दृष्टि हमें दो दया निधे,

सूक्ष्म जगत भी देख पाएँ,

वह बुद्धि हमें दो दया निधे,

सूक्ष्म जगत भी समझ पाएँ।


वह क्या है जो मैं हूँ?

वह क्या है जो मैं नहीं हूँ?

वह क्या है जो शाश्वत है?

वह क्या है जो नश्वर है?


वह दृष्टि दो दया निधे,

दृश्य व दृष्टा का भेद देख पाऊँ,

वह बुद्धि दो दया निधे,

जो बुद्धि से परे जगत है, उसे समझ पाऊँ..


जगत का दृश्य कौन देख रहा है?

यह दो आँखे..

जगत को कौन समझ रहा है?

यह मन-बुद्धि...

लेक़िन आँखों को कौन धारण कर रहा है?

आंखों का कौन दृष्टा है?

मन-बुद्धि को कौन धारण कर रहा है?

मन-बुद्धि का कौन साक्षी है? 


इस शरीर की प्राण ऊर्जा का स्रोत कौन?

जिससे शरीर चलायमान है?

कौन है? वह क्या है?

जिसके निकल जाने पर यह देह मृत समान है?


वह क्या है? जो मैं हूँ..

जो दर्पण में दिखता नहीं,

वह क्या है? जो मैं हूँ..

जो बुद्धि की समझ मे आता नहीं...


हे प्रभो! वह दृष्टि हमें दो दयानिधे,

जिससे अर्जुन ने तुम्हें देखा था,

वह बुद्धि हमें दो दयानिधे,

जिससे अर्जुन ने तुम्हें समझा था।


वह दृष्टि हमें दो दयानिधे,

जो तेरे विराट स्वरूप को और मेरे शाश्वत अस्तित्व को दिखा सके,

वह बुद्धि हमें दो दयानिधे,

जो तेरे विराट अस्तित्व को और तेरा ही अंश आत्मस्वरूप को समझा सके।


💐😊 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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