शादी के बाद :-
1- जिस माता पिता ने जन्म देकर पाला पोसा जब उसे छोड़ने के लिए पत्नी दबाव डालती है तो पुरुष के हृदय की पीड़ा स्त्री नहीं समझती।
2- जब ऑफिस से एक पुरुष आता है और माँ व पत्नी लड़ते हुए एक दूसरे पर आरोप लगाती हैं, व सैंडविच पुरुष का बनता है तब उसकी मानसिक पीड़ा का अंदाज़ा दोनो स्त्रियां नहीं लगाती।
3- जब लड़का किसी लड़की से प्रेम कर विवाह करता है, व माता को असुरक्षा महसूस होती है कि बेटा मेरे हाथ से गया। कुछ न कुछ बेटों को जब बोलती है तो बेटे का हृदय दुखता है तो यह अंदाजा माँ को नहीं हो पाता।
4- अच्छे पुरुष जो अपनी पत्नी से सच्चे दिल से प्रेम करते हैं, जब पत्नी उनकी आय की लिमिट न समझते हुए डिमांड करती है, तब पति की मनःस्थिति नहीं समझती।
5- अच्छे लड़के जिन्हें लड़कियां प्रेम के नाम पर उनसे अपना कार्य करवाती हैं, वो सब जानते हुए प्रेम में बेवकूफ़ बनते हैं तो उनकी मनःस्थिति लड़की नहीं समझती।
6- बुरे लड़के जब किसी लड़की फंसाने के लिए मकड़ी की तरह प्रेमजाल बुनते हैं, तब लड़की उनके धोखे को नहीं समझ पाती।
7- व्यभिचारी लड़के जब अच्छी पत्नी के प्रेम व सेवा की उपेक्षा कर बाहर सम्बन्ध बनाते हैं। तो उनके इस मनःस्थिति को पत्नी नहीं समझ पाती।
8- सीधे शर्मीले लड़कों को जब ऑफिस या कॉलेज में लड़कियों के समूह द्वारा तंज कसा जाता है, तब उसकी मनःस्थिति व पीड़ा का अंदाजा लड़कियों को नहीं होता।
9- जब एक लड़का पुत्री का पिता बनता है, बेटी की बड़ी डिमांड को पूरी नहीं कर पाता, बेटी झल्लाती है तब पिता के दर्द को बेटी नहीं समझ पाती।
10- विवाह के बाद अपनी जान के टुकड़े बेटी को विदा करते हुए असीम पीड़ा पिता के हृदय को होती है वह बेटी नहीं समझ पाती।
11- अच्छा भाई जब बहन को किसी बात के लिए समझाता है व बहन उसे उल्टा सीधा बोलकर निकल जाती है। तब भाई के हृदय की पीड़ा को वह नहीं समझ पाती।
12- अच्छा भाई जब रक्षाबंधन पर अपनी बहन का इंतज़ार करता है, और रँग में भंग भाई बहन के बीच जब उसकी पत्नी डालती है, तब वह खून के घूंट पीकर रह जाता है। उसके हृदय की पीड़ा पत्नी नहीं समझती।
इस दुनियां में आधा ग्लास भरा व आधा ग्लास खाली है। सभी जेंडर में अच्छे व बुरे लोग होते हैं। अच्छे लोगो को मात्र भोलेनाथ की तरह अच्छा होना नही चाहिए अपितु जब आवश्यकता हो तो महाकाल बनने की योग्यता भी विकसित करनी चाहिए।
दिल के अच्छे रहिये, साथ ही देवी देवताओं की तरह स्व-सुरक्षा हेतु सक्षम एवं योग्य भी बनिये, जिससे आपकी अच्छाई किसी की बुराई हेतु ईंधन न बन सके। अपितु आपकी अच्छाई किसी की बुराई की आग को बुझा सकने में सक्षम हो।
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