कम्युनिकेशन की भाषा इंग्लिश हो या हिंदी या अन्य भाषा में हो, भाषा मात्र लिफाफे की तरह होते हैं, जो भावनाओं व उद्देश्य का आदान प्रदान करते हैं। लिफ़ाफ़े से ज्यादा महत्त्व उस लिफाफे के अंदर क्या है उस परनिर्भर करता है। प्रत्येक देश का भिखारी हो या होटल का वेटर उसी देश की भाषा बोलता है। प्रत्येक देश का अमीर व्यक्ति व देश का प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति उसी देश की भाषा बोलता है । अंग्रेज भिखारी अंग्रेजी में ही भीख मांगता है, अंग्रेज बिजनेसमैन अंग्रेजी बोलकर बिजनेस करता है। अतः लिफ़ाफ़े में केवल मत उलझिए उस लिफाफे के अंदर क्या व्यक्तित्व व कृतित्व भरना है उस पर ध्यान दीजिए।
अग्रेजी बोलना आता है तो अहंकार मत कीजिये, अंग्रेजी नही आता तो हीन भावना मत लाइये। अंग्रेजी सिर्फ भाषा है, अमीर व सफल बनने की गारंटी नहीं।
जापान व जर्मन अपनी लोकल भाषा मे बोलकर भी तरक्की कर रहे हैं। हमारा देश भी मुगलों के आने से पहले संस्कृत व हिंदी बोलकर सोने की चिड़िया था, विश्व व्यापार में 21% से अधिक हिस्सेदारी रखता था। ज्ञान में विश्वगुरु था।
स्वलिखित - 26 दिसम्बर 2020
श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
No comments:
Post a Comment