प्रश्न - "अति सर्वत्र वर्जयेत" इसे समझा दीजिये..
उत्तर - अति सभी जगह वर्जित है। इसे एक कहानी के माध्यम से समझते हैं।
एक बार एक राजकुमार सन्यासी-भिक्षुक बनने आया व स्वयं को अत्यंत कठोर अनुसाशन में ढालने पर बीमार हो गया। तब बुद्ध उसके पास एक वीणा वाद्य यंत्र लेकर गए। बोले सुना है तुम इसे अच्छा बजा लेते हो। तार ढीले थे, तो राजकुमार ने कहा तारों को कसना पड़ेगा, अन्यथा सुर नहीं निकलेंगे। तब बुद्ध उसे बड़े जोर से कसने लगे, तब राजकुमार बोला अरे अरे अत्यधिक कसने पर तार टूट जाएंगे। सङ्गीत भी न निकलेगा। भगवन वीणा के तार न ज्यादा ढीले होने चाहिए और न ही अत्यधिक कसे होने चाहिए। मध्यम मार्ग उचित है।
तब भगवान बुद्ध ने कहा, अति सर्वत्र वर्जयेत। यह तुम पर भी लागू होता है, तुम मेरी दृष्टि में सर्वश्रेष्ठ बनने के चक्कर मे अत्यधिक कठोर अनुशासन व तप कर रहे हो। लेकिन क्या इससे जीवन सङ्गीत के तार टूट न जाएंगे? अतः सम्यक (संतुलित) तप साधो। तुम्हारा कम्पटीशन दुसरो से नहीं है, न तुम्हे मात्र मेरी दृष्टि में श्रेष्ठ बनना है। तुम्हारा कम्पटीशन केवल तुमसे है, कल से आज कितना बेहतर बने यह तुम्हारी उपलब्धि है। तुम्हें स्वयं की व उस परमात्मा की दृष्टि में श्रेष्ठ बनना है।
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