*भाव संवेदना गंगोत्री बहने दो..*
हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।
भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।
प्रकृति के कण कण से जुड़ने का आभास करो।
प्रत्येक जीव वनस्पति से निःस्वार्थ प्रेम करो।
हृदय के प्याले से सबके लिए दिव्य प्रेम झलकने दो।।
हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।
भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।
पुष्प की तरह खिलते रहो, मुस्कुराते रहो।
सारे जहान में खुशियाँ बिखेरते रहो।
जीवन की बगिया को यूँ ही महकने दो।।
हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।
भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।
मन मन्दिर में ईश्वर को मुस्कुराने दो।
सत्कर्मों की अनवरत यज्ञ आहुतियां दो।
प्रेममय-भक्तिमय जीवनयज्ञ होने दो।
हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।
भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।
अतंस में भाव संवेदना जगने दो।
अब खुद में देवत्व उभरने दो।
खुद को ब्रह्ममय बनने दो।
हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।
भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।
🙏🏻 श्वेता, DIYA
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