Monday, 19 October 2020

प्रश्न - क्या स्त्रियों को प्रजनन का उत्तरदायित्व देकर कष्ट देकर भगवान ने अन्याय नही किया? स्त्रियों को पुरूषों से अधिक कष्ट क्यों दिया?

 प्रश्न - क्या स्त्रियों को प्रजनन का उत्तरदायित्व देकर कष्ट देकर भगवान ने अन्याय नही किया? स्त्रियों को पुरूषों से अधिक कष्ट क्यों दिया?

उत्तर - भगवान बहुत सुंदर सृष्टि बनाई है, जहाँ स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। जब तक वह एक दूसरे के लिए समर्पित होकर जीते हैं परिवार धरती का स्वर्ग होता है। विद्युत भी धनात्मक व ऋणात्मक ऊर्जा के संयोजन से निकलती है, ऐसे ही पृथ्वी के समस्त जीव वनस्पतियों और मनुष्यों में नर और मादा दोनों का अस्तित्व है। भगवान ने सृष्टि में सन्तुलन रखा हुआ है, यहां किसी को कम या किसी को ज्यादा दुःख नहीं मिला हुआ है।

पुरुषों को कठोरता शरीर में दी गयी ताकि परिवार के लिए संरक्षक व पोषण कर्ता बन सके, जो भी तूफान व कठिनाई आये उसे आगे बढ़कर झेलें। परिवार को सुरक्षा चक्र दें। स्त्रियों का शरीर कोमल, लचीला और इस तरह बनाया गया कि वह पृथ्वी की तरह सृष्टि में योगदान दे सकें। गर्भधारण कर सकें, अपने प्यार और ममता की भावनाओं से रक्त को दूध में बदल सकें, शिशु को पोषण दे सकें। कोमलता व कठोरता का संयोजन स्त्री व पुरुष हैं। एक बच्चा हो या बड़ा व्यक्ति जब छोटे कष्ट में होता है तो कहता है - "ओ माँ" और जब बड़ी दुर्घटना हो तो कहता है- "बाप रे बाप"। 

मनुष्य को छोड़कर किसी भी जीव वनस्पति को कोई आपत्ति नहीं है कि स्त्रियां/मादा ही क्यों गर्भ व बालक के जन्म के असीम कष्ट को सहती हैं? 

पुरुषों की भी अपनी कई समस्याएं हैं जैसे रोज सुबह उस्तरे/रेजर से दिन की शुरुआत दाढ़ी बनांकर करना, वो भी सोचते होंगे हमारे साथ ही ऐसा क्यों? स्त्रियों  की कमाई शौक है, लेकिन लड़कों के लिये कमाना मजबूरी होती है। उन्हें तो कमाना ही पड़ेगा। घर के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा। हमारे समाज में तो लड़के बेचारे तो रो भी नहीं सकते और यह कह नहीं सकते कि मुझे घर में ही गृहकार्य करने दो और मेरा व्याह उस लड़की से कर दो जो कमाए। हमारे समाज मे कमाने वाली लड़की बेरोजगार का हाथ नहीं थामती, उसे अपने बराबर या उससे ज्यादा कमाने वाला पति चाहिए। फैक्ट्री में जितने भी कठोर कार्य है, वह पुरुषों को ही दिए जाते हैं। 

कुछ परसेंट दुष्ट प्रकृति के पुरुष व स्त्रियों को यदि छोड़ दें, तो आप पाएंगे जिन घरों में पति पत्नी का आपस मे प्रेम है और एक दूसरे के लिए समर्पित हैं, वहाँ भगवान की बनाई सृष्टि उनके लिए वरदान है। एक घर को सम्हाल रहा है और दूसरा घर के लिए कमा रहा है, कष्ट उठा रहा है। कहीं कही पति और पति दोनों कमा रहे हैं। एक दूसरे के लिए समर्पण के साथ घर गृहस्थी निभा रहे हैं।

अहंकारी स्त्री व पुरुषों को ही भगवान की बनाई सृष्टि से आपत्ति है, क्योंकि वह एक दूसरे के पूरक नहीं बनना चाहते, अपितु प्रतिद्वंदी है। वह एक दूसरे के विरुद्ध अनदेखा मानसिक युद्ध लड़ रहे हैं। 

बुद्धि स्तर पर लड़के व लड़की बराबर हैं, मात्र शरीर से एक कोमल और एक कठोर है। ऐसा कोई कार्य नहीं जो बुद्धि स्तर पर दोनो न कर सकें। 

अभ्यास से व चिकित्सा की मदद से कोई भी अपना शरीर मर्दाना या औरत का कर सकता है। लेकिन क्या इससे उसे प्रशन्नता मिल जाएगी?

माता न होती तो क्या जन्म सम्भव है? यदि पिता न हो तो क्या जन्म सम्भव है? 

पाषाण युग से वर्तमान कम्प्यूटर युग तक परिवर्तन मनुष्य ने किया, अन्य जीव वनस्पतियों ने नहीं किया। क्योंकि भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है। अक्ल बड़ी की भैंस सबने कहावत सुनी है। अतः यदि भगवान ने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अक्ल दी है, उसे नित्य पढंकर और बढ़ाया जा सकता। जो पढ़ेगा और अभ्यास करेगा वह लड़की हो या लड़का बुद्धिमान बनेगा। अतः इससे सिद्ध होता है कि भगवान ने किसी के साथ अन्याय नहीं किया। मानव जाति को केवल अन्य पशु पक्षी से केवल बुद्धि अधिक दी है, और बुद्धि स्त्री व पुरुष को समान मिली है।

💐श्वेता, DIYA

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