Wednesday, 21 October 2020

प्रश्न - सबकुछ है फिर भी संतोष, संतुष्टि व शांति नहीं है? कोई उपाय बताएं।

 प्रश्न - सबकुछ है फिर भी संतोष, संतुष्टि व शांति नहीं है? कोई उपाय बताएं।

उत्तर- जब तक मन में इच्छाओं-वासनाओं की झाड़ियां व जाल रहेगा तब तक संतोष व संतुष्टि नहीं हो सकती।

इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति में बाधा को दुःख कहते हैं। इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति को सुख कहते हैं। यही संतुष्टि व असंतुष्टि है।

लेकिन जो इच्छाओं व वासनाओं के जाल से मुक्त हो जाये, सुख व दुःख से परे हो जाये उसे मुक्ति व आनन्द कहते हैं।

उदाहरण - यदि समोसे खाने की इच्छा मन में जगी, मिल गया तो सुख और न मिला तो दुःख। 

सन्तान की इच्छा है - सन्तान मिली तो सुख और बांझ हुए व सन्तान न हुई तो दुःख

अमुक लड़की/लड़के को को अमुक लड़के/लड़की से प्रेम हुआ व विवाह की इच्छा जगी - विवाह हो गया तो सुख न हुआ तो दुःख

इसी तरह धन , पद, प्रतिष्ठा इत्यादि की इच्छाओं के अनन्त जाल हैं, यह रक्तबीज राक्षस की तरह है, एक के पूरी होने पर दूसरी व तीसरी इच्छाएं उतपन्न होती रहेंगी। सुख-दुःख का अनुभव चलता रहेगा। यही भव सागर है। इससे मुक्त होना ही मोक्ष व आनन्द है।

अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ो, जो पाया है उसे थोड़ा तो जरूरतमंद में बांटो। देखना आत्मा जब तृप्त होगी तो संतोष मन मे मिलेगा।

एक प्रयोग करके देखो:-

इस बार ठंड में आधी रात को जीवनसाथी के साथ अपनी गाड़ी में 10 कम्बल, 10 बोतल पानी, 10 पैकेट मीठा क्रीम बिस्किट और 10 पैकेट ब्रेड का पैकेट लेकर निकलना। चुपके से जो भिखारी रोड के किनारे या पुल के नीचे सो रहे हों, उन्हें बिना जगाए कम्बल ओढ़ा देना, व उस कम्बल के नीचे सीलबंद पानी की बोतल, बिस्किट और ब्रेड रख देना। सुबह जब वह भिखारी उठेंगे तो वह भगवान को धन्यवाद देंगे। तब तुम्हारे अंदर असीम संतुष्टि अनुभव होगी, क्योंकि तुम उनके लिए अदृश्य देवदूत बन गए।

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