सफ़ेद झूठ - हम किसी का बुरा नहीं करते।
बेटे, सबसे ज्यादा बुरा तो हम स्वयं का करते हैं।
1- आलस्य प्रमाद में हम स्वयं के स्वास्थ्य का ख्याल नहीं रखते। स्वस्थ व सात्विक भोजन नहीं करते।
2- मन को मजबूत करने के लिए नित्य ध्यान व स्वाध्याय नहीं करते। श्रीमद्भगवद्गीता जैसे मन प्रबंधन की आध्यात्मिक पुस्तक नहीं पढ़ते। मन को ऊर्जा देने के लिए गायत्री मंत्र इत्यादि नहीं जपते।
3- स्वयं की योग्यता व पात्रता बढाने के लिए नित्य कुछ न कुछ नहीं सीखते।
4- जीवन एक संघर्ष है यह नहीं समझते, एक योद्धा की तरह स्वयं की मनोभूमि तैयार नहीं करते। महापुरुषों की जीवनियां नहीं पढ़ते।
5- जानते हैं कि मनुष्य टीवी नहीं जिसका रिमोट लेकर उसे मनचाहा संचालित कर सकें। मनुष्य बोतल नहीं जिसका मुंह बंद कर सकें। फिर भी लोगों के मुंह बंद करने की कुचेस्टा करते हैं व उनमें मनचाहा सुधार लाने की व्यर्थ कोशिश करते हैं।
अतः जो स्वयं का बुरा कर रहा है, उसका दूसरा बुरा अवश्य करेंगे। जहां कचरा पहले से होगा वहां दूसरे कचरा अवश्य फेंकेंगे।
डरपोक बच्चे को ही दूसरे बच्चे डराते है। बहादुर बच्चे को डराने की कोई हिम्मत नहीं करता।
जीवन के खेल में स्वयं की बैटिंग पर ध्यान दो, दूसरे रिश्तेदार, घरवाले, आस पड़ोस वाले, ऑफिस वाले सब समस्या व टेंशन की बॉलिंग एक एक करके करेंगे। अब तुम्हे जीवन का खेल नहीं आता तो टेंशन होगी। यदि खेलना आता है तो जीवन का आनन्द लोगी।
बेटे, हिरण ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा होता है। फिर मांसाहारी जीव शेर, लकड़बग्घे, जंगली सुअर इत्यादि नित्य उसे शिकार बनाने हेतु आते हैं। हिरण को उन सबसे तेज दौड़ना है, जिस दिन वह तेज न दौड़ा तो उनका शिकार बनेगा व मृत्यु को प्राप्त होगा।।
बेटे, इसी तरह यदि बुद्धिकुशल व आतम्बल के धनी नहीं बने, तो टेंशन देने वाले जीव तुम्हारा शिकार अवश्य करेंगे।
मात्र हिरण की तरह दिल का अच्छा होना काफी नहीं है, जीवन रक्षण हेतु हिरण की तरह दौड़ना भी आना चाहिए। इसीतरह मात्र अच्छा इंसान व भोला होना काफी नहीं, स्व रक्षण के लिए भोलेनाथ को महाकाल बनने की योग्यता भी होनी चाहिए। यह संसार है, यहां आतम्बल रूपी ऊर्जा व बुद्धि रूपी हथियार के साथ स्ट्रेंथ(शक्ति), स्टेमिना(दमख़म) व स्पीड(गति) अनिवार्य है।
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