प्रश्न - क्या दुर्व्यवहार व सबके समक्ष जोर जोर से चिल्लाने वाले पति का त्याग उचित है? जिसने विवाह के बाद से आज तक कभी सम्मान नहीं दिया व मेरी परवाह नहीं की, हमेशा जलील किया मुझे, कभी मेरे बारे में नहीं सोचा। एसे पति को (मेरी उम्र 64 की है) में तलाक देना चाहती हूँ। क्या मैं सही सोच रही हूँ?
उत्तर - आत्मीय दी, ध्यान का अर्थ यह नहीं कि दुनियाँ मौन हो जाये। ध्यान का अर्थ है स्वयं मौन होना। आनन्द का अर्थ यह नहीं कि दूसरे आनन्द देंगे, आनन्द का अर्थ है जीवन के आनन्द का स्रोत ढूंढ़ना। मेरी प्यारी दी गुलाब काँटो के बीच मुस्कुराता है, योगी भयावह अंधेरे जंगल मे हिंसक पशुओं के बीच चैन से साधना करता है।
आपके पति मूर्खतापूर्ण व कलुषित आचरण विवाह के दिन से कर रहे हैं, 40 वर्ष से ज़्यादा उन्हें झेल चुकी हैं और उनकी फ़ितरत समझ चुकी हैं। उन्हें यदि आप इस उम्र में छोड़ देंगी तो उनकी दुर्गति निश्चित है, मग़र आपको भी सद्गति नहीं मिलेगी। क्योंकि आपका अच्छा हृदय उन्हें दुःख में तड़फते देख न सकेगा।
यदि आपका कठोर व निर्मम हृदय है तो उनका त्याग कर दीजिए, यदि कोमल व अच्छा हृदय है तो उनकी मूर्खता व हठ को एक योगी की तरह झेल लीजिये। उनको सुधारने का प्रयत्न छोड़ दीजिए। अपितु सपेरे की तरह नागराज को सम्हालने की ओर ध्यान दीजिए। उनका उद्धार साथ निभा के कर दीजिए। गंगा भी पापियों के पाप धोती है, आप भी गंगा बन जाइये।
जब जब वह आपका अपमान करते है तो गुस्सा होने की जगह उनकी मूर्खता पर हंसिये व मौन हो जाइए। क्योंकि वह नादान हैं, आप नहीं। उनके तेज बोलने पर कान में रुई डालकर मन ही मन भजन गाइये। उन्हें इग्नोर करना एकमात्र उपाय है।
वो आपका अपमान इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन भर सम्मान नहीं मिला। अंदर से वह खाली व खोखले हैं। अंदर से पीड़ित हैं। गुब्बारे में जो भरा है, फोड़ने पर वही निकलेगा। गुब्बारे में हवा है या रंगीन पानी यह उसके भीतर पर निर्भर करेगा। वह अपमानित है इसलिए आपका अपमान करता है। वह सम्मानित होता तो सम्मान बांटता। दुनियाँ सब समझती है, किसी के भौंकने से कोई बेइज्जत नहीं होता। गुब्बारा अपने बाह्य रँग के कारण नहीं उड़ता, उसके भीतर हीलियम गैस उसे उड़ाती है, साधारण गैस उसे जमीन पर रखती है। पति के माता पिता द्वारा दिये कलुषित सँस्कार उनमें भरे हैं। अब वह नहीं निकलेंगे।
उनकी जरूरत का कार्य कर दीजिए। उन्हें एक विश्वमाता माता की तरह सम्हाल लीजिये।
मेरी माता कहती थी, बेटा प्रत्येक व्यक्ति अकेला आया है व अकेला जाएगा। सबके कर्मफ़ल उसके साथ जाएंगे। केवल अपने कर्मो पर ध्यान दीजिए। स्वयं को व्यस्त रखिये, मस्त रहिये। कौवे की काँव काँव योगी का ध्यान नहीं भटका पाती, इसीतरह पति का जोर जोर से जलील करना एक योगिनी पत्नी को व्यथित न कर पायेगा।
न पति के साथ आनन्द है, और न ही पति के बिना आनन्द है। आनन्द का स्रोत भीतर है, उसे ढूंढने के लिए जुटिये। जंगल में मंगल योगी ही पा सकता है। योगी बनने में जुट जाइये।
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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