ठाकुर रामकृष्ण के पास आकर एक शास्त्र ज्ञाता प्रवचन किया? सभी शिष्य आनन्द विभोर हो गए व उसके पाण्डित्य की प्रसंशा की।
शास्त्रज्ञाता ने ठाकुर से पूँछा- आपको मेरा वक्तव्य कैसा लगा?
ठाकुर ने कहा - बेटा तुमने तो कुछ बोला ही नहीं, शास्त्र बोले उन्हें लिखने वाले बोले, मगर तुम्हारे इस वक्तव्य में ऐसा क्या था जो तुम्हारे अनुभव में था? कुछ नहीं न.. मैं तुम्हें सुनने बैठा था, मग़र तुम तो भीतर मौन थे। केवल स्मृति भरा टेपरिकॉर्डर बोल रहा था। जब तुम बोलोगे तब मैं समीक्षा करूंगा और बताऊंगा कैसा था।
शास्त्रज्ञता मौन व स्तब्ध हो गया, स्वयं की समीक्षा की और पाया कि मैं तो रट्टू तोता हूँ, ज्ञान के स्रोत को अनुभव कभी किया नहीं। वह मौन निरुत्तर चला गया सत्य की खोज में जुट गया।
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