Saturday, 26 September 2020

सास, ससुर, बहु, बेटे के नाम पत्र

 ---> प्रिय बहु रानी,

अगर तुम्हें लगता है, सास-ससुर के कारण तुम सुखी नहीं रह पा रही हो। उन्हें घर से निकालने का उपक्रम सोच रही हो, तो बहुत बड़ी भूल कर रही हो। जिनके सास-ससुर नहीं है वह कोई बड़े सुखी नहीं है। एकल परिवार सुख नहीं देता, अपितु मित्रवत व्यवहार व अन्तःज्ञान ही सुख की पूंजी है। एकल परिवार के अपने फायदे व नुकसान हैं, बड़े परिवारों में समूह में रहने के अपने फायदे नुकसान है। जिन सास ससुर को आज घर से निकालने की सोच रही हो, वह न होते तो तुम्हारा पति भी न होता। तुमने अपने पति को जन्म नहीं दिया है, न ही पाल पोष कर बड़ा किया है, न ही उसे पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया है। यदि तुम अपने सास ससुर के साथ दुर्व्यवहार करोगी तो वह पाप तुम्हें भविष्य में अवश्य मिलेगा, तुम्हारी सन्तान भी तुम्हें घर से निकालेगी। कर्म फल का अटल सिद्धांत है, जो बोओगी वही काटोगी। 


सास ससुर को उनके कर्मों की सज़ा या वरदान देने के लिए परमात्मा है। तुम उन्हें दंडित करके अपना भाग्य मत बिगाड़ो।


सुख का सृजन प्रत्येक परिस्थिति में मनःस्थिति ठीक करके किया जा सकता है।

---> प्रिय बेटे,

अगर तुम्हें लगता है, माता पिता के कारण तुम और तुम्हारी पत्नी सुखी नहीं रह पा रही। पत्नी को खुश करने के लिए उन्हें घर से निकालने का उपक्रम सोच रहे हो, तो बहुत बड़ी भूल कर रहे हो। जिन बहु के सास-ससुर नहीं है वह कोई बड़े सुखी नहीं है। एकल परिवार सुख नहीं देता, अपितु मित्रवत व्यवहार व अन्तःज्ञान ही सुख की पूंजी है। एकल परिवार के अपने फायदे व नुकसान हैं, बड़े परिवारों में समूह में रहने के अपने फायदे नुकसान है। जिन माता पिता को पत्नी को सुखी रखने के लिए आज घर से निकालने की सोच रहे हो, वह न होते तो तुम्हारा अस्तित्व भी न होता। तुम्हारी पत्नी ने तुम को जन्म नहीं दिया है, न ही पाल पोष कर बड़ा किया है, न ही तुम्हें पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया है। यदि तुम अपने माता पिता के साथ दुर्व्यवहार करोगे तो वह पाप तुम्हें भविष्य में अवश्य मिलेगा, तुम्हारी सन्तान भी तुम्हें घर से निकालेगी। कर्म फल का अटल सिद्धांत है, जो बोओगे वही काटोगे। 


माता पिता के कारण पत्नी को प्रताड़ित करना, उसे उसके अपेक्षित सम्मान व अधिकार से वंचित रखना भी सर्वथा अनुचित है। वह अपना घर व परिवार छोड़कर तुम्हारा परिवार व सन्तान सम्हालने आयी है। 


अतः बैलेंस बनाना तुम्हारा उत्तरदायित्व है। दोनो पक्षो को सम्हालो।


सास ससुर हो या पत्नी उनके कर्मों की सज़ा या वरदान देने के लिए परमात्मा है। तुम उन्हें दंडित करके अपना भाग्य मत बिगाड़ो।


सुख का सृजन प्रत्येक परिस्थिति में मनःस्थिति ठीक करके किया जा सकता है।

----> प्रिय सास-ससुर जी,

यदि यह भ्रम है कि बहु को आपका आज्ञाकारी होना चाहिए, बहु के कारण घर में अशांति है। तो यह भ्रम जितनी जल्दी मन से निकाल दो उतना अच्छा है। ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। केवल बहु की ही हमेशा गलती नहीं होती। बेटे के विवाह की जल्दी आपको थी, बेटे रूपी दूध में बहु रूपी दही का जामन डल गया। तो बेटा आपका पूर्वत दूध से व्यवहार का कैसे रह सकता है। अब  बहु-बेटे में दूध के गुण क्यों तलाश रहे हो? दही मीठी करने के लिए अतिरिक्त व्यवहार में मिठास व बुद्धिप्रयोग करना पड़ेगा। वह दूसरे गर्भ से जन्मी व पली बढ़ी लड़की है, उसके व्यवहार आपके मन मुताबिक नहीं होंगे। बेटे के जीवन मे अब उसका आधा अधिकार है। 


बहु बेटे के जीवन मे बेवज़ह दखल मत दो, बिना मांगे सलाह मत दो। उन्हें गलतियां करके गिरकर सम्हलने दो। आपके पास जन्म से 21 वर्ष तक का समय बेटे को स्व-इच्छित सँस्कार देने का था। अब उसे सलाह देने का समय व्यतीत हो गया है। अब मौन हो जाएं।


मानसिक सन्यास लेकर स्वयं को ईश्वरीय आराधना व स्व उद्धार हेतु नियोजित करें। समाज कल्याण के कार्य मे जुटे। व्यस्त रह सकें ऐसी दिनचर्या बनाएं। जब आप जॉब करते थे तो आप व्यस्त थे अब वो व्यस्त हैं। आप फुर्सत में आ गए तो वह अपनी व्यस्तता आपके लिए छोड़ दें, एसी उम्मीद न करें। आत्म निर्भर बने, उपयोगी बने। लड़ाई झगड़े से बचे, परिवार की लड़ाई में जीतना भी हारना ही होता है।

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