प्रश्न - मेरी मित्र के घर मे बहुत भजन व पूजन होता है। उसके पिता की अकस्मात मृत्यु हो गयी। वह पूंछ रही है कि वह पूजा क्यों करे?
उत्तर- अत्यंत दुःखद है, परिवार के साथ हमारी सम्वेदना है।
आइये मृत्यु का विश्लेषण करते हैं:-
एक व्यक्ति भोजन नित्य करता था, एक दिन भोजन की टेबल पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसके परिवार के किसी ने भोजन करना नहीं छोड़ा।
एक व्यक्ति का माता - पिता एक्सीडेंट में मर गए, लेकिन उसने व उसके परिवार ने कभी रोड पर निकलना नहीं छोड़ा।
एक व्यक्ति के पिता की अचानक मृत्यु हुई क्योंकि उनकी मृत्यु का कारण ज्ञात नहीं, अति पूजा पाठी परिवार था। लेकिन अब उन्होंने ने निंर्णय लिया कि हम पूजा पाठ नहीं करेंगे।
भोजन व यात्रा के बिना काम न चलेगा। मग़र नास्तिकता के साथ भी जिया जा सकता है।
मनुष्य एक स्वार्थी जीव है, जहां स्वार्थ सधता है वहीं उसका रिश्ता निभता है। स्वार्थ पूर्ति में बाधक जीवनसाथी से तलाक व स्वार्थपुर्ति में बाधक भगवान से तलाक लेने में वह पलभर देर नहीं करता।
आपके परिचित पूजा पाठी होंगे मग़र उनका परिवार आध्यात्मिक नहीं होगा। किसी ने उनके परिवार में श्रीमद्भागवत गीता नहीं पढ़ी होगी । साथ ही कर्मफ़ल के सुनिश्चित विधान को नहीं जाना व समझा होगा।
कर्म(action) पर कर्मफ़ल नहीं मिलता, अपितु किस भावना(intention) से कर्म किया गया उसपर कर्मफल मिलेगा।
अच्छा यह बताओ कि हम सब क्या हो? शरीर या आत्मा? यदि स्वयं को शरीर समझते हो तो संसार दुःखमय है, यदि स्वयं को आत्मा समझते हो तो संसार आनन्दस्वरूप है। क्योंकि आत्मा रूप में हम और तुम उस परमात्मा का ही तो अंश हो। जिस प्रकार पुत्र पिता का अंश हुआ।
अब चलो किसी के मरने पर मर्मान्तक दुःख का एनालिसिस करते है? एक वृद्ध पिता 5 साल से बिस्तर पर पड़ा था, जिसकी कोई कमाई नही थी, उसकी मृत्यु हुई। उसके मृत्यु से परिवार जन सुखी होंगे या दुःखी?
एक बच्चा जो जन्मा था वो मर गया, अब सुखी होंगे या दुःखी?
एक जीवनसाथी जिससे नफरत करते थे, शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे, वो मर गया/गयी, तो सुखी होंगे या दुःखी?
एक जीवनसाथी जिससे बेइंतहा प्रेम करते थे, शक्ल देखे बिना चैन नहीं था, वो मर गया/गयी, तो सुखी होंगे या दुःखी?
एक आवारा युवा लड़का जो माता-बाप पर बोझ था, बदनामी का कारण था, निर्लज्ज था। उसकी मौत हो गयी, माता पिता को कितना दुःख होगा?
एक आज्ञा कारी सुशील युवा लड़का जो माता-बाप की सेवा करता था, गर्व का कारण था, सज्जनपुरुष था। उसकी मौत हो गयी, माता पिता को कितना दुःख होगा?
इंसान आये दिन कितने एक्सिडेंट देखता है, कितने क्षण दुःखी होता है? कोरोना में लाखों लोग मर गए।
वास्तव में इंसान स्वार्थी होता है, केवल अपनों की मौत पर शोक ग्रस्त दुःखी होता है। अपनों में भी उसके लिए ज्यादा दुःखी होता है जिसको वो मुहब्बत/प्रेम करता है। जिस पर उसकी उम्मीदें टिकी हो या जिसने उसका कभी भला किया हो, केवल उसी के लिए आँशु बहाता है। एक ही घटना पर समान दुःख नहीं होता, हृदय की भावना और उस व्यक्ति से कितना भावनात्मक लाभ था दुःख का अनुपात उस पर तय करती है।
लेकिन परमात्मा उस मुर्गे बकरी के दर्द और मौत में भी उतना ही दुःखी होता है जितना एक इंसान की मौत और दर्द में। क्योंकि तुम्हारी दृष्टि शरीर तक है, तुम शरीर रूपी वस्त्र से पहचान करते हो, परमात्मा तो आत्मा को देखता है। आत्मा तो इंसान के शरीर मे हो या मुर्गी या बकरे के शरीर में निज कर्मफ़ल ही भुगत रही है। न्यायाधीश परमात्मा जो सभी बच्चो से प्यार करता है, उसे न्याय करना पड़ता है। यह न्याय व्यवस्था आत्मा पर आधारित है।
शरीर को सबकुछ समझने वाले और स्वयं के आत्मस्वरूप होने से अंजान, स्वयं ही भाग्य के विधाता है। यह जो नहीं मानता या जानता, उसके लिए ही यह संसार दुःखमय है। जो स्वयं को आत्मस्वरूप जानकर निज के विधाता स्वरूप को पहचान कर आत्म उत्थान में अग्रसर है। उसके लिए यह संसार आनन्दस्वरूप है। वही कण कण में परमात्मा को अनुभूत कर सकेगा। आध्यात्मिक व्यक्ति शोकग्रस्त नहीं होता क्योंकि वह जानता है, आत्मा का शरीर धारण व त्यागना एक सुनिश्चित विधान है। प्रत्येक यात्री को टिकट में स्टार्ट स्टेशन और उतरने का स्टेशन पहले ही मिल जाता है। इसीतरह आत्मा का हाल है, शरीर धारण के दिन ही मृत्यु का दिन भी निश्चित हो जाता है।
उन परिचित सदस्य को अभी समझाने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि अभी वह क्रोध व शोक में है। थोड़ा वक्त गुजरने दीजिये, स्वतः सब सही हो जाएगा।
एक पुस्तक पढ़ लीजिये - "गहना कर्मणो गति:(कर्मफ़ल का सुनिश्चित सिद्धांत), कर्मफ़ल सिद्धांत क्लियर हो जाएगा।
गहना कर्मणोगतिः :: (All World Gayatri Pariwar)
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