किराये का आशियाना,
यह शरीर है हमारा,
कुछ पल यहां ठहर के,
हमें आगे है बढ़ जाना।
वो मालिक है हमारा,
उसने दिया है ये ठिकाना,
जब चाहे कह दे हमसे,
इसे छोड़के अब पड़ेगा हमें जाना।
आये थे अकेले,
अकेले ही है हमें वापस जाना।
जो कुछ यहां मिला है,
सब यहीं छोड़ के पड़ेगा जाना।
इस अनवरत यात्रा में,
मिलेंगे कई ठौर और ठिकाने,
कुछ मिलेंगें जाने पहचाने,
कुछ होंगे बिल्कुल अंजाने।
मोह छोड़ के यहां का,
हमें ईश्वरीय कार्य है निबटाना,
आगे की सुखद यात्रा के लिए,
अच्छे कर्मफ़ल का पाथेय है कमाना।
जितनी साँसे मिली हैं,
उन्हें व्यर्थ न गंवाना,
उपासना साधना आराधना से,
नित्य आत्मा का आहार जुटाना।
किराये का आशियाना,
यह शरीर है हमारा,
कुछ पल यहां ठहर के,
हमें आगे है बढ़ जाना।
श्वेता, DIYA
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