Tuesday, 13 October 2020

माता अपने गर्भस्थ शिशु या दुग्धपान कर रहे शिशु के, या बड़े बच्चे के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-

 *माता अपने गर्भस्थ शिशु या दुग्धपान कर रहे शिशु के, या बड़े बच्चे के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने हेतु और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए निम्नलिखित अनुष्ठान शारदीय नवरात्रि में करें-*


दीर्घायु चिरंजीवी तेजस्वी ओजस्वी वर्चस्वी सन्तान के निर्माण के लिए 9 दिन तक 9 माला नित्य गायत्री मन्त्र जप व एक-एक माला निम्नलिखित दुर्गा मन्त्र की जप लें। बच्चे के जीवन के संकट दूर हो जाएंगे। कुल 12 माला जपनी होगी (9 + 1 + 1 + 1)


नौ माला नित्य गायत्री मंत्र जप - 


👉🏻 *ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात।* 👈🏻


एक माला मृत्युंजय सौभाग्य मन्त्र -

👉🏻 *ॐ जूं सः माम् सन्तान भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूं ॐ* 👈🏻


*बच्चे के जीवन की सर्व बाधा निवारण हेतु और सुख समृद्धि हेतु नित्य एक माला मन्त्र* -


👉🏻 *सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥* 👈🏻



एक माला महामृत्युंजय मंत्र की रोगमुक्ति और आरोग्यता लाभ हेतु -

👉🏻 *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*

*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*👈🏻


कुछ क्षण ईश्वर का ध्यान कीजिये, फिर भावना मन्त्र के एक एक वाक्यों को ध्यान से बोलिये व महसूस कीजिये। गर्भिणी गर्भ में हाथ रखकर बोलें, छोटे बच्चों की माताएं बच्चे को गोद मे रखकर बोलें। बड़े बच्चे की माताएं बच्चे को बग़ल में बैठाकर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलें :-


👉🏻🌹🌹 *ध्यानस्थ होकर निम्नलिखित भावना मन्त्र एक बार बोलिये* 🌹🌹👈🏻

निम्नलिखित याद कर लें, आंखे बंद करके सोचते हुए मन ही मन दोहराने से अधिक लाभ मिलेगा।


"मेरी सन्तान का रक्त का रंग खूब लाल है, यह इसके उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इसके रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मेरी सन्तान स्वस्थ व सुडौल है, इसके सभी अंग पूर्ण विकसित हैं। और इसके शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। इसके नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे इसकी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। इसके फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, यह गहरी श्वांस ले रहा है, इसकी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह इसे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मेरी सन्तान को किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, यह सुंदर स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा है। यह इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि इसका अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। यह शक्तिशाली है। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति इसके रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"


"यह मेरी सन्तान शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा है, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना इसका परम् लक्ष्य है। यह आधिकारिक शक्ति प्राप्त करेगा, स्वस्थ बनेगा, ऊंचा उठेगा। अब यह जीवन की समस्त बाधाओं और कमज़ोरियों को परास्त कर देगा। इसके भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। यह अपने जीवन में सफ़लता के मार्गपर अग्रसर होगा। यह अपनी समस्त समस्याओं के समाधान हेतु सक्षम बन गया है। यह विजेता बन गया है।"


"अब यह एक आत्मउर्जा से ओतप्रोत बलवान शक्ति पिंड बन गया है, यह अब एक ऊर्जा पुंज है। अब यह जीवन तत्वों का भंडार बन गया है। अब यह स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न है।"


निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-


1- यह त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान सन्तान है इसे मुझपर कृपा कर माता ने दिया है।

2- यह बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान है।

3- मैं भी गायत्री माता की गर्भनाल से जुड़ा/जुड़ी हूँ और माता गायत्री मेरा बहु पोषण कर रही हैं और मेरी सन्तान का भी पोषण कर रही हैं। मुझे और मेरी सन्तान को माता गायत्री बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्र/पुत्री हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा/रही है। मैं अपनी सन्तान को भी वेददूत बनाउंगी।

5- जो गुण माता गायत्री के हैं वो समस्त गुण मुझमें है, और मेरी सन्तान में भी हैं।

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फिर गायत्रीमंत्र - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।* बोलते हुए दोनों हाथ को आपस मे रगड़िये। हाथ की हथेलियों को आंखों के उपर रखिये धीरे धीरे आंख खोलकर हथेलियों को देखिए। फिर हाथ को पहले बच्चे के चेहरे पर ऐसे घुमाइए मानो प्राणतत्व की औषधीय क्रीम उसके चेहरे पर लगा रहे हो। यदि गर्भिणी हैं तो गर्भ में हाथ घुमाइए, फिर हाथ को समस्त शरीर मे ऐसे घुमाइए मानो क्रीम लगा रही हो।।


शांति मन्त्र नित्य मात्र तीन बार  बोलिये,  सबके स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए दोहराइये:-


*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,*

*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।*

*ॐ शांतिः शांतिः शांतिः*


सभी मुझे और मेरी सन्तान को मित्रवत देखें, और मैं और मेरी सन्तान सबको मित्रवत देखूँ। मैं और मेरी सन्तान जिसे देखें उसका कल्याण हो, जो हमें देखे तो हमारा भी कल्याण हो। हम सब सपरिवार सभी सुखी हों, सबका उज्ज्वल भविष्य हो।


मैं और मेरी सन्तान के मन में किसी के लिए कोई राग, द्वेष और वैर भाव नहीं है। मेरी और मेरे सन्तान के सभी मित्र हैं, मैं आत्मा हूँ और मेरी सन्तान भी एक आत्मा है, मैं सबका मित्र हूँ, मेरी सन्तान भी सबकी मित्र है।

ॐ शांति

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गायत्री मंत्र 9 से अधिक भी जप सकते हैं। 24 हज़ार के अनुष्ठान हेतु 27 माला रोज जप सकते हैं, 9 दिन तक।


पूर्णाहुति यज्ञ या दीपयज्ञ के माध्यम से कर लें।

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