दर्द का स्रोत ध्यान केंद्रित कर पता करें, उस जगह प्राण भेज कर उसका स्वतः उपचार करें।
कमरे में धुंआ है तो हमेशा इसका अर्थ यह नहीं कि पूरे कमरे में आग लगी है, कोई छोटा सा अग्नि श्रोत चूल्हा या अलाव हो सकता है। धुंआ पर पानी डालने से धुंआ बन्द न होगा उस अग्नि श्रोत को बुझाने की आवश्यकता है। इसीतरह सर में दर्द है तो इसका हमेशा यह अर्थ नहीं कि पूरे सर में दर्द है, कोई दर्द का स्रोत पिन पॉइंट होता है। इसीतरह पैर में दर्द है तो इसका अर्थ यह नहीं कि पूरे पैर में दर्द है।
आईए प्राणिक उपचारार्थ स्वयं के दर्द का स्रोत पता कीजिये, कोई अच्छी सेंट की खुशबू रूम में कर लें। कोई मधुर बांसुरी धुन या नाद योग मधुर स्वर में चला लें। अब शवासन में आराम से हथेली आकाश की ओर हो इसतरह लेट जाएं। 11 बार गायत्री मंत्र पढ़ते हुए गहरी श्वांस लें। फिर धीरे धीरे शरीर को ढीला छोड़ दें। स्वयं को शरीर से अलग महसूस करें। निरीक्षक की तरह पहले समस्त शरीर के समस्त अंग पर आंख बंद किये हुए ही ध्यान ले जाएं। फ़िर दर्द के एरिया पर ध्यान केंद्रित करें। पता करें कि दर्द का स्रोत क्या है? शरीर को आपने धारण किया है, शरीर और आप दो पृथक चीज हैं। शरीर को मानसिक ध्यान द्वारा निरीक्षण करते समय यह महसूस करें कि मैं शरीर से पृथक हूँ, अतः दर्द और मैं पृथक हूँ। मैं दर्द से परे हूँ। लेकिन यह शरीर मैं ठीक कर सकता हूँ। मैं दर्द को ठीक कर सकता हूँ। दर्द के स्रोत पर ध्यान केंद्रित करते हुए भावना कीजिये कि वहाँ पर ब्रह्माण्ड से नीली रौशनी भेज रहे हैं। वह उसे ठीक कर रहा है। अब शरीर को उपचारार्थ छोड़कर थोड़ी देर आकाश में स्वयं को पद्मासन में बादलों पर सूर्य के समक्ष बैठा हुआ महसूस करें। पुनः ध्यान में सूर्य में प्रवेश कर जाएं। फ़िर स्वयं को सूर्य के समान अग्निवत महसूस करें। पुनः भावना करते हुए सूर्य प्राण युक्त रश्मियों सहित अपने शरीर में प्रवेश कर जाएं। शरीर को ऊर्जावान महसूस करें। थोड़ी देर यूँ ही लेटे रहें। फिर दोनों हथेलियों को रगड़कर मुंह मे फेरे और हथेली को देखते हुए आंख खोले। और आराम से उठे, स्वयं को स्वस्थ महसूस करें।
💐श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
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