मेरे पिता द्वारा दी गयी अमूल्य सीख :-
डर दूर है तो डर सकते हो और मग़र डर पास आये तो मुकाबला करना चाहिए। आत्मबल से बड़ा कोई अन्य बल नहीं।
मुझे बचपन मे रात के अंधेरे में हिलती झाड़ियों में भूत दिखते थे। पिताजी ने मुझे अंधेरी रात में घर के बाहर सभी लाइट बन्द कर रात 11 से 1 बजे तक बाहर खड़ा रखा और बोला भूत मिले तो उससे मुकाबला करना। दो घण्टे डरते हुए खड़ी रही, भूत नहीं आया मेरा डर समाप्त हो गया।
एक लड़की का पिता अक्सर जमाने से भयग्रस्त देखा जाता है, लेकिन मेरे पिता कभी भयग्रस्त न होते और न ही हमें भयग्रस्त होने देते थे। मेरे पिता कहते थे स्कूल व कॉलेज जाओ और यदि कोई लड़का परेशान करे तो उसका मुंह तोड़कर आना। पुलिस थाना हम देख लेंगे। विपत्ति में बुद्धिबल का प्रयोग करो। अक्ल भैस से बड़ी होती है। तुम बुद्धि के प्रयोग से कोई भी जंग जीत सकती हो। आत्मबल से हमेशा विजयी रह सकती हो।
प्रवास में ज्ञान की रौशनी मार्गदर्शन करती है, वह मुझे अक्सर वीरांगनाओं के जीवन के संघर्ष की कहानियां पढ़ने को कहते व उनके जीवन से प्रेरणा लेने को कहते। सैनिकों की वीरता की कहानी पढ़ाते। साथ ही तेनालीराम, चाणक्य व बीरबल की कहानियों को पढ़ने को कहते और उनकी तरह सोचने को कहते। बोला जीवन में या जीत कर आना या शहीद होकर आना। पीठ दिखाकर कभी मत आना।
मुझे हमेशा सुबह उठकर गायत्रीमंत्र मन्त्र जपने और उगते हुए सूर्य का ध्यान करने को कहते। इससे आत्मबल मिलता है। बोलते थे बेटे गायत्रीमंत्र वह प्राण विद्युत है जो तुम्हें हमेशा चैतन्य रखेगी एवं उगते हुए सूर्य के ध्यान से तुम्हारी बुद्धि प्रखर बनेगी। हर क्षेत्र में सफलता के लिए हमेशा गायत्री मंत्र जप एवं उगते सूर्य का ध्यान करना। संघर्ष के लिए व हर चुनौतियों के लिए तैयार रहना। जब कोई तुम्हे हतोत्साहित करे कि "तुमसे न होगा" तब मन ही मन कहना "यह मुझसे ही होगा" और करके दिखा देना।
कभी प्रेम में कोई वचन मत देना, कभी क्रोध में कोई निर्णय मत लेना। जीवन के महत्त्वपूर्ण व बड़े निर्णय हमेशा सुबह या शाम पूजन, मंत्रजप व ध्यान के बाद ही घर पर लेना।
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