आत्मरक्षा व देश की रक्षा हेतु हिंसा जरूरी है। मैं सुभाषचंद्र बोष एवं चाणक्य की नीति का समर्थन करती हूँ।
यह मेरा व्यक्तिगत मत है,
यदि बौद्ध धर्म ने भिक्षु बनकर देश की सुरक्षा हेतु जरूरी हिंसा करना भी छोड़ना न सिखाया होता और चाणक्य के शिक्षण अनुसार प्रत्येक शासक राज्य करता तो शायद हमारा देश कभी मुगलों का गुलाम न बनता।
लोगों ने स्व रक्षा प्रणाली को छोड़ दिया, जिस कारण उनका व उनके देशवासियों का भीषण नर संघार हुआ व धर्म परिवर्तन हुआ।
गाँधी जी की नीति अहिंसा व अनशन की नीति न होती, देश की अखंडता बरक़रार रखने हेतु जरूरी हिंसा होती तो देश दो टुकड़ों में विभक्त न होता। विद्रोहियों को दण्ड मिल जाता और भारत अखण्ड ही रहता।
आजादी के वक्त धर्म के नाम पर जितनी हिंसा हुई व जितने लोग मरे उसका 2% भी न मरते, यदि समय पर विद्रोहियों व आतंकियों को सबक सिखा दिया गया होता।
क्या गाँधी जी की अहिंसा व अनशन नीति ने लाखों की मौतों को रोक पाया? लाहौर से सिखों की लाशों भरी ट्रेन क्या गांधी जी के अहिंसा नीति व अनशन से टल गई। यह भीषण हिंसा रुक सकती थी, यदि जरूरी हिंसा से स्थिति सम्हाली गयी होती।
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