Friday 11 December 2020

प्रश्न - क्या आप अपनी सन्तान को लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार दे सकती हैं?

 प्रश्न - क्या आप अपनी सन्तान को लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार दे सकती हैं?


उत्तर - माता पिता के रूप में भारतीय संस्कृति के मूल्यों से अपने बच्चों को जोड़ने व जीवन के प्रति सही समझ विकसित करने का हर सम्भव प्रयास मैं करूंगी। जिससे वह जीवन में सही निर्णय विवेक अनुसार ले सकें।


विवाह दो आत्माओं का भावनात्मक व आत्मिक बन्धन होता है। यहां पास रहने से ज्यादा मन में दिल में रहने को वरीयता दी जाती है।

लिवइन दो व्यक्तियों का मात्र शारीरिक सम्बन्ध होता है, कुछ साथ रहते रहते विवाह कर लेते हैं, कुछ मन भरने पर छोड़ देते हैं। यहां शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु हृदय से जुड़ाव अनिवार्य नहीं।

कानून इसकी इजाजत देता है, धर्म नहीं देता। इंसानियत भी इसकी इजाजत नहीं देता।

पाश्चात्य प्रेरित मानसिकता के युवाओं को चाहिए,

प्रेम बिना बन्धन का,

और बिना जिम्मेदारी का,

मौज मस्ती और पार्टी,

बिना किसी बाधा का,

पाश्चात्य का अंधानुकरण,

सोशल सिक्योरिटी नम्बर के बिना ,

विकसित देश की नकल,

आर्थिक मजबूती के बिना।

प्रेम में आस्था संकट उतपन्न हो गया है, शारीरिक भूख मिटाने को प्रेम की संज्ञा मिल गयी है।

त्याग- सेवा- सहकारिता- जिम्मेदारी उठाना यह प्रेम के वृक्ष की जड़ थी, जिसकी छांव में पूरा जीवन आनन्द से बीतता था। अब यह जड़ ही खोखली हो गयी है। भावनात्मक जुड़ाव और आत्मियता का सर्वथा अभाव हो गया है। गृहस्थी की नींव हिल गयी है।

*प्रेम से गोद मे लिया 10 किलो का बच्चा माता-पिता को भार नहीं लगता, लेक़िन बिना प्रेम के 10 किलो का अन्य सामान भार लगता है। प्रेम किसी से होगा तो विवाह का यह बन्धन, जिम्मेदारी और एडजस्टमेंट भार नहीं लगेगा। प्रेम के अभाव में यही भार स्वरूप हो जाएगा।*

*जो लोग लिव इन रिलेशनशिप की डिमांड करते है और विवाह से बचते है वो वास्तव में प्रेम नहीं करते, केवल शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम तलाशते है, वेश्यालय जाने में खर्च अधिक है, उससे कम पैसों में लिवइन उपलब्ध हो जाता है। मन भर जाए तो छोड़ दो कोई कानून या सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं है।*

हम लिवइन के समर्थन में नहीं है, साथ ही इसके बुरे परिणाम से चिंतित भी जरूर है।

भारतीय लड़कियां विदेशों की तरह सुरक्षित नहीं है, न ही उन्हें सामाजिक सुरक्षा, अधिकार और सम्मान विदेशों की तरह प्राप्त है।

नकल + अक्ल = सफ़ल

नकल + बिना अक्ल = असफ़ल

एक लड़की की लिव इन रिलेशनशिप और कुँवारी मां बनना विदेशों में सामाजिक रूप से स्वीकार्य है। लेकिन भारत मे मान्यता है ही नहीं। तो विदेशों में लड़कियां कुँवारी मां बनने पर गर्भपात नहीं करवाती, और दूसरा और तीसरा जीवनसाथी प्राप्त करने में उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होती। अनन्त रिश्ते जीवन के किसी भी उम्र में बनाना सम्भव है। नाजायज़ बच्चों का भार सरकारी संस्थाएं उठाती है उन बच्चों को पिता के नाम की जरूरत नहीं होती।

भारतीय पाश्चत्य प्रभावित मॉडर्न लड़के, धोबी के कुत्तों की तरह न घर के होते हैं न घाट के। दूसरी लड़कियों के चरित्र में दाग लगाने को बेताब होते हैं।लेकिन अपनी माँ,बेटी, बहन और पत्नी दूध से धुले चरित्र वाली बेदाग़ चाहिए। गर्लफ्रेंड हॉट चाहिए लेकिन पत्नी चरित्र की साफ़ चाहिए।

ऐसे में वर्तमान के लिवइन के मज़ा बाद में भारतीय लड़कियों को बहुत भारी पड़ता है। क्योंकि शादी के बाद वो गृहस्थी के लिए जरूरी त्याग व प्रेम भाव नहीं ला पाती। अंतर्मन कचोटता रहता है।

विदेशों में जनसंख्या कम है और क्षेत्रफल ज्यादा, रोज़गार के अवसर ज़्यादा है। भारत मे क्षेत्रफल कम और रोजगार के अवसर अत्यंत कम हैं।

ऐसे में प्रति व्यक्ति आय और संसाधन जीने खाने के लिए 7 गुना विदेशियों से कम हैं।

पाश्चत्य की नकल करने से पहले अपनी जीवन निर्वहन की योग्यता पर विचार करें, जिससे आप प्रेम कर रहे हो क्या वो हम सफर बनने योग्य है भी या नहीं। जो वादे आप कर रहे हो वो निभाने की योग्यता खुद में है या नहीं। स्वयं पहले आर्थिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से योग्य बने तब ही प्रेम बन्धन में बंधे।

लिवइन में जाने से पूर्व, rethink mode में बैठे, जीवन को प्लान करें। पूरी जिंदगी के आनन्द प्राप्ति का प्लान करें। किसी के बहकावे में न आयें। स्वयं की जिंदगी की प्रॉपर प्लानिंग करें।जो जीव आपके गर्भ से जन्म ले या जिस जीव के पिता आप हों उसे बेमौत मरना न पड़े। स्वयं की संतान के हत्यारे और जीव हत्या का कारण आप न बनें। प्रेम जिम्मेदारी से करें।

मैं केवल अपनी सन्तान को सही व गलत क्या है? व भारतीय संस्कृति में विवाह की इतनी मान्यता क्यों है? इत्यादि उपरोक्त उदाहरण सहित समझाऊंगी। इसके बाद निर्णय उन पर छोड़ दूँगी, उन्हें जो सही लगे सोच समझ के निर्णय लें।

मैं कभी भी अपनी सन्तान को मेरा निर्णय मानने के लिए विवश नहीं करूंगी। केवल उन्हें जरूरी मार्गदर्शन दूंगी व अंतिम निर्णय का अधिकार उनके हाथ में रहने दूँगी।

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