प्रश्न - *मेरे पति मुस्लिम हैं व प्रेमवश उन्होंने मुझसे झूठ बोलकर कि वो हिन्दू हैं विवाह कर लिया। हमारी सन्तान भी हो गयी है। अब शादी के इतने वर्षों बाद बताया कि वह मुस्लिम हैं अब मैं क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा...*
उत्तर- आत्मीय बेटी, असत्य की नींव पर तुम्हारा विवाह हुआ है। यह हृदय विदारक व अत्यंत कष्टदायी है। दुखद है।
किंतु अब तुम्हारा विवाह हो चुका है व बच्चा भी हो गया है, वर्तमान में वैवाहिक जीवन में इससे क्या क्या समस्या है उस को बताओ।
काउंसलिंग में पुरानी घटनाओं को ठीक नहीं किया जा सकता, क्योंकि जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता। अब वर्तमान में क्या समस्या है उस पर ही हमारी चर्चा होगी व भविष्य में क्या करना है उसे तुम्हें सोचना है।
अपने पति को बोलो, तुम्हारे असत्य ने मुझे भीतर से तोड़ दिया है। व मैं दुःखी भी हूँ। लेकिन अब मैं केवल स्त्री नहीं अपितु तुम्हारे बच्चे की माँ हूँ। अतः लड़की की तरह नहीं सोच सकती। अब माता की तरह अपने बच्चे के भविष्य को सम्हालते हुए सोचना है।
यदि प्रेम करते हो तो मेरे साथ हिन्दू बनकर ही रहो जैसे अब तक प्रेमवश इतने वर्षों तक मेरे साथ रहे। उसी तरह रहो जैसे शहंशाह अकबर जोधा के साथ था।
जैसे शहनशाह अकबर ने जोधा के लिए कृष्ण मंदिर बनवाया। यज्ञ व पूजन करने दिया, उसके अध्यात्म मार्ग को स्वतंत्र रखा वैसे ही आज़ादी दो। भोजन इत्यादि व रहन सहन में कभी बाध्य जोधा को नहीं किया। तुम भी मत करो। आजीवन मेरे साथ वैसे ही रहो जैसे तुमने मुझे पाने के लिए हिंदुत्व को अपनाया था। तुम मेरे अकबर और मैं तुम्हारी जोधा हूँ।
जो हो गया वो अब बदला नहीं जा सकता। मग़र जिस सत्य को तुम्हे विवाह पूर्व बताना था वह अब बताने से अपना अर्थ खो चुका है। अब यह उम्मीद कदापि मत रखना कि तुमने सत्य बता दिया है, तो अब इस गृहस्थी में मुस्लिम रीतिरिवाजों का पालन होगा। अपितु तुमने सत्य बताकर अपने हृदय का बोझ हल्का किया है।
जब सृष्टि बनी थी तब कोई धर्म-सम्प्रदाय इस धरा पर नहीं था। प्रजातंत्र था सभी अपनी पसंद के आराध्य की आराधना कर सकते थे। एक ही घर के सभी सदस्य अलग अलग आराध्य व पूजा पद्धति चुन सकते थे। क्योंकि आत्म उन्नति व आत्म शांति अंतर्जगत का विषय है। वह बिना शब्दों के भी सम्भव है। साकार भी सम्भव है निराकार भी सम्भव है।
स्वर्ग(जन्नत) व नर्क(दोखज़) यह मनुष्य की कल्पना आधारित कोरा काल्पनिक है। रेगिस्तानियो के स्वर्ग में बर्फ़ होगी, हिमालयवासियों के स्वर्ग में गर्म धूप होगी। व्यभिचारियों के स्वर्ग में हूरें व अप्सराएं व्यभिचार पूर्ति के लिए होंगी। शराबियों के स्वर्ग में शराब पार्टी होगी। भूखे नंगो के स्वर्ग में स्वादिष्ट भोजन होंगे। इसी तरह सबके स्वर्ग वस्तुतः उनकी अपूर्ण इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति की जगह होते हैं। क्योंकि स्वर्ग का स्थान जांचा परखा नहीं जा सकता तो सब अपना अपना राग बजा रहे हैं, अपने अपने ख्वाब को जन्नत बता रहे हैं। यह बताइये मृत्यु के बाद जब शरीर ही नहीं होगा तो स्वादिष्ट भोजन का क्या फायदा? शहद की नदी का क्या फायदा? अमृत हो या शराब बिन शरीर उपभोग होगा कैसे? व्यभिचार के लिए भी शरीर चाहिए, बिना शरीर हूरों का क्या फायदा? विचार कीजिये।
यदि जीते जी मन में शांति व जीवन मे सुकून मिल गया तो वही जन्नत है। मन की शांति पाने व ध्यान के ढेर सारे मार्ग व साधन हैं। जिसमे जिसकी रुचि हो उसे उसी विधि से आध्यात्मिक उन्नति व मन की शांति व स्थिरता प्राप्त करनी चाहिये।
हम ब्रह्म(अल्लाह) के भीतर हैं व ब्रह्म हमारे भीतर है। जैसे जल मछली के भीतर व मछली जल के भीतर है। सूर्य , चंद्रमा, पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल व आकाश सबके लिये समान है।
जो हो गया वो बदला नहीं जा सकता। अब वक्त है स्वयं की आध्यात्मिक स्वतंत्रता को बरकरार रखते हुए जीवन निर्वहन करना।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
मैं गायत्री परिवार से 1998 से जुड़ा हूं एवं गुरुदेव के कार्य भी करता हूं मगर अभी तक गुरुदेव की अनुभूति और उनसे समर्पण का भाव नहीं जगा है मैं साधना भी करता हूं मगर नियमित नहीं हो है मन में थकावट एवं आलसी पना आ जाता है रोज की नियमित साधना आज नहीं कल पर छोड़ देता हूं ऐसा क्यों और साथ ही मेरी साधना मैं सफलता नहीं मिलने से मैं अभी तक जीरो हूं जिसकी वजह से किसी को प्रेरणा भी नहीं दे पा रहा हूं अपने आप को सुधार नहीं पाया और दूसरों को सुधारने की भी सोच रहा हूं और सोच रहा हूं कि मैं भी युवा प्रकोष्ठ बनूं यह कैसे संभव हो पाएगा
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