Wednesday 12 August 2020

कठिन कम्पटीशन और जटिल समाज के लिए बचपन से बच्चे तैयार करो,

 सात से दस वर्ष की लड़की हो या लड़का ग्रामीण संवेदनशील हो जाती है, माता के साथ घर में हाथ बंटातें है और पिता को खेत मे सहयोग करने लगते है, पशु पालन करते हैं, व ग्रामीण में यदि अच्छा स्कूल मिल जाये तो बिना कोचिंग बड़ी बड़ी परीक्षा भी पास कर लेते हैं। ग्रामीण बच्चे बड़ी जल्दी समझदार बनते हैं। कोई आकस्मिक विप्पति से निकलने के लिए दिमाग़ चला लेते हैं।


शहरी बच्चे सात से दस वर्ष के लड़का हो या लड़की दूसरे को भोजन परोसने की बात छोड़ ही दो, ढंग से खुद परोसकर खाना तक नहीं आता। घर के कार्य व माता पिता के प्रति इतने असंवेदनशील होते हैं कि मनपसंद गिफ्ट न मिलने पर तोड़ फोड़ मचा देते हैं। शहरी बच्चों को पढ़ने के लिए बैठाने के लिए भी माता पिता को झल्लाना पड़ता है। आकस्मिक विपत्ति पर वह केवल रो सकते हैं, क्योंकि उन्हें बड़ा व समझदार बनने हेतु कभी प्रेरित ही नहीं किया गया। 


अरे मेरे शहर वाले भाइयों बहनों, छोटी छोटी जिम्मेदारी बच्चों को दो, तुम्हारी नजर में जो बच्चे हैं वह समाज के लिए हमेशा बच्चे न रहेंगे। ओवर प्रोटेक्शन और ओवर लाड़ प्यार में बच्चे मत बिगाड़ो। लास्ट आने पर भी तुम गिफ्ट दे सकते हो, समाज तो सेकण्ड आने पर भी नहीं पूँछेगा। कठिन कम्पटीशन और जटिल समाज के लिए बच्चे तैयार करो, क्योंकि तुम्हारी गोद कुछ वर्ष तक ही संरक्षण दे सकती है ताउम्र नहीं। समझदार बनो और बच्चों को समझदार बनाओ।

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