गायत्री उपासना विधि-
वेदों में उल्लेख आता हैं कि माँ गायत्री की पूजा उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है । हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक श्रद्धा भावना के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है । ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर या दिन में अन्य समय जब स्नान करें तब गायत्री मंदिर या घर के किसी भी शुद्ध पवित्र स्थान पर पीले कुशा के आसन पर सुखासन में बैठकर इस प्रकार करें पूजा-
उपासना का विधि-विधान-
ब्रह्म सन्ध्या - जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है । इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं ।
पवित्रीकरण - बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर पवित्रता के भाव से छिड़क लें ।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
आचमन - वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें । हर मंत्र के साथ एक-एक आचमन करें ।
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।
शिखा स्पर्श एवं वंदन - शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे । निम्न मंत्र का उच्चारण करें ।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥
प्राणायाम - श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ करें ।
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।
न्यास - इसका प्रयोजन है- शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके । बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को जल में भिगोकर बताए गए स्थान को हर मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।
ॐ वाङ् मे आस्येऽस्तु । (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु । (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु । (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु । (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु । (समस्त शरीर पर)
उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि साधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो । पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं ।
गुरु - गायत्री मंत्र को गुरू मंत्र भी कहा जाता है इसलिए बिना गुरू के साधना का फल देरी से मिलने संभावना रहती हैं इसलिए साधक के जो भी गुरू हो उनकी चेतना का आवाहन उपासना की सफलता पूजा स्थल पर निम्न मंत्र से करें-
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
माँ गायत्री का आवाहन
अगर घर में पूजा कर हैं तो महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री का प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा वेदी पर स्थापित करें, वेदी पर कलश, घी का दीपक भी स्थापित करें । अब निम्न मंत्र के माध्यम से माता का आवाहन करें । भावना करें कि आपकी प्रार्थना, श्रद्धा के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति पूजा स्थल पर अवतरित हो रही है ।
ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि,
ततो नमस्कारं करोमि।
गायत्री के इस महामंत्र का करें जप
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
जप पूरा होने के बाद यदि सम्भव हो तो दैनिक यज्ञ शुद्ध हवन सामग्री या गाय के घी से गायत्री मंत्र की 24 या 108 आहुति का यज्ञ कर ले।
जप व यज्ञ पूर्ण होने पर इस क्रम के साथ विसर्जन करें-
विसर्जन मन्त्र -
ॐ उत्तमे शिखरे देवी भूम्यां पर्वतमूर्धनि ।
ब्राह्नणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथासुखम् ॥
सूर्यार्घ्यदान - विसर्जन - जप समाप्ति के बाद पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के भाव से पूर्व दिशा में सूर्य भगवान को र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ायें ।
ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥
इतना सब करने के बाद दान स्वरूप अपनी कमाई के एक अंश कहीं लोककल्याण हेतु दान अवश्य करें ।
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