इच्छाएँ मृत हों जायें और व्यक्ति जीवित हो उसे मोक्ष(मुक्ति) कहते हैं। इच्छाएँ जीवित शरीर धीरे धीरे मरने लगे(वृद्ध होने लगे) उसे कहते हैं प्रेतात्मा सा जीवित भटकना।
चेतना के तीन स्तर होते हैं - शरीर, मन एवं आत्मा
शरीर की भूख भोजन मिटाता है, मन की भूख ज्ञान मिटाता है और आत्मा की भूख परमात्मा के सत्संग (भजन, कीर्तन, जप या स्वाध्याय) से उपजे चिंतन से मिटता है।
जिसने स्वयं की चेतना को उच्च स्तर तक आध्यात्मिक चेतना तक नहीं पहुंचाया, उसकी चेतना शरीर व मन तक अटक कर सांसारिक वासनाओं व कामनाओं के जाल में उलझी रहेगी।
ऐसे लोगों के मात्र शरीर वृद्ध होते हैं, इच्छाएँ व वासनाएँ तो जवान ही रहती हैं। ऐसी परिस्थिति में यह काल्पनिक व मानसिक व्यभिचार में लिप्त होते हैं। अश्लील व गंदी फिल्में, साहित्य व चिन्तन में लिप्त रहते हैं। आजकल के ऐसे वृद्ध इंटरनेट व यूट्यूब पर गंदे व अश्लील वीडियो देखते रहते हैं व युवा स्त्रियों को गंदी नज़र से ताड़ते भी रहते हैं। वृद्ध महिलाएं जिनकी चेतना शरीर व मन तक अटकी होती हैं वह गृह कलह करती रहती हैं, घर पर शासन करने की चेस्टा व शौक पालती रहती हैं।
वह वृद्ध जिनकी थोड़ी बहुत भी आध्यात्मिक उन्नति हुई व आत्मा के स्तर को स्पर्श कर सके। वह मोह माया व इच्छा वासना से ऊपर उठकर भक्ति मार्ग व आत्म कल्याण मार्ग पर चल पड़ते हैं। उनके जीवन का लक्ष्य मोक्ष(मुक्ति) होता है। ऐसे वृद्ध मानसिक सन्यास ले लेते हैं, बच्चों के जीवन मे अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करते, बिना मांगे सलाह नहीं देते। व शांति से रहते हैं व बच्चों को भी शांति से रहने में मदद करते हैं।
एक पुस्तक हम सभी युवाओं को अवश्य पढ़नी चाहिए - "उनसे जो पचास के हो चले" और "जीवन जींने की कला" । मुक्ति व आनन्दमय वृद्धावस्था जीने के लिए।
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