एक बार मैंने तितली पकड़ी। उसकी याद इतनी मन में बसी की रात को स्वप्न में देखा कि हम स्वयं तितली हैं, याद ही नहीं रहा की मनुष्य हैं। समस्त अनुभव तितली के थे। सुबह उठी तो स्वयं को मनुष्य पाया।
लेकिन एक प्रश्न मन में उठा - एक मनुष्य कल स्वप्न देख रहा था कि वह तितली है? या एक तितली आज स्वप्न देख रही है कि वह मनुष्य है?
स्वप्न में मुझे मनुष्य होने का भान नहीं था, इस संसार के स्वप्न में तितली को भी मनुष्य होने का भान नहीं है।
वेदों में कहा गया है कि यह संसार स्वप्न है। सत्य ही तो है, एक दिन स्वप्न टूटेगा और संसार से हम विदा होंगे।
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