Sunday, 18 October 2020

प्रश्न - क्या तर्क से जीवन समझा जा सकता है?

 प्रश्न - क्या तर्क से जीवन समझा जा सकता है?

उत्तर- तर्क जीवन को समझने में थोड़ी बहुत मदद कर सकता है, तर्क से जीवन समझा नहीं जा सकता।

उदाहरण -1 -  गुलाब के पुष्प की जीवंतता और उसकी खूबसूरती व महक को समझना

तर्क कैंची की तरह और वैज्ञानिक औजारों की तरह है। यदि किसी वैज्ञानिक लैब को गुलाब का पुष्प दो तो उसे काटकर, विभिन्न कैमिकल में डालकर उसके प्रोपर्टी और परिभाषा बता देंगे। उपयोग बता देंगे। मग़र अब उस गुलाब में जीवंतता न बची, खूबसूरती न बची, वह जीवंत महक न बची, वह आकर्षण न बचा। क्योंकि लैब में गुलाब का जीवन मर चुका है। जिसका विश्लेषण किया गया वह तो गुलाब का जड़ व मृत पार्टिकल है।

उदाहरण - 2- माता के प्रेम को तर्क या विज्ञान से नहीं समझा जा सकता। छोटा बच्चा गिर गया, लोग उठा के हॉस्पिटल ले गए मग़र वह चुप न हुआ। माँ आयी हृदय से लगाया, आँचल से मुंह पोंछा बच्चा चुप हो गया।

जीवन के जड़ स्तर को तर्क से बताया जा सकता है - यदि सांसे चल रही हैं, चल उठ बैठ व कार्य कर सकता है, खा पी सकता है। अर्थात व्यक्ति जीवित है। लेकिन क्या यही जीवन हैं? नहीं न..

अच्छा यह बताओ किन तर्क व वैज्ञानिक उपकरणों से नापोगे - उत्साह, उमंग, उल्लास, रसमय जीवन, प्राणवान व्यक्तित्व, जीवन जीने की कला और जीवन उद्देश्य को। जब यह जीवन के दूसरे चरण मन को पूर्णतयः समझने में ही तर्क फेल हो गया।

तो जीवन का तीसरा चरण चेतना के आयाम, आत्मा का अस्तित्व व आत्मा का उस विराट से जुड़कर स्पंदित होना। यहां तक तर्क कैसे पहुंचेगा।

स्थूल नेत्र दिन में आसमान से ऊपर व धरती के नीचे नहीं देख सकते, तो इसका अर्थ यह नहीं कि ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं है। मनुष्य की छोटे से कप जैसी बुद्धि में सागर भरने में असफल हो जाओगे। अतः सागर को समझना है तो उसमें प्रवेश करो। तर्क व शब्द बड़े तुच्छ हैं इनसे से जीवन समझा जा सकता है और न ही समझाया जा सकता है।

💐श्वेता, DIYA

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