जब मेरे शरीर का जन्म हुआ,
दुसरों ने गोद में उठाया,
जब मैं शरीर छोड़ूंगा - मृत्यु होगी,
तब भी दूसरे ही उठाएंगे।
नए शरीर में जब जन्मा, मुझे कुछ ज्ञान न था,
जब मृत्यु होगी तब भी कुछ ज्ञान न रहेगा,
जब जन्मा दूसरों से मुझे नाम मिला व पहचान मिला,
जो सर्वथा झूठी व कपोलकल्पना आधारित था।
मेरे माता पिता स्वयं भी नहीं जानते थे,
कि वस्तुतः वह कौन हैं,
उन्हें भी उनके माता पिता ने,
एक कपोल कल्पित पहचान व नाम दिया था।
मैं भी नहीं जानता,
कि मैं कौन हूँ व कहाँ से आया हूँ?
इसलिए मैं भी झूठी परम्परा का निर्वहन करूंगा,
अपने पुत्र को भी एक कपोल कल्पित नाम व पहचान दूंगा।
मैं गर्भ व गर्भ से पूर्व भी अस्तित्व में था,
बिना सांसारिक नाम के भी अस्तित्व में था।
मैं वस्तुतः कौन हूँ? इस शरीर में क्यूँ हूँ?
इन प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ना है,
स्वयं से परे जाकर स्वयं को देखना है।
अब और झूठी पहचान को ओढ़ सकता नहीं,
जब मैं जन्मा ही नहीं तो मैं मर सकता नहीं,
शरीर नया लिया था इसे पुनः छोड़ूंगा,
इस अनन्त सफर से अब अनभिज्ञ न रहूंगा।
इस बार मैं चैतन्य जागृत होकर ही,
शरीर बदलूँगा,
प्रत्येक पल चैतन्य जागरूक रहकर ही,
योगियों की तरह अनन्त यात्रा करूँगा।
💐श्वेता, DIYA
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