पूर्वाभास - अर्थात जो घटने वाला है उसके संकेत घटने से पूर्व ही मिल जाना।
जैसे स्थूल नेत्र स्थूल जगत देख सकते हैं, वैसे ही मनुष्य के भीतर के सूक्ष्म नेत्र - जिसे तृतीय नेत्र या छठी इन्द्रिय कहते हैं वह सूक्ष्म जगत की हलचल को देख व महसूस कर सकती है। समय से परे भी देख सकती है और भविष्य दर्शन भी कर सकती है।
कोई भी घटना स्थूल में घटने से पूर्व सूक्ष्म जगत में घट जाती है। जैसे फ़िल्म बनने से पूर्व उसकी स्क्रिप्ट लिखी जाती है, वैसे ही स्थूल में घटने वाली घटना की स्क्रिप्ट सूक्ष्म जगत में पहले ही लिख जाती है।
पूर्वाभास उसी व्यक्ति को अधिक होता है, जिसका चित्त एकाग्र होने की क्षमता रखता है। जो पूर्व जन्म में या वर्तमान जन्म में ध्यान व योग का अभ्यास किया हो या कर रहा हो। ध्यान व योग से मनुष्य की अतीन्द्रिय क्षमता विकसित होती है, वह समय से परे सूक्ष्म जगत की हलचल महसूस करके घटना का पूर्व संकेत समझ पूर्वाभास कर सकता है।
ध्यान रहे, अतींद्रिय (छठी इन्द्रिय या तृतीय नेत्र) स्थूल शरीर का अंग नहीं है, यह मनुष्य के सूक्ष्म शरीर मे स्थित है। अतः यदि पूर्व जन्म में साधना द्वारा किसी ने इसका कुछ परसेंट जागृत किया होगा तो वर्तमान जन्म में भी उसके सूक्ष्म नेत्र व अतींद्रिय क्षमता कार्य करेगी। इस जन्म साधना की तो इस जन्म में अतींद्रिय क्षमता विकसित होगी वह इस जन्म के साथ साथ अगले जन्म में लाभ देगी।
श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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