Sunday 29 November 2020

क्या हमें गायत्री मंत्र का जप रोजाना करना चाहिए? इसके क्या कुछ लाभ हैं?

 क्या हमें गायत्री मंत्र का जप रोजाना करना चाहिए? इसके क्या कुछ लाभ हैं?


बीज से पौधा निकलता है, लेक़िन सही समय पर सही अनुपात में और सही देखरेख में तैयार भूमि में बीज बोने व समय समय पर खाद पानी देने पर, खर पतवार की निराई गुनाई के बाद फ़सल मिलती है।


गायत्रीमंत्र जप या किसी भी मन्त्र जप से पूर्व अध्यात्म के बेसिक्स समझ लें, इसके लिये एक छोटी सी पुस्तक है - "अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार" अवश्य पढ़ लें।


गायत्रीमंत्र जप के अनेक लाभ है। जिस प्रकार विद्युत से गाड़ी या मशीन चलाई जा सकती है, घर रौशन किया जा सकता है और कोई भी इलेक्ट्रिकल उपकरण चलाया जा सकता । वैसे ही गायत्री मंत्र जप की ऊर्जा को सांसारिक लाभ एवं आध्यात्मिक लाभ व उद्देश्य की पूर्ति के लिए नियोजित किया जा सकता है।


ब्रह्मुहुर्त में गायत्री जप बुद्धि की शक्ति को बढ़ाता है, इसलिए गुरुकुल शिक्षा पद्धति में गायत्री जप अनिवार्य था।


गायत्रीमंत्र पर लेटेस्ट रिसर्च डॉक्टर रमा जय सुंदर, AIIMS की इंटरनेट व यूट्यूब पर उपलब्ध है।


डॉक्टर चिन्मय पण्डया - मन्त्र का ज्ञान विज्ञान यूट्यूब पर उपलब्ध है।


6 महीने जप का प्रयोग स्वयं करके देखें व लाभ को स्वयं अपने श्रीमुख से लोगों को इसका लाभ बताएं। कम से कम 324 मन्त्र जप ब्रह्ममुहूर्त में प्रयोग हेतु कम्बल के आसन पर बैठकर जलते हुए घी के दीपक के समक्ष करें। सुबह नहीं उठ सकते तो कोई बात नहीं जब भी उठते हों एक निश्चित समय पर नित्य करें।


गायत्री मंत्र जप से पूर्व षट्कर्म से शुद्धि करें। सम्भव हो तो घी का दीपक जला कर व एक लोटे या ग्लास में जल समक्ष रखकर ही जप करें। देववाहन व देव पूजन के बाद निम्नलिखित भावना करके मन्त्र जप प्रारम्भ करें, जप हमेशा कम्बल के आसन में बैठकर एवं पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके जपें। यदि जगह की समस्या है तो पश्चिम की ओर मुंह भी किया जा सकता है।


गायत्रीमंत्र जप सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्योदय तक जिसे ब्रह्मुहुर्त कहते हैं और सूर्यास्त के दो घण्टे बाद तक का समय जिसे संध्या कहते हैं। उत्तम माना गया है। वैसे जप माला लेकर नहाकर करना है। बिना माला मौन मानसिक जप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं।


जप से पूर्व भावना करें :-


"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"


"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। मेरी बुद्धि का उच्चतर विकास हो रहा है। मैं बुद्धिकुशल बन रहा हूँ, बुद्धिबल व आत्मबल प्राप्त कर रहा हूँ।"


"अब मैं एक बलवान शक्ति पिंड हूँ, एक ऊर्जा पुंज हूँ। अब मैं जीवन तत्वों का भंडार हूँ। अब मैं स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हूँ।"


निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-


1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री/पुत्र हूँ।

2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री/पुत्र हूँ।

3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी/जुड़ा हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री/पुत्र हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा है।

5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।

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फिर गायत्रीमंत्र जप करना शुरू करे - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।*


जप के बाद शांतिपाठ करके उठें।

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